झरोखा: पंकज पटेरिया: मां नर्मदा की गोद में राजधानी भोपाल के बगल में बरखेड़ा नर्मदापुरम होशंगाबाद सूबे का एक उन्नत शील जिला है। ब्रिटिश हुकूमत के दौर में भी इस सादर मुकाम की खास अहमियत होती थी, और तब इसमें नरसिंहपुर भी शामिल था। जो बाद में पृथक जिला बना। बहरहाल आज के कलेक्टर साहब फिरंगी हुकूमत दौर में डिप्टी कमिश्नर कहे जाते थे। जिले के राजा माने जाने वाले इन साहब बहादुर की अपनी प्रशासन होती थी। एक अलग मिजाज था। और कुछ ऐसे काम काज जो ये कर गए, मिशाल बन गए। और एक ऐसी शख्सियत भी रही जिनकी बातें और यादें इस किस्सा गोई में शुमार हैं। अंग्रेज साहब बहादुर के किस्से तो लोगों की जुवानो पर आज भी हैं। तो ऐसे अफसरों के कार्यकाल की बाते भी है जो 40-45 बरसो से पत्रकारिता करते मेरे अनुभव में आई। तो इस किस्सा गोंई के सबसे पहले नायक हैं।
ईबी रेनबोथ’ कलेक्टर 2 अक्टूबर 54 से 9 जुलाई 55 तक होशंगाबाद रहें। लंबे चौड़े, लहीम-शहीम प्रभावी व्यक्तित्व के धनी थे। बहुत कम दफ्तर में टिकते थे। वरिष्ठ शिक्षाविद पंडित रामनाथ द्विवेदी बताते थे, कि साहब का मानना था कि कमरे मे कैद होकर प्रशासन नहीं चलता। फील्ड पर जाकर काम किया जाता है। लिहाजा वें ज्यादा फील्ड में रहते थे और आम जनता की दुख तकलीफ से सीधे जुडकर मुश्किलें हल करना पसंद करते थे। सौ टंच मैदानी कलेक्टर यू बहुत सख्त थे, लेकिन गरीब नवाज भी थे। बतातें हैं बड़े सबेरे से सड़को पर निकल जाते थे। सड़को पर साफ सफाई, लेंप पोस्ट की स्थिति, कभी स्कूल, कभी अस्पताल, कभी रेलवे स्टेशन आदि जगह फेरे लगाकर वहां की व्यवस्थाओं का जायजा लिया करते थे। इस दौरान यदि कुछ गलत सलत दिख गया तो गलती के अनुपात में तत्काल सजा का ऐलान हो जाता। अगर किसी बंदे ने कोई शिकायत हुजूर से कर दी तो तोबा सीधे उसे अपनी जीप मे बैठाकर संबंधित व्यक्ति के पास ले जाकर रू-ब-रू करवाते, और शिकायत सच पाई जाती तो मौके पर ही सजा मुक्ररर हो जाती थी। उनका दंड विधान, न्याय शैली अदभुत और खासी दिलचस्प होती थी। एक बार किसी पेट्रोल पंप की कोई शिकायत मिली, मौके पर पहुंच साहब ने तसदीक की।
शिकायत सही पाने पर पम्प वाले को जीप में बैठाया और शहर से दूर 4-7 कि.मी लेजाकर जीप से सड़क पर उतार दिया। और यह हुकम दिया यह तुम्हारी सजा पैदल आओ। इस तरह कई किस्से हैं किसी ने सार्वजनिक स्थान थूक दिया। उन्होंने देख लिया, तो तुरंत उससे सफाई करवाई। रेनबोथ साहब का गलत लोगों में खौफ था। लेकिन आम शांति प्रिय लोगों में उनकी खासी लोकप्रियता थी। जीप से दौरा कर लौटते वक्त कोई गरीब आदमी अपने घर जाते दिख जाता था तो उसे अपनी जीप में बैठाकर उसकी मंजिल तक छोड़ते। यह उनकी नेक दिली की एक मिशाल थी। लिहाजा आम परेशान लोग बे रोक टोक अपने गिले शिकवे लेकर मिलते थे। वे आनन-फानन मामलो का निपटारा करते थे। शायद इसीलिए इतने बरसों बाद भी उनकी बाते हर गली, चौक-चौराहे की जुबान पर आज भी होती हैं। जनता जनार्दन के लिए जीने वाले दिलों में रहने बाली शख्सियत को मन ही मन नमन।

पंकज पटेरिया
वरिष्ठ पत्रकार साहित्य
संपादक शब्द ध्वज
9340244352








