देवशयनी एकादशी शुभ मुहूर्त, क्यों देवशयनी एकादशी से 4 महीने की नींद लेते हैं भगवान विष्णु, एकादशी के दिन क्या खाना चाहिए, देवशयनी एकादशी व्रत विधि जाने सम्पूर्ण जानकारी…
देवशयनी एकादशी क्या हैं (What Is Devshayani Ekadashi)
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘देवशयनी एकादशी’ कहते हैं। इस दिन से भगवान विष्णु चार माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। इसलिए इस एकादशी को ‘देवशयनी’ के नाम से जाना जाता हैं। और इस दिन से ‘चातुर्मास’ प्रारंभ होता हैं। इस वर्ष ‘देवशयनी एकादशी’ 10 जुलाई रविवार को हैं। इस दिन के बाद से अगले चार महीने तक कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होते हैं।
देवशयनी एकादशी शुभ मुहूर्त (Devshayani Ekadashi Auspicious Time)
देवशयनी एकादशी प्रारंभ तिथि : 9 जुलाई दिन शनिवार को शाम 4:40 बजे से
देवशयनी एकादशी समाप्त तिथि : 10 जुलाई दिन रविवार को दोपहर 2:14 बजे तक।
क्यों भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से 4 महीने की नींद लेते हैं (Why Lord Vishnu takes 4 months sleep from Devshayani Ekadashi)
वेदों में वर्णित कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी से विवाह किया था। तब भगवान विष्णु असुरों के नाश के लिए और भक्तों की प्रार्थना सुनने के लिए कई वर्षों तक जागते रहे थे। कभी वे लाखों वर्षों के लिए गहरी नींद में सो जाया करते थे। इस पर माता लक्ष्मी को आश्चर्य हुआ और उन्होंने भगवान विष्णु से ऐसा नहीं करने को कहा। ताकि उन्हें भी विश्राम का मौका मिल जाए।
माता लक्ष्मी ने यह कहा कि वे प्रतिवर्ष नींद लेने के लिए नियम बना लें। इस बात को भगवान विष्णु ने स्वीकार कर लिया और प्रतिवर्ष चार माह नींद लेने का नियम बना लिया। जिस दिन भगवान विष्णु नींद लेने गए थे। उस दिन आषाढ़ मास की एकादशी थी। इसलिए प्रतिवर्ष इसी दिन देवदशयनी एकादशी बनाई जाती हैं।
एकादशी के दिन क्या खाना चाहिए (What To Eat On Ekadashi)
एकादशी व्रत रखने वाले को फलों को खाना चाहिए। वैसे कुछ लोग इस व्रत में सेंधा नमक भी खाते हैं। कुछ लोग निर्जला भी व्रत रखते हैं। वो लोग पूजा करके पानी पी सकते हैं। जो लोग सेंधा नमक खाते हैं वो कुट्टू के आटे की पूड़ी और सिंघाड़ें के आटे का सेवन कर सकते हैं।
देवशयनी एकादशी 2022 का महत्व (Significance of Devshayani Ekadashi 2022)
ऐसी मान्यता हैं कि जितने दिन भगवान नींद में होते हैं उस समय उनके सभी अवतार क्षीरसागर में संजीवनी बूटी का निर्माण करते हैं जिससे पृथ्वी की उर्वरक क्षमता बढ़ती हैं। ज्योतिष शास्त्र में बताया गया हैं। कि जितने दिन भगवान नींद में होते हैं उस समय पूजा-पाठ या कोई भी मांगलिक कार्य आरंभ नहीं करना चाहिए। और व्यक्ति को यात्रा से बचना चाहिए।
देवशयनी एकादशी व्रत विधि (Devshayani Ekadashi Fasting Method)
- देवशयनी एकादशी के दिन सुुुबह सूर्य उदय से पूर्व स्नान करें।
- पूजा स्थल पर भगवान श्री विष्णु की मूर्ति की स्थापना करे। और पंचामृत से भगवान् की प्रतिमा को स्नान कराएँ।
- इसके बाद पूर्ण श्रद्धा भाव के साथ भगवान विष्णु का ध्यान करे और फल-फुल, धुप, दीप से भगवान् की पूजा करें।
