: पंकज पटेरिया –
और फिर मध्यप्रदेश सरकार के पुरातात्विक ऐतिहासिक धरोहरों के उदास चेहरे को धो पोंछ कर, फिर वही राजशाही वैभव और खूबसूरती लौटाने के महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट के तहत प्रदेश भर में राजा महाराजाओं, नवाबों के दौर के किले मंदिर मस्जिद स्मारको को साज सिंगार कर सुरक्षित बनाए रखने के भगीरथ प्रयास के चमकदार नतीजे सामने आने लगे हैं। इसी अभियान के तहत राजधानी में ताजमहल के बाद नवाबी दौर की बेहद खूबसूरत इमारत गोलघर की खूबसूरती में सरकार के पर्यटन विभाग ने चार चांद टांक कर फिर उसके सौंदर्य को लौटा दिया।
15 मार्च शुकवार प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने इसके नए स्वरूप का लोकार्पण किया। उन्होंने आश्वस्त किया कि बहुत जल्द ही एक संग्रहालय और अनुसंधान केंद्र भी यहां स्थापित किया जाएगा। करीब डेढ़ सौ साल से भी ज्यादा पुराना गोलघर का नाम गुलशन ए आलम रहा था, लेकिन गोलाकार स्वरूप के कारण यह गोलघर के रूप में लोकप्रिय हुआ। गोलघर को 19वीं सदी में नवाब शाहजहां बेगम ने बनवाया था। यहां उनका सचिवालय हुआ करता था। बाद में उनकी बेटी सुल्तान जहां बेगम ने भी इसे अपना दफ्तर बनाया था। इस नायाब इमारत में बत्तीस दरवाजे बनाए गए। ताकि जरूरतमंद को दान करने वाले की सूचना एक दूसरे को पता ना लगे।
1668/1901 में यह खूबसूरत भवन बनवाया गया था। बताया जाता है कि बेगम साहिबा को दिल्ली दरबार में हर हाईनेस क्वीन विक्टोरिया ने मुलाकात के लिए बुलाया था, जाने के पहले बेगम ने यहां सारे खिड़की दरवाजे बंद करके बया पक्षी छोड़ दिए थे, और उन कमरों में चांदी सोने की जरी वाले रेशमी और मखमली कपड़े डलवा दिए थे। बया पक्षियों ने इन्हीं कपड़ों में से सोने चांदी के तार निकाल कर खूबसूरत घोसला बना दिए थे। इन्ही घोंसला मे से एक बेहद खूबसूरत घोसला बेगम साहिबा ने क्वीन विक्टोरिया को बतौर गिफ्ट दिया था।
बताया यह भी जाता है कि कभी यहां चिड़ियाघर भी बनाया गया था। रोज शाम संगीत की महफिल भी सजती थी। 60 के दशक में यहां जनसंपर्क विभाग का दफ्तर होता था। उसी दौर में कीर्ति शेष अनंत मराल शास्त्री, हनुमान प्रसाद जी तिवारी डायरेक्टर हुआ करते थे। अपर संचालक से सेवानिवृत हुए और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पहले निदेशक स्वर्गीय अरविंद चतुर्वेदी भी इसी गोलघर दफ्तर में जनसंपर्क अधिकारी थे। वरिष्ठ कवि जीवन लाल वर्मा विद्रोही, राजेंद्र अनुरागी, बटुक चतुर्वेदी, राजेंद्र जोशी आदि भी यही सेवारत थे।
मैं उन दिनों अध्यनरत था और अपने बड़े भाई वरिष्ठ साहित्यकार आकाशवाणी की प्रसार अधिकारी स्वर्गीय श्री मनोहर पटेरिया मधुर के पास रहता थ। शॉर्टकट के मोह में दिन में कई बार 12 महल से लगे गोलघर के एक दरवाजे से मैं और अन्य बच्चे दौड़ते भागते आते जाते थे। घने दरख़्तों की छाया में स्थित इस इमारत का एक जादुई आकर्षण हमें बांधे रहता था। अधिकतर और साहित्यकार भाई साहब मित्र थे। लिहाजा मुझे भी उन सब लोगों का बडा स्नेह प्यार प्राप्त था और शायद इसी से किशोर अवस्था से मेरा साहित्य और पत्रकारिता के प्रति मोह जागा था।
बहरहाल भविष्य में गोलघर शिल्पकला, संगीत और व्यंजनों के एक केंद्र के रूप में स्थापित होगा जाहिर है। राजधानी और प्रदेश के लोगों के लिए यह सरकार का बड़ा तोहफा है। भविष्य में संग्रहालय में पूरा वस्तुएं भी हमें देखने को मिलेगी।

पंकज पटेरिया
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार
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