आज भी कानों में गूंजती बांसुरी की वो मधुर तान
– पंकज पटेरिया :
अरसा हो गया लेकिन कानों में आज भी उस पर्वतीय वनांचनल से आती बांसुरी की मीठी तान गूंजती रहती है। आज की मशीनी जिंदगी की आपाधापी में जब भी ऐसे पल आते थके -हारे मन को असीम सुख-शांति और अलौकिक आनन्द अनुभूति होती है।
हमारे जिला होशंगाबाद का सिरमौर देश की खूबसूरत पयर्टन नगरी पचमढ़ी की प्रसिद्ध महादेव गुफा के द्वार पर उनसे भेंट हुई थी। सुरम्य हरी-भरी पर्वतमाला, शांत, सम्मोहित करता सघन वन वैभव और मध्य में महादेव गुफा भीतर निर्मल जल कुंड और ऊपर आसन पर विराजे देवादि देव महादेव भगवान शंकर जिन पर पता नहीं कहां पर्वतीय शिखर से रिसकर आते जल से 12 महीने अभिषेक होता रहता है। गुफा के प्रवेश द्वार पर ही अपने में मगन नाक से बांसुरी बजाते दिख गये सूरदास जी। उनकी सुरीली बांसुरी से निकले मधुर भजन रघुपति राघव राजाराम की मोहक धुन अरण्य के वातावरण में अलौकिक आभा घोल रही थी। गुफा में जाने से पहले जाने किस अदृश्य शक्ति ने मुझे रोक लिया और मैं भी सूरदास के चरणों में बैठकर नाक से बजती दो बांसुरी के भजन का आनंद लेने लगा। दो-तीन भजन के बाद उन्होंने विराम लिया। मेरी भी तन्द्रा टूटी। मेरे अंदर का लेखक, पत्रकार मुखर हुआ। सूरदास जी से बातचीत होने लगी। बोले भगवन किशन लाल हैं, बचपन से आंखें नहीं हैं। सायकिल से गिरने से हड्डी टूट गई अपने अपने आप बांसुरी बजाने लगे। कोई भोलेनाथ की शरण में छोड़ गया। 15-20 साल हो गये, उन्हीं की शरण में हूं। मन की आंखों से दर्शन करता हूं और भजन सुनता रहता हूं। आखिर ठहाका लगाकर बोलते मोहे खाबे-पीबे कोउ फिक्र नहीं, भोलेनाथ देत है और जाड़े पानी से भी बचाये। मैं उन्हीं के भरोसे मस्त रहूं। इसके साथ ही जय रामजी कर नाक पर बांसुरी लगा सूरदास जी ने फिर रघुपति राघव राजा राम की तान शुरू कर दी। मैं माथा टेक उठकर चल दिया।
पंकज पटेरिया
वरिष्ठ पत्रकार कवि
सम्पादक शब्दध्वज होशंगाबाद
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