केदारनाथ ज्योर्तिलिंग प्रलय भी जिसका कुछ नहीं बिगाड़ पाया

Post by: Rohit Nage

इटारसी। श्री दुर्गा नवग्रह मंदिर (Shri Durga Navgraha Temple) में द्वादश पार्थिव ज्योर्तिलिंग का पूजन, अभिषेक एवं एक लाख रूद्रि निर्माण के तहत केदारनाथ ज्योर्तिलिंग (Kedarnath Jyotirlinga) का पूजन एवं अभिषेक मुख्य यजमान मोनिका राजभूषण चौहान (Monica Rajbhushan Chauhan) ने किया।

इस मौके पर मुख्य आचार्य पंडित विनोद दुबे (Acharya Pandit Vinod Dubey) ने कहा कि भगवान शिव (Lord Shiva) की भक्ति में ही शिव की शक्ति छिपी हुई है। शिव दाता भी है और तांडवकर्ता भी। शिव के बिना सृष्टि कैसी और सृष्टि के बिना शिव कैसे। सावन मास में ज्योर्तिलिंग का पूजन और अभिषेक अपनी अलग मान्यता रखता है। बारह ज्योर्तिलिंगों के पूजन और अभिषेक के अंतर्गत केदारनाथ ज्योर्तिलिंग का पूजन अभिषेक संपन्न हुआ। पं. विनोद दुबे ने कहा कि कौरव-पांडवों के युद्ध में अपने लोगों की अपनों द्वारा ही हत्या हुई। पापलाक्षन करने के लिए पांडव तीर्थ स्थान काशी पहुंचे। परंतु भगवान विश्वेश्वरजी उस समय हिमालय (Himalaya) के कैलाश (Kailash) पर गए हैं, यह सूचना उन्हें वहां मिली। इसे सुन पांडव काशी (Kashi) से निकलकर हरिद्वार (Haridwar) होकर हिमालय की गोद में पहुंचे। दूर से ही उन्हें भगवान शंकरजी के दर्शन हुए। परंतु पांडवों को देखकर भगवान शिव शंकर वहां से लुप्त हो गए। यह देखकर धर्मराज बोले, ‘है देव, हम पापियों को देखकर शंकर भगवान लुप्त हुए हैं। प्रभु हम आपको ढूंढ निकालेंगे। आपके दर्शनों से हम पाप विमुक्त होंगे। हमें देख जहां आप लुप्त हुए हैं वह स्थान अब ‘गुप्त काशी’ ( ‘Gupta Kashi’) के रूप में पवित्र तीर्थ बनेगा।

पांडव गुप्त काशी (रूद प्रयाग) से आगे निकलकर हिमालय के कैलाश, गौरी कुंड (Gauri Kund) के प्रदेश में घूमते रहे और भगवान शिव शंकर को ढूंढते रहे। इतने में नकुल-सहदेव को एक भैंसा दिखाई दिया उसका अनोखा रूप देखकर धर्मराज ने कहा कि शंकर ने ही यह भैंसे का रूप धारण किया हुआ है, वे हमारी परीक्षा ले रहे है। ’ गदाधारी भीम उस भैंसे के पीछे लग गए। भैंस उछल पड़ा, भीम के हाथ नहीं लगा। अंतत: भीम थक गए। फिर भी भीम ने गदा प्रहार से भैंसे को घायल कर दिया। घायल भैंसा धरती में मुंह दबाकर बैठ गया। भीम ने उसकी पूंछ पकडक़र खींचा। भैंसे का मुंह इस खींचातानी से सीधे नेपाल (Nepal) में जा पहुंचा। भैंसे का पार्श्व  भाग केदारनाथ में ही रहा। नेपाल में वह पशुपति नाथ (Pashupati Nath) के नाम से जाना जाने लगा।

महेश के उस पार्श्व  भाग से एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई। दिव्य ज्योति में से शंकर भगवान प्रकट हुए। पांडवों को उन्होंने दर्शन दिए। शंकर भगवान के दर्शन से पांडवों का पापहरण हुआ। शंकर भगवान ने पांडवों से कहा, ‘मैं अब यहां इसी त्रिकोणाकार में ज्योर्तिलिंग के रूप में सदैव रहूूंगा। केदारनाथ के दर्शन से मेरे भक्तगण पावन होंगे। ’ केदारनाथ की महिमा बताते हुए पं. विनोद दुबे ने कहा कि उत्तराखंड के हिमाच्छादित क्षेत्र में केदारनाथ विराजित है। वैशाख से लेकर आश्विन माह तक श्रद्धालु केदारनाथ की यात्रा कर सकते है। बाद में पट बंद कर दिए जाते है। कार्तिक माह में शुद्ध घी का नंदा दीपक जलाकर भगवान को नीचे उखी मठ लाया जाता है। वैशाख में जब बर्फ पिघल जाती है तब केदारनाथ के पट पुन: खोल दिए जाते हैं। केदारनाथ का मार्ग अति जटिल है। फिर भी यात्री यहां पहुंचते हैं। कुछ वर्षों पूर्व केदारनाथ क्षेत्र में आपदा आई लेकिन केदारनाथ शिवलिंग का कुछ भी नहीं बिगड़ा यह शिव का ही चमत्कार है।

Leave a Comment

error: Content is protected !!