- इस दिन एकादशी व्रत कथा सुननी चाहिए और भगवान् विष्णु की आरती कर के प्रसाद बांटना चाहिए।
- देवशयनी एकादशी व्रत के दिन नमक का सेवन नहीं किया जाता।
देवशयनी एकादशी व्रत कथा (Devshayani Ekadashi Fasting Story)
बहुत समय पहले की बात हैं सूर्यवंशी कुल में मान्धाता नाम का चक्रवर्ती राजा था। वह बहुत ही महान, प्रतापी, उदार तथा प्रजा का ध्यान रखने वाला राजा था। उस राजा का राज्य बहुत ही सुख सम्रद्ध, धन-धान्य से भरपूर था। वहाँ की प्रजा राजा से बहुत अधिक प्रसन्न थी। क्योंकि राजा अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखता था। साथ ही वह धर्मं के अनुसार नियम का पालन करने वाला राजा था।
एक दिन की बात हैं। जब राजा के राज्य में बहुत लम्बे समय तक वर्षा नहीं हुई जिस कारण से उसके राज्य में अकाल पड़ गया। जिस से की राजा अत्यंत दुखी हो गया क्योंकि उसकी प्रजा बहुत दुखी थी। राजा इस संकट से से मुक्ति चाहता था। राजा चिंतन करने लगा की उस से आखिर ऐसा कौन सा पाप हो गया हैं। राजा इस संकट से मुक्ति पाने के लिए कोई उपाय खोजने के लिए सैनिको के साथ जंगल मे जाता हैं।
राजा वन में कई दिनों तक भटकता रहा और फिर एक दिन अचानक से वे अंगीरा ऋषि के आश्रम पंहुचा। उन्हें अत्यंत दुखी देख कर अंगीरा ऋषि ने दुख का कारण पूछा। राजा ने ऋषि को अपनी और अपने राज्यवासियों की परेशानी का वर्णन सुनाया राजा ने ऋषि को बताया कि किस प्रकार उसके खुशहाल राज्य में अचानक अकाल पड़ गया। राजा ने ऋषि से निवेदन किया की हे ऋषि मुनि कोई ऐसा उपाय बताये जिस से की मेरे राज्य में सुख-सम्रद्धि वापस लौट आये।
ऋषि ने राजा की परेशानी को ध्यान पूर्वक सुना और कहा कि जिस प्रकार हम सब ब्रह्म देव की उपासना करते हैं। किन्तु सतयुग में वेद पढ़ने का तथा तपस्या करने का अधिकार केवल ब्राह्मणों को हैं। लेकिन आपके राज्य में एक शुद्र तपस्या कर रहा हैं। आपके राज्य में आज अकाल की दशा उसी कारण से हैं। यदि आप अपने राज्य को पूर्ववत खुशहाल देखना चाहते हैं। तो उस शुद्र की जीवन को समाप्त कर दीजिये।
यह सुन कर राजा को बहुत अचम्भा हुआ और राजा ने कहा कि ऋषि मुनि में आप यह क्या कह रहें हैं। मैं ऐसे किसी निर्दोष जीव की हत्या नहीं कर सकता मैं एक निर्दोष की हत्या का पाप अपने सर नहीं ले सकता। मैं ऐसा अपराध नहीं कर सकता न ही ऐसे अपराध बोध के साथ जीवन भर जीवित रह सकता हूँ। आप मुझ पर कृपा करें और मेरी समस्या के समाधान के लिए कोई अन्य उपाय बताएं।
ऋषि ने राजा को कहा कि यदि आप उस शुद्र की जीवन समाप्त नहीं कर सकते हैं। तो मैं आपको दूसरा उपाय बता रहा हूँ। आषाढ़ मास की शुक्ल एकादशी को पुरे विधि विधान एवं पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ व्रत रखे एवं पूजन आदि करें। राजा ने ऋषि की आज्ञा का पालन करते हुए अपने राज्य पुनः वापस आया तथा राजा एकादशी व्रत पुरे विधि विधान से किया हैं।
राजा के व्रत करने के फलस्वरूप राजा के राज्य में वर्षा हुई जिससे राजा के राज्य में अकाल दूर हो जाता हैं। तथा पूरा राज्य पहले की तरह ख़ुशहाल रहने लगा। ऐसा माना जाता हैं की एकादशी व्रत सभी व्रतों में उत्तम होता हैं एवं इसकी कथा सुनने या सुनाने से भी पापों का नाश होता हैं।