पंकज पटेरिया। अतीत यानी कल के गर्भ में दफन टाइम कैप्सूल जिसे हिंदी में काल पात्र कहते है, की कल कल आज की सतह पर फिर नदी बन बहने लगी है। इन दिनों श्री अयोध्या जी मे बन रहे राम लला जी के मंदिर की नीव में रखे जाने को लेकर सोशल मीडिया के जरिए, चर्चा का केंद्र बना है। राम लला मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य श्री कामेश्वर चोपाल ने इस आशय का दावा किया है, हालाकि क्षेत्र महा सचिव इसे अफवाह बताते है। दोनो के कथन सोशल मीडिया की थाली से घर घर सर्व हो गए। चोपाल जी का कहना यह भी है, कि काल पात्र बनाम टाइम कैप्सूल मंदिर की नीव में दो हजार फिट गहराई में रखा जाएगा। आगे बाते भविष्य के गर्भ में छिपी है।
दरअसल काल पात्र विशिष्ठ सामग्री से निर्मित एक पात्र होता है,जिसमे अपने समय के घटना क्रम महत्वपुण उपलब्धियो अभिलेख प्रमाणिकता के साथ रख कर जमीन के भीतर गाड़ दिया जाता है। जो अपने समय का जीवंत प्रमाणिक भावी दस्तावेज बनता है। स्वतंत्र भारत में पहले पहल टाइम कैप्सूल की चर्चा तात्कालिक प्रधान मंत्री स्व इंदिरा गांधी के कार्यकाल मे गूंजी थी। बताते अपने पच्चीस वर्ष के कार्य काल के दौर मे लाल किला में काल पात्र के कही गड़वाया था ,जिसे लेकर देश की राज नीति मे बड़ा बवाल मंचा था। लेकिन स्व मुराराजी भाई देसाई जब प्रधानमंत्री बने तो उन्हों ने उसे उखड़वा दिया था। बाद में काल पात्र की चर्चा कभी सुनी नही गई। वास्तव मे उस काल पात्र मे श्रीमती गांधी जिसे उन्होंने 15,अगस्त 73 को जमीदोज किया गया था, क्या रखा गया था, यह रहस्य ही रहा। आरोप प्रत्यारोप के तीर जरूर खूब चले, पर बह मेटर मिस्ट्री ही रहा। मुरारजी भाई के निकलवा देने के बाद उस पर विराम ही रहा। कभी चर्चा ही नहीं चली। बहरहाल टाइम कैप्सूल की बड़ी अहमियत होती है। आज के वक्त की धड़कन सैकड़ों वर्ष बाद भविष्य में काल पात्र के पट खोल सुनी जा सकती, महसूस की जा सकती है। यदि आज का काल पात्र मे रखा जाता है तो आज की कल कल भावी नदी के प्रवाह में आने बाली पीढ़ी अनुभव करेगी।
आज की शिराओं में कल बहता महसूस होता है तो कल की शिराओं में आज कल बहेगा इसमें कोई हैरानी नहीं होना चाहिए।
पंकज पटेरिया संपादक शब्द ध्वज
ज्योतिष सलाहकार।
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