साँची स्तूप के इतिहास के बारे में जानें रोचक बातें

Post by: Aakash Katare

साँची स्तूप

साँची स्तूप कहां स्थित हैं, साँची स्तूप का इतिहास, साँची स्तूप की संरचना, शिलालेख, सांची स्‍तूप के बारे में रोचक तथ्‍य, साँची स्तूप प्रवेश शुल्क, साँची स्तूप हवाई मार्ग से कैसे पहुंचे, साँची स्तूप गुमने का सबसे अच्छा समय, जाने सम्‍पूर्ण जानकारी 

साँची स्तूप कहां स्थित हैं (Where is Sanchi Stupa located)

साँची स्तूप भोपाल से 46 किलोमीटर और विदिशा से 10 किलोमीटर रायसेन जिले में स्थित हैं। यह स्तूप को देखने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं। इस स्‍तूप का केन्द्र एक अर्ध गोलाकार ईंट से निर्मित ढांचा हैं जिसमें भगवान बुद्ध के कुछ अवशेष रखे गये हैं। इसके शिखर पर स्मारक को दिये गये ऊंचे सम्मान का प्रतीक माना जाता हैं।

साँची स्तूप का इतिहास (History of Sanchi Stupa)

साँची स्तूप का निर्माण कार्य तीसरी शताब्‍दी ईशा पूर्व में सम्राट अशोक ने शुरू करवाया था जिसका निर्माण कार्य 12 वी शताब्दी ईशा पूर्व तक चला। इसके बाद समय-समय पर कई राजाओं ने इसके निर्माण कार्य में अपनी भूमिका निभाई हैं

यह भी पढें : इंदौर के 5 खूबसूरत पर्यटन स्‍थल

शुंगा काल (Shunga period)

दूसरी शताब्दी में इस स्‍तूप को कही-कही से तोडा-फोड़ दिया था। जिसे शुंगा के सम्राट ने पुष्यमित्र शुंगा ने मौर्य साम्राज्य का आर्मी जनरल बनकर अपना लिया और इसे पत्थरो से ढँका था। ऐसा कहा जाता हैं कि पुष्यमित्र ने ही साँची स्तूप को तोडा था। इसके बाद उनके बेटे अग्निमित्र ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। इसके बाद शुंगा के शासनकाल में इस स्तूप को पत्थरो से सजाया गया इसके बाद यह स्‍तूप वास्तविक आकर से और भी ज्यादा विशाल हो गया।

सतावहना काल (Distress period)

साँची स्तूप के द्वार और कटघरों को रगनें का कार्य सतावहना काल में किया गया था। कहा जाता है कि द्वार पर बनायी गयी कलाकृतियाँ और द्वारो के आकार को सतावहना के राजा सताकरनी ने ही निर्धारित किया था। साँची के द्वार और कटघरों का निर्माण 180-160 सदी से भी पहले बनाये गए थे। साँची स्तूप में बुद्ध के जीवन से संबंधित कुछ घटनाये भी वहा प्रदर्शित की गयी है। जिन्‍हें देखकर आसानी से बुद्ध के जीवन को समझा जा सकता हैं।

साँची स्तूप की संरचना (Structure of Sanchi Stupa)

साँची स्तूप

साँची स्तूप का नाभिक गोलार्द्ध ईट की संरचना के रूप में भगवान बुद्ध के अवशेषों के ऊपर बनाया गया है जिसके आधार पर एक उभरी हुई छत, शिखर पर एक रेलिंग और पत्थर की छत्री होने से एक छत्र जैसी संरचना बनती है यह लगभग 16.5 मीटर लंबा है, और इसका व्यास 36 मीटर हैं। जो उच्च कोटि की प्रतीत होती है। जिसकी मूल संरचना का व्यास वर्तमान संरचना का आधा हैं।

साँची स्तूप की मूल संरचना में ईंट का बहुत कम उपयोग किया गया था। सम्राट अशोक के संघ की उत्पत्ति पड़ोसी शहर विदिशा से हुयी थी। इस खूबसूरत ईमारत के निर्माण के लिए यही से मजदूर बुलवाए गए थे। इस तरह विदिशा के निवासियों ने इस ईमारत के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी।

शिलालेख (Inscription)

