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Mallikarjuna Jyotirlinga : भगवान शिव का दूसरा ज्योतिर्लिंग, जाने कैसे हुई स्थापना ? सम्‍पूर्ण जानकारी

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मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Mallikarjuna Jyotirlinga)

Mallikarjuna Jyotirlinga : 12 ज्योतिर्लिंग में से एक मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Mallikarjuna Jyotirlinga) भगवान शिव का दूसरा शिवलिंग माना जाता है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग नाम में माता पार्वती को ‘मल्लिका’ है और भगवान शिव को ‘अर्जुन’ कहा जाता है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Mallikarjuna Jyotirlinga) के निकट ही माता सती का महाशक्तिपीठ भी है। यहाँ माता सती की गरदन गिरी थी। भगवान शिवजी का यह ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश राज्‍य के कृष्णा नदी के तट पर शैल पर्वत पर स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग को दक्षिण भारत का कैलाश भी कहा जाता है।

मान्‍ताओं के अनुसार मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Mallikarjuna Jyotirlinga) में भगवान शिव और पार्वती की दिव्य ज्योतियां आज भी विद्यमान हैं। ऐसी मान्यता है की मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से अश्वमेध यज्ञ करने जितना फल मिलता है। और मनुष्‍य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर की संरचना

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Mallikarjuna Jyotirlinga) मंदिर के अंदर कई मंदिर बने हुए है। जिनमें मल्लिकार्जुन और भ्रामराम्बा सबसे प्रमुख मंदिर हैं। मंदिर के केंद्र में कई मंडपम स्तंभ हैं और जिसमें नादिकेश्वरा की एक विशाल दर्शनीय प्रतिमा है।

यहां 2 हेक्टेयर और 4 गेटवे टॉवर हैं, जिन्हें गोपुरम नाम से जाना जाता है। यहां सबसे देखने लायक मुख मंडप है जो विजयनगर काल के दौरान बनाया था।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का महत्व

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Mallikarjuna Jyotirlinga) मंदिर का वर्णन महाभारत, शिव पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों में किया गया है। मान्‍यताओं के अनुसार यहां पर भगवान शिव और माता पार्वती आज भी रहते है। शैल पर्वत पर जो भी मनुष्‍य पूर्ण श्रद्धा-भाव से भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना करता है उसे अश्वमेघ यज्ञ करने के बराबर फल की प्राप्ति होती है।

मल्लिकार्जुन ज्‍योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही मनुष्‍य के सारे पाप नष्‍ट हो जाते है। जो भी मनुष्‍य पूर्ण भक्ति-भाव से भगवान शिव की अराधना करते है उन्‍के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। और भगवान शिव की हमेशा कृपा बनी रहती है और जीवन में सभी सुख प्राप्त होते हैं।

Somnath Jyotirling : भगवान शिव का पहला ज्योतिर्लिंग जहां दर्शन मात्र से होती हैं मनोकामनाएं पूरी

मलिकार्जुन ज्योर्तिलिंग की स्‍थापना कैसे हुई ?

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव और पार्वती 2 पुत्र भगवान श्री गणेश और कार्तिकेय विवाह के लिए झगड़ रहे थे। भगवान शिव और पार्वती ने उनके झगड़े का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि पहले किसका विवाह होगा इसी विषय में झगड़ा हो रहा है।

यह सुनकर माता पार्वती ने झगड़े के समाधान के लिए दोनों भाइयों से कहां की जो पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस आएगा उसी का विवाह पहले होगा।

माता पार्वती की बात सुनकर सुनकर भगवान कार्तिकेय मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए चल दिए। लेकिन भगवान गणेश बहुत ही बुद्धिमान थे। जब कार्तिकेय परिक्रमा के लिए वहां से चले गए तब भगवान गणेश ने  कुछ विचार कर अपने माता पिता को एक स्थान पर बैठने का आग्रह किया।

इसके बाद भगवान गणेश ने भगवान शिव और माता पार्वती की 7 बार परिक्रमा किया। जिससे पृथ्वी की परिक्रमा से मिलने वाले फल की प्राप्ति की और शर्त जीत गए। उनकी यह बुद्धिमानी देख भगवान शिव और पार्वती बहुत ही प्रसन्न हुए और गणेश जी का विवाह कराया।

पृथ्वी की परिक्रमा पूरा कर जब कार्तिकेय जी वापस आए तो गणेश जी का विवाह देखकर उन्हें बहुत दुख हुआ। जब माता पार्वती और भगवान शिव को पता चला कि कार्तिकेय जी नाराज हो कर चले गए तब उन्होंने नारद जी को मनाने के लिए भेजें और कहां की कार्तिकेय जी को मना कर घर वापस लाएं।

नारद जी कार्तिकेय को मनाने पहुंचे और मनाने का बहुत प्रयत्न किया। कार्तिकेय जी ने नारद जी की एक न सुनी अंत में निराश होकर नारद जी वापस चले गए और माता पार्वती और भगवान शिव सारी बात बताई। यह सुन माता पार्वती भगवान शिव के साथ क्रौंच पर्वत पर कार्तिकेय को मनाने पहुंची।

माता पिता के आगमन को सुन कार्तिकेय 12 कोस दूर चले गए तब भगवान शिव वहां ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और तभी से वह स्थान मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Mallikarjuna Jyotirlinga) से प्रसिद्ध हुआ। ऐसा कहा जाता है कि वहां आज भी माता पार्वती हर पूर्णिमा और भगवान शिव हर अमावस्या के दिन आते हैं।

इस स्थान पर माता सती का एक अंग गिरने से यह स्थान शक्तिपीठ भी कहा जाता है। यहां मंदिर में महालक्ष्मी के रूप में अष्टभुजा प्रतिमा स्थापित है यह स्थान बहुत ही पवित्र माना गया है।

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