ज़ीस्त में मुझको हर एक से ही दगा मिला ,
कोई भी शख़्स मुझको नहीं है भला मिला ।
मैं समझा था कि मेरे सिवा कौन उसका है ,
हर कोई शहर में तो , पता पूछता मिला ।
हँसते हुए बश़र का ज़िगर है बड़ा बहुत ,
सबको हँसाता शख़्स भी ख़ुद गमज़दा मिला।
जिसके लिए लुटाते रहे जान देखिए ,
मेरा वो अपना ही आज दुश्मन से जा मिला ।
मैं सोचता यही था कि वो साथ है मिरे ,
वो पास और के मुझको बैठा हुआ मिला ।
महेश कुमार सोनी
माखन नगर .