
नर्मदा में स्नान, पूजा, पाठ दीपदान पापों से मुक्ति देगा
इटारसी। मां चामुंडा दरबार भोपाल के पुजारी पंडित रामजीवन दुबे ने बताया कि माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी मंगलवार 8 फरवरी को मां नर्मदा जयंती मनाई जाएगी। नर्मदा जयंती के दिन मां नर्मदा की विधि-विधान से पूजा की जाती है।
नर्मदा नदी मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा विस्तार से बहती है, अमरकंटक में नर्मदा जयंती को पर्व की तरह मनाया जाता है। मान्यता अनुसार जितना पुण्य पूर्णिमा तिथि को गंगा या अन्य पवित्र नदियों में स्नान से प्राप्त होता है। नर्मदा जयंती के पावन दिन नर्मदा में स्नान करने पर भी उसी के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। मां गंगा की तरह मां नर्मदा भी मोक्षदायिनी माना गया है। आज से होशंगाबाद का नाम नर्मदापुरम हो गया है। भक्तों द्वारा मंगलवार होने के कारण श्री हनुमान मंदिरों में हनुमान जी को चौला चढ़ाकर श्रंगार होगा हनुमान चालिसा सुंदर कांड का पाठ रहेगा।
नर्मदा जयंती का महत्व
हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार माघ मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मां नर्मदा नदी का अवतरण हुआ था। नर्मदा जयंती मां नर्मदा के पृथ्वी पर अवतरण दिवस के रूप में मनाई जाती है। इस दिन नर्मदा नदी में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और व्यक्ति के पापों का नाश हो जाता है। मां नर्मदा की कृपा से दीर्घायु प्राप्त होती है। इस दिन नर्मदा में स्नान के साथ ही दान का भी बहुत महत्व माना जाता है।
नर्मदा के जन्म व उद्गम का इतिहास व महत्व
एक बार देवताओं ने अंधकासुर नाम के राक्षस का विनाश किया। उस समय उस राक्षस का वध करते हुए देवताओं ने बहुत से पाप भी किये. जिसके चलते देवता, भगवान् विष्णु और ब्र हा जी सभी, भगवान शिव के पास गए। उस समय भगवान शिव आराधना में लीन थे। देवताओं ने उनसे अनुरोध किया कि हे प्रभु राक्षसों का वध करने के दौरान हमसे बहुत पाप हुए हंै, हमें उन पापों का नाश करने के लिए कोई मार्ग बताइए। तब भगवान् शिव ने अपनी आंखें खोली और उनकी भौए से एक प्रकाशमय बिंदु पृथ्वी पर अमरकंटक के मैखल पर्वत पर गिरा जिससे एक कन्या ने जन्म लिया। वह बहुत ही रूपवान थी, इसलिए भगवान विष्णु और देवताओं ने उसका नाम नर्मदा रखा। इस तरह भगवान शिव द्वारा नर्मदा नदी को पापों के धोने के लिए उत्पन्न किया। इसके अलावा उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर नर्मदा ने कई सालों तक भगवान् शिव की आराधना की, भगवान शिव उनकी आराधना से प्रसन्न हुए तभी मां नर्मदा ने उनसे ऐसे वरदान प्राप्त किये, जो किसी और नदियों के पास नहीं है। वे वरदान यह थे कि मेरा नाश किसी भी प्रकार की परिस्थिति में न हो चाहे प्रलय भी क्यों न आ जाये, मैं पृथ्वी पर एक मात्र ऐसी नदी रहूं जो पापों का नाश करे, मेरा हर एक पत्थर बिना किसी प्राण प्रतिष्ठा के पूजा जाये, मेरे तट पर सभी देव और देवताओं का निवास रहे आदि। इस कारण नर्मदा नदी का कभी विनाश नहीं हुआ, यह सभी के पापों को हरने वाली नदी है, इस नदी के पत्थरों को शिवलिंग के रूप में विराजमान किया जाता है, इसका बहुत अधिक महत्व है और इसके तट पर देवताओं का निवास होने से कहा जाता है कि इसके दर्शन मात्र से ही पापों का विनाश हो जाता है। इसकी कुल लंबाई 1312 किमी की है और यह गुजरात के भरूच शहर से गुजरती हुई ख भात की खाड़ी में जाकर गिरती है।