पर्व विशेष -पोला -पारंपरिक रूप से कृषकों का त्योहार

Post by: Manju Thakur

# अभिषेक तिवारी :
पोला पर्व मनाया जा रहा है। पारंपरिक रूप से कृषकों का यह त्योहार खेती में सहायक बैलों को सजा-धजा कॄतज्ञतापूर्वक पूजा करके मनाया जाता है। पहले काफी उत्साह उमंग होता था… पहले बैल भी होते थे, अब तो बस सांड ही दिखते हैं सड़कों, गलियों में लावारिस भटकते।
बैल जोड़ी किसान का मान-प्रतिष्ठा का परिचायक थी, बैल विश्वसनीय साथी थे, गरीब किसान हो या जमींदार बैल सबके लिए बड़ी पूँजी थे, सम्मान थे। गाय गोरस देकर पालन करने वाली माता थी तो अन्न उपजाकर जग का पेट भरने वाले किसान के पीछे बैल का अथक, सतत परिश्रम होता था। बैल परिवार के सदस्य होते थे, जीवनभर श्रम करनेवाले बैल को बूढ़ा होने पर किसान कई साल बैठा कर चारा खिलाता था पर लावारिस नहीं छोड़ता था। मुंशी प्रेमचन्द जी की प्रसिद्ध कहानी हीरा-मोती किसान और बैलों के संबंध उजागर करती है।
हरित क्रांति ने खेती के मशीनीकरण पर जोर दिया। पैदावार बढ़ गयी… ट्रेक्टर, खाद, जहरीली दवा, विदेशी संकर बीज सब आ गये और बैल कहीं खो गये… उपज के साथ लागत भी बढ़ी। बड़ी जोत में तो समझ आता है पर छोटे किसान भी महंगी मशीनों का उपयोग करने लगे। ट्रेक्टर उपयोग से ज्यादा शान की वस्तु हो गया, भले ही चुका न पाएं पर कर्ज लेकर सबने ट्रेक्टर अपना लिए और बैल बोझ बन गए।

pola festival 1
जनसंख्या बढ़ने के साथ दूध की खपत और उत्पादन दोनों बढ़ते गए। डेरी व्यवसाय बहुत बड़ी ‘इंडस्ट्री’ बन चुका है, अधिक से अधिक उत्पादन के लिए ज़्यादा संख्या में गायें चाहिए और इस श्रृंखला में बैल सिर्फ एक अनुपयोगी बाय-प्रोडक्ट बनकर रह गया जो या तो सड़को पर भटककर वेदनामयी मौत की प्रतीक्षा करता है या कत्लखानों में काटने के लिए पहुंचा दिया जाता है। केवल कानून से कुछ नहीं होगा, गोहत्या निरोध हेतु इस विषय पर चिंता करना आवश्यक है।

यहाँ इस बात को समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि हमारे बहुत से आदिवासी किसान भाई अभी भी जोड़ी बैल से खेती करते है। मध्यप्रदेश में बैतूल के भारत-भारती गोशाला प्रकल्प में गौमाता के साथ बैलों का भी पोषण-संरक्षण होता है। भारत के इक्का दुक्का क्षेत्रों में बैलों की उपयोगिता आज भी प्रासंगिक है और संभव हो तो छोटे किसान बैलों का उपयोग कर सकते हैं।
बंगलुरु के निकट एक दंपत्ति जो अपनी शानदार कॉर्पोरेट नौकरी छोड़कर सफलता के साथ जैविक कृषिफार्म चला रहे हैं केवल बैलों से ही अपनी करीब 32 एकड़ खेती जोतते हैं, और भी कई उदाहरण हैं। पहले की तरह तो सम्भव नहीं परंतु इस दिशा में सोचकर हम अपने बहुत पुराने मित्र बैल को कुछ तो कृतज्ञता ज्ञापित कर ही सकते हैं।।

ऋग्वेद में एक श्लोक है…

गो में माता ऋषभः पिता में दिवं शर्म जगती मे प्रतिष्ठा॥
‘गाय मेरी माता, बैल मेरा पिता, यह दोनों मुझे स्वर्ग और जगत में सुख प्रदान करें। गौओं में मेरी प्रतिष्ठा हो।’

Abhishek Tiwari

अभिषेक तिवारी
9860058101

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