- नगर पालिका परिषद द्वारा बड़े मंदिर में वृंदावन की रासलीला का आयोजन
इटारसी। श्री द्वारिकाधीश मंदिर में आज श्री कृष्ण की बाललीलाओं पर आधारित रासलीला के दूसरे और अंतिम दिन गोवर्धन पूजन की लीला का चित्रण किया। श्री बालकृष्ण लीला संस्थान वृंदावन के कलाकारों की अदायगी और संवाद ने लोगों को तीन घंटे बांधे रखा। आज नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पंकज चौरे की अर्धांगिनी श्रीमती निधि चौरे ने आरती करके रासलीला की शुरुआत करायी।
लीला के अनुसार एक बार जब बाल्यकाल में नटखट कान्हा ग्वाल बालों के साथ खेलकर घर आए। तब माता यशोदा पकवान बना रही थीं। कान्हा ने माता से पूछा- ‘मां कई तरह के पकवान और व्यंजन किसके लिए तैयार कर रही हो, मुझे भी खाना हैं’ इस पर यशोदा ने कहा, ना लल्ला ये पकवान स्वर्ग के देवता इंद्र के लिए हैं, पहले उन्हें भोग लगाया जायेगा, बाद में सभी लोग खाएंगे नहीं तो इंद्रदेव नाराज हो जाएंगे और बारिश नहीं करेंगे, जिससे सभी जमीन बंजर हो जायेगी और सभी लोग अनाज को तरस जाएंगे, तब 7 साल के कान्हा ने अपनी मां यशोदा से कहा कि मां क्या आपने कभी इंद्र देवता को देखा है, इस पर मां ने कहा कि देखा तो नहीं है, लेकिन उनकी वजह से ही ब्रज में वर्षा होती है और सभी ओर हरियाली रहती है।
आगे मां यशोदा ने कहा कि इसलिए सभी ब्रजवासी अपने-अपने घरों में पकवान बना रहे हैं। कान्हा ने इस बात पर कहा मां इस बार आप मेरे भगवान की पूजा करो जो आपको दिखाई भी देगा और आप से मांग- मांगकर खायेगा, कन्हैया ने अपनी यह बात नन्द बाबा और सभी ब्रज वासियों के सामने रखी, जिस पर सभी ने कहा कि कई वर्षों से हम इंद्र की पूजा करते आ रहे हैं, इस बार कृष्ण के देवता की पूजा करेंगे, जिससे वह खुश हो जाएंगे और अधिक वर्षा करेंगे। कृष्ण सभी ब्रजवासियों को लेकर गिरिराज पर्वत के सामने खड़े हो गए। ब्रज वासियों ने कहा की कान्हा कहां है, तुम्हारे देवता कान्हा ने आवाज लगाई गोवर्धन नाथ सभी ब्रजवासी आपको भोग लगाने कबसे लिए पकवान और व्यंजन लाये हैं, तभी गिरिराज पर्वत में से श्रीगोवर्धन नाथ जी के रूप में देवता ने सभी को दर्शन दिए और सभी ब्रजवासियों से मांग मांग कर खाया।
कृष्ण एक रूप से खिला रहे थे और एक रूप से खा रहे थे, अपने हाथों से गोवर्धन महाराज को भोग लगाकर सभी ब्रजवासी खुश हो गए, लेकिन जब यह बात इंद्र देव को पता लगी तो वह नाराज हो गए। इंद्र ने कहा कि एक 7 साल के बालक के कहने पर ब्रजवासियों ने मेरी पूजा न करके एक पर्वत को पूज दिया, मैं पूरे ब्रज को पानी पानीकर दूंगा। क्रोधित इंद्र ने ब्रज में मूसलाधार बारिश शुरू कर दी, जिससे डरे-सहमे ब्रज वासी कान्हा के पास गए और कान्हा से कहा कि अब तुम ही हमारी रक्षा करो हमने तुम्हारे कहने पर इंद्र की पूजा नहीं की। कृष्ण ने कहा कि चलो फिर सभी गोवर्धन पर्वत ही चलते हैं, सभी ब्रजवासाी गोवर्धन पर्वत पहुंचे, जहां मूसलाधार बारिश से डरे ब्रजवासियों को देख कन्हैया ने गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी उंगली पर उठा लिया और सभी ब्रजवासियों को पर्वत के नीचे बुला लिया।
गुस्साए इंद्र ने ब्रज में 7 दिन और 7 रात मूसलाधार बारिश की और आप इसे संयोग मानेगे बालक कृष्ण की उम्र भी महज 7 वर्ष ही थी, जब इंद्र के पास जल समाप्त हो गया तो इंद्र ने सोचा की ब्रज तो खत्म हो गया होगा, उसे देखा जाये, जब इंद्र ब्रज भूमि पर आया तो यहां धूल मिट्टी उड़ रही थी और कृष्ण 21 किलोमीटर में फैले विशाल गिरिराज पर्वत को उंगली पर उठाये हुए थे। इस नजारे को देख इंद्र श्री कृष्ण के पैरों में गिर गया और कृष्ण को ऐरावत हाथी और कई वस्तुएं भेंट की, लेकिन कृष्ण नहीं माने, फिर इंद्र ने नारद जी की सलाह पर सुरभि गाय भेंट की और क्षमा मांगी। इसी कारण द्वापर युग से यह परंपरा चली आ रही है और ख़ास तौर पर ब्रज यानी की गोवर्धन में इसे विशेष तौर पर मनाया जाता है।