झरोखा : पूजा उपासना में आसन का धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व होता है

Post by: Rohit Nage

Jharokha: Life is burning in DJ and firecrackers
  • पंकज पटेरिया

धर्म अध्यात्म संस्कृति में पूजा उपासना में उपयोग की जाने वाली आसनी, अथवा आसन का बड़ा महत्व है। इसके पीछे भी वैज्ञानिकता है, तो धार्मिक मान्यता भी है। शास्त्र सम्मत है। सीधे जमीन पर बैठ कर जो भी पूजा उपासना किए जाते हैं, उससे पॉजिटिव एनर्जी शरीर में उत्पन्न होती है, आसान नहीं होने से वह सीधे जमीन में चली जाती है। उसका वांछित लाभ प्राप्त नहीं होता। मैंने देखा दादा धूनी वाले संप्रदाय के अनुयाई जरा सा जल भूमि पर डाल उसे पर बैठकर मंत्र जाप करते हैं, जिसे जलासन कहते हैं।

pankaj pateriya
पंकज पटेरिया

बहरहाल आसन या आसानी के कई प्रकार हैं। जैसे बाघ आसान, इसमें राजसिक गुण होते हैं। इस पर बैठने से उसी तरह प्रभाव, और गुणों उद्धव साधक जीवन में होने लगता है। एक विशेष प्रभाव व्याग्र या बाघ आसन का यह भी होता है कि इस पर बैठ कर साधना करने वाले जातक के पास विषैले जीव जंतु नहीं फटकते, बल्कि प्रेत आदि अन्य अन्य बधाएं निकट नहीं आती। धन, वैभव, संपदा अन्य राजसी मामलों में यह बहुत प्रभावशाली आसान है।

विभिन्न धर्म ग्रंथों में इसकी महिमा वर्णित है। देव आदिदेव महादेव भगवान शंकर को तो यह अति प्रिय है। इसलिए उन्हें बाघमवर धारी भी कहा गया है। इसी तरह मृगचर्म की भी खासियत है। गृहस्थ और सामान्य साधक मृगचर्म आसन पर पूजा पाठ जप आदि कम करते हैं। संयम, शांति, ज्ञान, वैराग्य सिद्धि इन्द्रिय नियंत्रण एवं मानवी गुणों में भी इस आसन से वृद्धि होती है। इसे एक श्रेष्ठ आसान कहा गया है। इस आसन पर साधना करने वाला साधक वासना आदि से विमुख होने लगता है, और परम सत्ता की ओर प्रवृत्त होता जाता है। आध्यात्म की दिशा में अग्रसर साधक के लिए यह एक सर्वोत्तम आसान है।

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