  • साँची के स्तूप में बहुत से ब्राह्मी शिलालेख लिखे हुए हैं। जिन्‍हे कुछ लोगो के डोनेशन देकर भी लिखवाये गए है, वहाँ बने सभी शिलालेख इतिहासिक वास्तुकला को दर्शाते है। सन् 1837 में जेम्स प्रिन्सेप ने इसका वर्णन अपने लेखो में भी किया था।
  • डोनेशन देने वाले लोगो के रिकॉर्ड को देखकर यह पता चला की ज्यादातर डोनेशन देने वाले लोग स्थानिक लोग ही थे, और बाकी उज्जैन, विदिशा, कुरारा, नदिनगर, महिसती, कुर्घरा, भोगावाधन और कम्दगीगम से थे।
  • शिलालेखो में मौर्य, शुंगा, सतावहना (175 BC – 15 AD), कुषाण (100 – 150 AD), गुप्त (600 – 800 AD) कालीन शिलालेख भी शामिल है।
  • साँची का स्तूप बहुत ही प्राचीन है। बौद्ध धर्म के लोगो के लिये यह एक पावन तीर्थ के ही समान हैं।
  • साँची के स्तूप शांति, पवित्रतम, धर्म और साहस के प्रतिक माने जाते है। सम्राट अशोक ने इसका निर्माण बौद्ध धर्म के प्रसार-प्रचार के लिये किया था।
  • आज भी इस स्थान का मुख्य आकर्षण बौद्ध धर्म और भगवान गौतम बुद्धा से जुडी चीजे ही है। बौद्ध धर्म का प्रचार करने वालो के लिये यह एक मुख्य जगह है। भारत में सभी धर्म के लोग इस स्तूप का काफी सम्मान करते हैं।

सांची स्‍तूप के बारे में रोचक तथ्‍य (Interesting facts about Sanchi Stupa)

साँची स्तूप

  • साँची स्तूप की खोज सन् 1818 में एक ब्रिटिश अधिकारी जनरल टेलर ने की थी।
  • साँची स्तूप में भारत में सबसे पुरानी पत्थर की संरचना है, जिसका निर्माण तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक मोर्य ने कराया था। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने सर जॉन मार्शल को इसके पुनर्निर्माण का कार्यभार सौंपा और वर्ष 1912-1919 तक इस स्तूप की संरचना कर इसे पुन: खड़ा किया।
  • साँची स्तूप भारत के सबसे बड़े स्तूपों में से एक है, जिसकी ऊंचाई लगभग 64 मीटर और व्यास 36.5 मीटर हैं।
  • साँची स्तूप के निकट सबसे प्रसिद्ध अशोक स्तंभ, जिसमें सारनाथ की तरह चार शेर शामिल हैं यहां बड़ी संख्या में ब्राह्मी लिपि के शिलालेख पाए गए हैं।
  • सांची का गौतम बुद्ध द्वारा कभी भी दौरा नहीं किया गया था, भले ही आज इस स्‍तूप में बौद्ध धर्म का अपना एक ऐतिहासिक महत्व हो।
  • इस स्तूप का निर्माण बौद्ध अध्ययन और बौद्ध शिक्षाओं को सिखाने के लिए किया गया था।
  • यूनेस्को ने सांची के स्तूप की संरचना और शिल्पकारिता को देखते हुए सन् 1989 में इसे विश्व धरोहर घोषित किया था।

साँची स्तूप का प्रवेश शुल्क (Sanchi Stupa Entrance Fee)

  • 0–15 साल के बच्चे निशुल्क
  • भारतीय नागरिक – 30 रूपये प्रति व्यक्ति
  • विदेशी नागरिक – 500 रूपये प्रति व्यक्ति

साँची स्तूप गुमने का सबसे अच्छा समय (Best time to visit Sanchi Stupa)

साँची स्तूप

साँची स्तूप घूमने के लिए सबसे समय अक्टूवर से मार्च तक है क्यूंकि इस दौरान तापमान कम रखता हैं। इसके बाद तापमान बढ़ जाता है बारिश के मौसम में यहा घूमने के लिए बहुत ही अच्‍छा हैं।

साँची स्तूप घूमने का समय सुबह 8:30 से शाम के 5:30 तक

हवाई मार्ग से कैसे पहुंचे (How to reach Sanchi Stupa by Air)

साँची से लगभग 46 कि.मी. की दूरी पर भोपाल में राजाभोज हवाई अड्डा सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है। आप भोपाल हवाई अड्डा पहुँच कर बस, टैक्सी से साँची पहुँच सकते हैं।

ट्रेन से कैसे पहुंचे (How to reach Sanchi Stupa by Train)

साँची का अपना कोई रेल्‍वे स्‍टेशन नहीं है ट्रेन से जाने के लिए आपको भोपाल या हबीबगंज रेलवे स्टेशन जाना होगा यहा से आप साँची आसानी से पहुँच सकते हैं।

रोड मार्ग से कैसे पहुंचे (How to reach Sanchi Stupa by Road)

भोपाल या इंदौर मार्ग से आप साँची आसानी से  पहुँच सकते हैं।

Leave a Comment

error: Content is protected !!