इटारसी। उत्तर भारतीय समुदाय ने आज छठ पर्व के अंतर्गत अस्त होते सूर्य को अघ्र्य दिया और पथरोटा नहर किनारे छठी मैया की पूजा की। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में गुरुवार शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया गया। एक सबसे अधिक खलने वाली बात यह रही कि नहर किनारे विशालकाय नीलगिरि के पेड़ होने के कारण व्रतियों को डूबते सूर्य के दर्शन नहीं हुए और उन्होंने प्रतीकात्मक सूर्य दर्शन मानकर अर्घ्य दिया। वर्षों पूर्व लगाये ये वृक्ष अब इतने बड़े हो गये हैं कि शाम को साढ़े चार बजे से ही सूर्य इनकी ओट में चला जाता है।
छठ पूजा के अवसर पर शहर के पथरोटा नहर पर उत्तर भारतीय समुदाय के लोगों ने छठ माता की पूजा-अर्चना की। पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया, और पति सहित बेटे की लंबी आयु की कामना की। इस दौरान यहां पर बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय समाज के लोग उपस्थित रहे। लोक आस्था के महापर्व छठ पर व्रतियों ने पथरोटा नहर के तट पर श्रद्धा एवं आस्था के साथ पूजा अर्चना की। गुरुवार को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को छठव्रती पहला अर्घ्य प्रदान किया। इसके बाद शुक्रवार को उगते हुए सूर्य को छठ का दूसरा अर्घ्य दिया जाएगा। इसके साथ ही चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व समाप्त हो जाएगा।
छठ पर्व की तैयारियां छठ महापर्व को लेकर नहर किनारे भव्य तैयारी की गई हंै। छठव्रतियों का आज रातभर यहां नहर किनारे मेला लगा रहेगा और छठ मैया के भजन चलेंगे। शाम को अर्घ्य के समय समाज के युवाओं और बच्चों ने आतिशबाजी की और पटाखे फोड़े। यहां गन्ने की दुकानें भी लगी थीं। काफी संख्या में महिला व्रती पैदल ही घाट पहुंची। पैदल जाने वाली महिलाएं छठी माई की गीत गाते हुए पहुंच रही थीं। जय छठी मईया की जय-जयकार से शाम को पूरा तट गूंज उठा। पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया। छठ महापर्व के आखिरी दिन शुक्रवार को उगते हुए सूर्य को अघ्र्य प्रदान किया जाएगा। उसके बाद चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व का समापन होगा।
नीलगिरि के पेड़ों की छंटाई जरूरी
बहुत बड़े हो चुके नीलगिरि के पेड़ों की छंटाई बेहद जरूरी हो गयी है, वैसे भी यह पेड़ किसी काम का होता नहीं है, अलबत्ता बड़ी मात्रा में पानी सोखकर धरती से जलस्तर कम ही करता है। इनको कोट देने से भी कोई खास समस्या नहीं होगी। या तो उनको काटना चाहिए या फिर छांटना चाहिए, ताकि बड़ी आबादी की श्रद्धा का पर्व मनाने मेें उनको कोई बाधा नहीं हो।