आंवला नवमी के व्रत का फल और पुण्य अक्षय होता है

Post by: Poonam Soni

कल आंवला अक्षय नवमी का महान व्रत

इटारसी। मां चामंडा दरबार भोपाल के पुजारी गुरु पंडित रामजीवन दुबे ने बताया की आज कार्तिक शुक्ल पक्ष आंवला नवमी (Amla Akshaya Navami) शनिवार 13 नवम्बर को महिलाओं द्वारा व्रत रखा जाता है। आंवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहते हैं। आंवला नवमी व्रत देव उठनी एकादशी व्रत से दो दिन पूर्व रखा जाता है। आंवला नवमी के दिन आंवला के पेड़ की पूजा करने का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आंवला नवमी के व्रत प्राप्त होने वाला फल और पुण्य अक्षय होता है, उसका कभी क्षय या ह्रास नहीं होता है।

आंवला नवमी पूजन विधि-
1. आंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष की पूजा की जाती है।
2. हल्दी, कुमकुम आदि से पूजा करने के बाद जल और कच्चा दूध वृक्ष पर अर्पित करें।
3. इसके बाद आंवले के पेड़ की परिक्रमा करें।
4. तने में कच्चा सूत या मौली आठ बार लपेटें।
5. पूजा के बाद व्रत कथा पढ़ी या सुनी जाती है।

जानिए क्यों मनाते हैं आंवला नवमी
मान्यता है कि इस दिन द्वापर युग का प्रारंभ होता है। द्वापर युग में भगवान विष्णु के आठवें अवतार प्रभु श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन गोकुल की गलियों को छोड़कर मथुरा की ओर प्रस्थान किया था। इसी वजह से वृंदावन परिक्रमा की जाती है।

अक्षय नवमी कथा
अक्षय नवमी के संबंध में कथा है कि दक्षिण में स्थित विष्णुकांची राज्य के राजा जयसेन के इकलौते पुत्र का नाम मुकुंद देव था। एक बार राजकुमार मुकुंद देव जंगल में शिकार खेलने गए। तभी उनकी नजर व्यापारी कनकाधिप की पुत्री किशोरी के अतीव सौंदर्य पर पड़ी। वे उस पर मोहित हो गए। मुकुंद देव ने उससे विवाह करने की इच्छा प्रकट की। इस पर किशोरी ने कहा कि मेरे भाग्य में पति का सुख लिखा ही नहीं है। राज ज्योतिषी ने कहा है कि मेरे विवाह मंडप में बिजली गिरने से मेरे वर की तत्काल मृत्यु हो जाएगी। परंतु मुकुंद देव अपने प्रस्ताव पर अडिग थे। उन्होंने अपने आराध्य देव सूर्य और किशोरी ने अपने आराध्य भगवान शंकर की आराधना की। भगवान शंकर ने किशोरी से भी सूर्य की आराधना करने को कहा। किशोरी गंगा तट पर सूर्य आराधना करने लगी। तभी विलोपी नामक दैत्य किशोरी पर झपटा तो सूर्य देव ने उसे तत्काल भस्म कर दिया। सूर्य देव ने किशोरी से कहा कि तुम कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवले के वृक्ष के नीचे विवाह मंडप बनाकर मुकुंद देव से विवाह कर लो। दोनों ने मिलकर मंडप बनाया। अकस्मात बादल घिर आए और बिजली चमकने लगी। भांवरें पड़ गईं, तो आकाश से बिजली मंडप की ओर गिरने लगी, लेकिन आंवले के वृक्ष ने उसे रोक लिया। इस कहानी के कारण आंवले के वृक्ष की पूजा होने लगी। हालांकि आंवले का वृक्ष औषधीय गुणों से परिपूर्ण होता है। आयुर्वेद में इसके अनेक गुण बताए गए हैं। इसलिए इसकी पूजा का तात्पर्य औषधीय वनस्पतियों का संरक्षण व प्रकृति का सम्मान करना भी है।

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