ज्योतिष और पंचांग के अनुसार 17 फरवरी से फाल्गुन मास की शुरुआत हो गई है जो की 18 मार्च तक रहेगा। यह हिंदू वर्ष का अंतिम महीना होता है। फाल्गुन का महीना इस महीने से धीरे-धीरे गर्मी की शुरुआत होने लगती है।
इस मास इन बातों का रखें ध्यान
फाल्गुन मास में शीतल या सामान्य पानी से स्नान करना अच्छा रहता है। भोजन में अनाज का इस्तेमाल कम से कम करना बेहतर रहता है इसके स्थान पर फलों का सेवन आधिक करना चाहिए। साथ ही इस महीने में कपड़े रंगीन और सुंदर पहनना चाहिए। इसके अलावा नियमित रूप से श्रीकृष्ण की उपासना फूल माला का इस्तेमाल करते हुए करें। वहीं इस महीने में मांस-मछली और नशीली चीजों के सेवन से परहेज करें।
फाल्गुन मास के विशेष उपाय
अगर गुस्से या चिड़चिड़ाहट की समस्या है तो पूरे महीने श्रीकृष्ण की उपासाना करें और उन्हें गुलाल अर्पित करें। साथ ही अगर अवसाद की समस्या है तो जल में चंदन मिलाकर स्नान करें। इसके अलावा अगर सेहत से संबंधित किसी प्रकार की समस्या है तो पूरे महीने भगवान शिव को सफेद चंदन अर्पित करें।वहीं अगर किसी तरह की आर्थिक समस्या है तो पूरे महीने मां लक्ष्मी को गुलाब या इत्र अर्पित करें।
श्रीकृष्ण की पूजा है फलदायी
फाल्गुन महीने में श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना विशेष फलदायी होती है। इस महीने में श्रीकृष्ण के बाल, युवा और गुरु इन तीनों स्वरूपों की उपासना करने का विधान है। साथ ही इस महीने में संतान की प्रप्ति के लिए श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की उपासना करनी चाहिए। प्रेम और आनंद की प्राप्ति के लिए श्रीकृष्ण के युवा स्वरूप की पूजा करनी चाहिए।इसके अलावा ज्ञान प्राप्ति के लिए गुरु कृष्ण की उपासना करनी चाहिए।
बाल गोपाल का अभिषेक और पूजा विधि
श्रीकृष्ण के बाल स्परूप बाल गोपाल यानी लड्डू गोपाल को घर के मंदिर में रख सकते हैं। फाल्गुन मास में दक्षिणावर्ती शंख से बाल गोपाल का अभिषेक करना चाहिए। इस माह में रोज सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं।
घर के मंदिर में गणेश पूजा करें। गणेशजी को स्नान करा, वस्त्र अर्पित कर, चावल, हार-फूल चढ़ाएं। धूप-दीप जलाएं।
गणेश पूजन के बाद श्रीकृष्ण की पूजा करें।
बाल गोपाल को स्नान कराएं। पहले शुद्ध जल से फिर पंचामृत से और फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं। दक्षिणावर्ती शंख में केसर मिश्रित दूध भरें और कृं कृष्णाय नम: मंत्र बोलते हुए अभिषेक करें।
वस्त्र और आभूषण पहनाएं। हार-फूल, फल मिठाई, जनेऊ, नारियल, पंचामृत, सूखे मेवे, पान, दक्षिणा और अन्य पूजन सामग्री चढ़ाएं। तिलक करें। धूप-दीप जलाएं।
तुलसी के पत्ते डालकर माखन-मिश्री का भोग लगाएं। कर्पूर जलाएं और आरती करें। आरती के बाद परिक्रमा करें। पूजा में हुई अनजानी भूल के लिए क्षमा याचना करें। इसके बाद अन्य भक्तों को प्रसाद बांट दें और खुद भी लें।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। Narmadanchal.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।)