- Manjuraj Thakur :
नाम ही मोहन है, यानी मोहने वाला। मोदी के मन में मध्यप्रदेश के साथ मोहन भी था। तभी इस बार मध्यप्रदेश में किसी चेहरे के साथ चुनाव नहीं लड़ा गया। केन्द्रीय नेतृत्व मोदी की गारंटी को जीत की गारंटी मानकर चल रहे हैं, जबकि महिलाओं का वोट ज्यादा मिलने के पीछे मध्यप्रदेश ने लाड़ली बहना को कारण माना है। बहरहाल, अब इन बातों का कोई मतलब नहीं रह गया और कल से आज तक पिक्चर बदल चुकी है। सत्ता का सिंहासन मोहन के हवाले हो गया है।
यह लोगों के लिए चौंकाने वाला निर्णय हो सकता है, लेकिन माना जा रहा है कि मोदी के मन को मोहन मोह चुके थे। डॉ. मोहन यादव के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी अच्छे संबंध हैं, हालांकि उन्होंने इसे ज्यादा सार्वजनिक नहीं होने दिया। 1972 में कांग्रेस के प्रकाशचंद सेठी के बाद बाबा महाकाल की नगरी से मोहन यादव मप्र के दूसरे मुख्यमंत्री हैं तो प्रदेश में भी बाबूलाल गौर के बाद यादव समाज से दूसरे मुख्यमंत्री हैं।
तमाम कयासों और संभावनाओं को दरकिनार करते हुए भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने अपनी चौंकाने वाली परंपरा को कायम रखा और लीक से हटकर चौंकाने वाला निर्णय लिया है। दक्षिण उज्जैन से विधायक डॉ मोहन यादव की न चर्चा थी, न विचार विमर्श और ना कयास। कहीं से कोई संभावना भी व्यक्त नहीं की गई थी। नया नाम न सिर्फ चौंकाने वाला है बल्कि कई नए संदेशों के साथ सामने आया है। मोदी ने 2024 के समीकरण और शतरंज की बिसात बिछानी शुरु कर दी है।
डॉ. मोहन यादव मध्यप्रदेश में न सिर्फ पिछड़ों को साधेंगे बल्कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे यादव बाहुल्य राज्यों में भी उनका भरपूर उपयोग किया जाएगा। मध्यप्रदेश में भाजपा के ध्वजवाहक डॉ मोहन यादव बन गये हैं, इतनी गोपनीयता से सारा काम हुआ कि लोगों को यह चौंकाने वाला निर्णय लगा। जबकि मोदी-शाह-नड्डा की तिकड़ी के मन में यह पहले से ही चल रहा होगा। भाजपा में सारे समीकरण बदल जाना, अचानक से अर्श से फर्श पर आने के बावजूद किसी नेता का विरोध, नाराजी सामने नहीं आना, भी भाजपा की कुशल रणनीति का ही हिस्सा माना जा रहा है। जितने चेहरे सामने रखकर उनको बतौर मुख्यमंत्री देखा जा रहा था, मोहन यादव का नाम सामने आते ही सब मायूस हो गये।
बैठक में इन नेताओं को भी बता दिया गया था, हालांकि इनको भी कोई न कोई ऊंचा मुकाम देने का वादा रहा होगा, जो आगे चलकर पता चलेगा। इतना तो अवश्य है कि लोकसभा चुनाव में इन सभी क्षेत्रों के जिम्मे 29 कमल की माला पहनाने की जिम्मेदारी आ गयी है। यदि इनको अपनी यही छवि बनाये रखना है तो आज से ही मुख्यमंत्री की कुर्सी को केवल डॉ. मोहन यादव के लिए ही मानकर अपने-अपने क्षेत्र में पार्टी को जिताने की जिम्मेदारी तय कर लेना चाहिए।
पूरे मध्यप्रदेश के हुए मोहन डॉ. मोहन यादव, अब केवल दक्षिण उज्जैन के विधायक नहीं, संपूर्ण मध्यप्रदेश के हो गये हैं। विकास की नैया के खेवनहार। संघ के स्वयंसेवक मोहन यादव ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में रहते हुए पार्टी के लिए काम करने के दौरान संघ के निर्देश पर राजनीतिक गतिविधियों से विश्राम लेकर उन्होंने कुछ वर्षों तक संघ के लिए समर्पित भाव से कार्य किया है और संघ के दक्ष स्वयंसेवक होने के साथ-साथ प्रशिक्षित कार्यकर्ता भी हैं। उनका व्यक्तित्व भी कई विशेषता लिए हुए है। वे बीएससी, विधि स्नातक, कला के विषय राजनीति शास्त्र से पीएचडी और एमबीए के उपाधिधारक भी हैं। छात्र जीवन से ही राजनीति का ककहरा सीखकर इस ओहदे तक पहुंचे हैं।
चुनौतियां कम नहीं हैं नये मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के समक्ष चुनौतियां कम नहीं हैं। मध्यप्रदेश आर्थिक मोर्चे पर अच्छी स्थिति में नहीं है, उसे संभालना किसी चुनौती से कम नहीं है। उनको अपनी मजबूत टीम तैयार करनी होगी, जो उनको हर कदम पर उचित और अनुचित की जानकारी दे। मध्यप्रदेश कर्ज में है, उसे इससे उबारने के अलावा कर्मचारियों के वेतन को समय पर करना, चुनावी घोषणाओं को पूरा करने के लिए भी फंड का इंतजाम करना, जनप्रिय बनने के लिए वर्तमान में चल रही योजनाओं को जारी रखकर निवृतमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तरह लोकप्रियता, सक्रियता और सफलता के कीर्तिमान स्थापित करना भी बड़ी चुनौती है।
अब बधाई गीत का दौर जब खत्म होगा तो ये सारी चुनौतियों से सामना होगा, इसके लिए धैर्यपूर्वक, सबके सहयोग, सुझावों के साथ प्रदेश को आगे बढ़ाने की तैयारी अपने मन में पहले से करके रखनी होगी। वे केन्द्रीय नेतृत्व के इस फैसले को सही साबित करेंगे, यही अपेक्षा होना चाहिए।
उनकी सफलता के लिए नर्मदांचल टीम की ओर से शुभकामनाएं।
मंजूराज ठाकुर
9424482884