विश्व पर्यावरण दिवस पर, इदन्नमम् के यथार्थ को समझना होगा

विश्व पर्यावरण दिवस पर, इदन्नमम् के यथार्थ को समझना होगा

– डॉ हंसा कमलेश
वेद कहते हैं इदन्नमम् का सार्थक व्यवहार ही समाज का कल्याण कर सकते हैं। वेद का संदेश यह भी है कि गंध को धारण किये हुये वायु और जल सबके लिए सर्वत्र हो। विश्व के प्राणिमात्र के कल्याण की भावना के साथ रोग पीड़ित, विश्व के संताप हरने की मौन प्रार्थना, वेद की ॠचाओं मे समाई हुई है। कोविड-19 की महामारी ने हमें यह अच्छी तरह समझा दिया है कि बीमारी की विभीषिका का प्रकोप सबके लिए एक समान होता है।
आज पर्यावरण में न वायु,न जल सर्वत्र है और न ही सुगंधित है। तकनीकी विकास की आंधी ने जल, जमीन की सरसता को ही समाप्त कर दिया। नदियों की धारा सिकुड़ गई, कुए रसातल में समा गये, बावडियाँ इतिहास के पन्नों में पढ़ने के लिए रह गई और तालाब पोखर बन दलदल में समा गये,खेत कान्क्रिट के भवनो में बदल गये, चारागाह की जमीन गायब हो गई। जिनकी जीविका पशुओं पर निर्भर है उनका जीवन ही संकट में है।
ये आजाद भारत की तस्वीर है जिसके हम सब प्रत्यक्ष गवाह हैं।
इसमें संदेह नहीं कि भवन, बांध, स्कूल, कालेज, कालोनी की संख्या बढ़ती जा रही है, सड़को का जाल बिछ गया, मोबाइल हर हाथ में आ गया, मोटर साइकिल, स्कूटर, कार की संख्या इतनी हो गई कि सड़क पर पैदल चलने वाले रास्तों पर दम तोड़ने लगे। उपभोक्ता वादी भौतिक विकास अपने साथ विनाश भी लेकर आया।
ये ज़रूरी है कि समय के साथ हम विकास का मॉडल अपनायें, पर विध्वंस की कीमत पर नहीं। हैरानी इस बात पर होती है कि नर्मदा के किनारे पानी का संकट, लोगो को पीने का स्वच्छ जल नहीं मिल रहा। आये दिन इंसान पानी की तलाश में कहीं गहरे कुए में उतर रहा है तो कहीं 4-5 किलो मीटर दूर से पीने का पानी ला रहा है।लेखिका ने स्वयं ब्यावरा (राजगढ़), उज्जैन, देवास, भोपाल में पानी के संकट के बीच समय बिताया है। बचपन में जोधपुर (राजस्थान) में पानी के लिए लेखिका ने भी संकट को न केवल महसूस किया बल्कि जिया भी है पर आज तो मालवा भी तरस रहा है।
यह सच है कि विकास के साथ विनाश आता है और विकास की प्रक्रिया के साथ साथ पर्यावरण की क्षति को भी नहीं रोका जा सकता। पर वैकल्पिक तरिकों से पर्यावरण के नुकसान को कम अवश्य किया जा सकता है।
हमें इदन्नमम् के भाव को आत्मसात करना ही होगा, क्योंकि यह भाव सारी सृष्टि में समाया हुआ है। इदन्नमम् के भाव के कारण ही सृष्टि का चक्र चल पा रहा है। ईश्वर सारी सृष्टि का चक्र चलाते हुए यज्ञ कर रहा है। उसकी सारी प्रवृत्ति ही यज्ञ में है।उसका सारा कार्य यज्ञ में है और यज्ञ में होने के कारण ही ईश्वर प्राणी मात्र के कल्याण के लिए कार्य करता है।
इदन्नमम् के भाव को हम इस तरह समझ सकते हैं, सूर्य अपने ताप से जल को सोखता है और इदन्नमम् कहकर वायु को देता है। वायु उसे बादलों में इकट्टा कर देती है और इदन्नमम् कहकर जल को वर्षा के रूप में पृथ्वी को लौटा देती है। पृथ्वी नदी को और नदी समुद्र को समर्पित कर देती है अर्थात कोई भी शक्ति ईश्वर के दिये वरदानो को न तो अपना समझती है और ना ही अपने पास रखती है बल्कि सबके कल्याण के लिये इदन्नमम् के भाव से आगे की ओर कर देती है। इसी से सारी सृष्टि का चक्र चल रहा है।
आज पर्यावरण की रक्षा और मानवीयता को बचाने के लिए इदन्नमम् के यथार्थ को समझना आवश्यक है।
हमें कोविड -19 के लॉकडाउन के प्रकृति के प्रभाव को भी गहराई से समझना होगा।इसमे तो दो मत ही नहीं कि कोरो नावायरस ने प्रकृति को मुस्कुराने की वजह दे दी। मानवीय हलचल बंद हुई तो नदियों में लहरों के साथ जीव जंतु क्रीडा करने लगे। फैक्ट्री और वाहनों के जहर उगलते धुएँ ने जब अपने आप को कैद किया तो वायुमंडल शुद्ध वायु के साथ जी उठा।पक्षियों की चहचहाहट भरा कलरव प्रकृति में गीत गाने लगा।
लॉकडाउन से बंद हुई मानवीय और मशीनी गतिविधियों ने जब विराम लिया तो कार्बन उत्सर्जन रुक गया।अमेरिका के न्यूयार्क शहर में पिछले साल की तुलना में प्रदूषण 50% कम हो गया चीन में कार्बन उत्सर्जन में 25 फ़ीसदी गिरावट हो गई। इटली ,ब्रिटेन, स्पेन में भी कार्बन उत्सर्जन की गति धीमी हो गई |
भारत में भी हमें कार्बन उत्सर्जन कम देखने को मिला, पर्यावरण शुद्ध हो गया। नदियों के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ गई। मतलब साफ है लॉकडाउन ने पर्यावरण को जीवन दे दिया।ऑक्सीजन प्रदान कर दी।अब बारी हमारे सोचने की है कि हम अपने स्वयं से निर्णय लेकर अपने देश के लिए ,अपने जीवन के लिए, अपने आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ ऐसी नीतियां बनाएं कि पर्यावरण प्रदूषण का खतरा कम हो। क्योंकि बिना पर्यावरण के जीवन नहीं। शासन द्वारा नीतियां अवश्य बनाई जाती हैं लेकिन समाज का मानसिक धरातल पर जागरूक होना भी जरूरी है। लगातार बढ़ते ट्यूबवेल ने पानी के जलस्तर को कम कर दिया है। एक कॉलोनी के हर घर में ट्यूबेल होता है। कहीं-कहीं एक ही घर में 2 -2 ट्यूबवेल होते है।फैक्ट्री में दो-दो, तीन-तीन ,चार-चार होते है। यहाँ जरूरी है कि आवश्यकतानुसार ही सरकार अनुमति दे। अब आसपास के घर भी आपसी सहमति से ट्यूबवेल से पानी की उपलब्धता की शेयरिंग करे और इसी तरह वाहन चलाएं।
अपने जीवन की सांसों के लिए बहुत सारे निर्णय हमें खुद लेने होंगे और इदन्नमम् के यथार्थ को समझना ही होगा।
hansa vyas

डॉ हंसा कमलेश
सदर बाजार होशंगाबाद
Contact : 9425366286
hansa.vyas@rediffmail.com

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