: पंकज पटेरिया –
विश्व प्रसिद्ध राम राजा की ऐतिहासिक नगरी ओरछा…इसी ओरछा में राम राजा मंदिर परिसर में, फूल बाग में सुंदर हरे भरे पेड़ो के मंडप में स्थित है हरदौल लला जी का समाधि मंदिर, जहां विराजे हैं हरदोल जी महाराज। उनके भव्य प्रतिमा के सामने उनका मुद्गल और प्रतीक के रूप में पत्थर का बहुत बड़ा प्याला रखा है।
भारत भर,बल्कि बुंदेलखंड के उत्तर प्रदेश के निवासियों के परिवारों में देव रूप पूजे जाने वाले हरदौल लला। शादी विवाह के समय पहला निमंत्रण पत्र और भात, पान बताशे इस समाधि मंदिर मे रखने की परंपरा है। ओरछा के साथ अन्य स्थानों पर भी हरदौल जी के मंदिर अथवा स्मृति स्थल है। बहरहाल भारतीय मानस में लोक देवता रूप में बिराजे हरदौल के बलिदान की बहु प्रचलित कहानी यही है।
ओरछा का राजपाट अपने बड़े भाई ओरछा के महाराजा जुझार सिंह जो मुगल दरबार में रहने से हरदोल जी महाराज संभालते थे। वे बहुत कुशल शासक, वीर योद्धा, दयालु और प्रजा के सुख दुख की चिंता करने वाले लोक प्रिय राजा थे। अपनी भाभी चंपावती जो जुझार सिंह की पत्नी की पत्नी थी उनसे पुत्रवत, माता जैसा प्रेम करते थे। महाराजा जुझार सिंह से ईर्षा रखने वाले मुगल शासको के लिए इतना काफी था क्योंकि वह ओरछा हड़पना चाहते थे। लेकिन हरदौल जी के करण यह नामुमकिन था। लिहाजा उन्होंने षडयंत्र कर जुझार सिंह के कान भर दिए तुम्हारे भाई हरदौल और पत्नी चंपावती के बीच में अवैध संबंध है। इसकी परीक्षा लेने के लिए जुझार सिंह ने रानी चंपावती से हरदौल को भोजन में विष देने निर्देश दिया। चंपावती ने सब तरह से महाराज को समझाया लेकिन वे अपनी शर्त पर पड़े रहे तो महारानी ने रोते हुए हरदौल जी को सारी बात बताई और भोजन में विष दे दिया। देवर हरदोल जी ने सच्चाई जानने के बाद भी मां जैसी भाभी के पवित्र की रक्षा करने हंसते-हंसते विष युक्त भोजन कर लिया और अपने प्राण त्याग दिए।
मान्यता है उनकी मृत्यु के बाद उनकी बहन उनके समाधि स्थल पर भांजे की विवाह के लिए न्योता देने और फूट-फूट कर रोने लगे समाधि पर से जब तक तुम आश्वासन नहीं दोगे मैं यही कर पीट-पीट कर अपने प्राण त्याग दूंगी। बताते हैं उसी क्षण समाधि से आवाज आई जीजी जाओ हम शादी में आएंगे।हरदौल की भांजे की शादी में गए थे। तब से परंपरा चली आ रही है कि शादी विवाह समारोह में बात मांगने की प्रार्थना के साथ उन्हें आमंत्रित किया जाता है। हरदौल जी आते हैंकिसी न किसी रूप में और मंगल का रज निर्भीघ्न संपन्न करवाते हैं। यह भी मानता है शादी के समय आंधी तूफान के समय प्रार्थना करने से उस संकट को भी टाल देते हैं।
बहरहाल इन्हीं हरदौल लला की कृपा से निसंतान दंपतियों को संतान प्राप्ति होती है। उस लिए संतान की चाह की कामना से यही ओरछा मे हरदौल जी के मंदिर लोग मनोती करने आते रहते है, और फिर मनौती पूरी होने गोद भरने के बाद पहला पालना इधर चढ़ते हैं। प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में इस लेखक ने फूल बाग में हरदौल जी के मंदिर के सामने पेड़ पर सैकड़ो बच्चों के पालने अथवा झूले देखे हैं। यह परंपरा आज भी चली आ रही है। अपने ओरछा प्रवास के दौरान अनेक लोगों ने बताया की हरदोल लला की कृपा से हर मां की झोली भरती है।
पंकज पटेरिया
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार
9340244352