अब सिवा याद के बचा क्या है ?
राख़ में मुझको ढूँढ़ता क्या है ?
बात करने नहीं रहा कोई अपना ,
इससे बढ़कर कोई सज़ा क्या है ?
भीगी आँखों ने कह दिया सब कुछ ,
और कहने को अब रहा क्या है ?
शौक कहने का हो जिसे गजल ,
बढ़ के इससे कोई नशा क्या है ?
आप आते नहीं बुलाने से ,
ऐसी मुझसे हुई ख़ता क्या है ?
आ भी जाओ चिराग बुझने को हैं ,
दिल तुम्हारा आखिर चाहता क्या है ?
सूने हो जाते नीड़ ‘पर’ आते ,
ज़िंदगी का ये फ़लसफ़ा क्या है ?
महेश कुमार सोनी
माखन नगर