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Memoirs: मेरे अग्रज, मेरे गुरु भी थे मधुरजी

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नर्मदापुरम। वरिष्ठ साहित्यकार, स्व. मनोहर पटेरिया मधुर मेरे बड़े भाई, मेरे गुरु भी थे। हम लोग उन दिनों पुन: लौटकर बाबा, दादा की बस्ती इटारसी आकार निवास करने लगे थे। यह 53-54 की बात है। भाई साहब की स्कूली शिक्षा फ्रेन्ड्स स्कूल में हुई तब मेट्रिक की बोर्ड परीक्षा में उन्होंने दो विषय में ऑनर्स के साथ मेरिट में स्थान पाया था। पेपर में नाम आना उन दिनों बहुत बड़ी बात थी। हमारे प्रिंसिपल परमहंस साहब ने शोभायात्रा निकालकर अपने प्रिय छात्र का सम्मान कर हौसला बढ़ाया था। भाई साहब बहुत अच्छे डिबेटर थे। दूर-दूर प्रतिस्पर्धा में भाग लेकर उन्होंने पुरस्कार जीते, स्कूल शहर और प्रदेश का नाम रोशन किया। एमजीएम कॉलेज के भी विद्यार्थी रहे। आगे का एजुकेशन उनका भोपाल में हुआ।
इटारसी में कुछ समय अध्यापक भी रहे, फिर आकाशवाणी भोपाल केंद्र में नियुक्ति होने पर वहीं उच्च शिक्षा भी पूरी की। हमारे पूर्वज दूसरे महायुद्ध में बुंदेलखंड के कंदेरी रियासत छोड़कर कुछ समय सागर रहकर इटारसी आ गए थे, जहां उनका बड़ा कारोबार था। पूज्य पिताजी स्वर्गीय श्री गणेश प्रसाद पटेरिया ब्रिटिश दौर में रेलवे में मेलगार्ड थे, लिहाजा इटारसी से चले गए थे। भाई साहब का जन्म 1940 में आमला में हुआ था। प्राइमरी शिक्षा उनकी नागपुर, उज्जैन में हुई थी, इसके बाद इटारसी में कुछ वर्ष और फिर भोपाल। कविता के संस्कार पूज्य बाबूजी और कीर्तिशेष प्रदेश के गृहमंत्री रहे ब्रजकिशोर पटेरिया और यशस्वी साहित्यकार अग्रज डॉक्टर परशुराम शुक्ल विरही जी से मिले। उज्जैन में रहते हुए उन्हें महाकवि डॉ शिवमंगल सिंह सुमन जी से आशीर्वाद मिला किशोरवय में लिखी किसी काव्य प्रतियोगिता में प्रस्तुत कविता पर चांदी का गिलास पुरस्कार स्वरूप मिला था। उनकी काव्य प्रतिभा को कालजई अमर गीतकार विपिन जोशी ने निखारा और वे चतुर्दिक यश कीर्ति की ध्वजा लिए आगे बढ़ते रहे। उस दौर में नीरज जी, रामस्वरूप सिंदूर बालकवि बैरागी, गिरिवर सिंह भंवर, भवानी प्रसाद मिश्र, अंचल दिनकर, और अपने समकालीन कवि राजेंद्र अनुरागी, नत्थू सिंह चौहान, सोम ठाकुर, चंद्रसेन विराट आदि के साथ अखिल भारतीय स्तर पर कवि सम्मेलनों में मंच साझा करते थे। भाई साहब लब्ध प्रतिष्ठित समालोचक भी थे। उन्होंने दिनकर जी से लेकर अंचल जी सहित अनेक अग्रज पीढ़ी के साहित्यकारों और अपने समकालीन कवि मित्रों की पुस्तकों की बेबाक समीक्षा की थी।
इस मामले में वे बहुत निष्पक्ष रहते थे, और उन्होंने कविताओं में मुझे भी कभी बख्शा नहीं। मेरी दूसरी या तीसरी 2011 में प्रकाशित गजल संग्रह समुंदर आंखों में भी उन्होंने आशीर्वाद दिया था। स्टेशनगंज स्कूल कक्षा तीसरी में 50 के दशक में उन्होंने मुझे पढ़ाया भी। आम विद्यार्थियों की तरह मुझे भी लेते थे। बहुत अनुशासन प्रिय थे। आकाशवाणी में चौपाल और युद्ध के कार्यक्रम उनकी संयोजन में राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हुए थे। उन दिनों भोपाल में पढ़ता था, आकाशवाणी जैसे महत्वपूर्ण संस्थान में रहते हुए भारत सरकार से उन्हें परिवार नियोजन कार्यक्रम के संयोजन और प्रदेश भर में प्रचार प्रसार काम महत्वपूर्ण दायित्व दिया गया था। वे फील्ड रिपोर्टिंग ऑफिसर थे। अविभाजित मध्य प्रदेश भर का दौरा करते थे। उसी दौर में वह आदिवासी बहुल जिले के मंडला के एक दूरस्थ गांव स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे। वहां उन्हें नेपाली एक दुखियारी महिला एएनएम मिली, जो अपनी छोटी बहन के साथ बहुत ही प्रतिकूल परिस्थिति में काम करने पर मजबूर थी।
मधुर जी के सद्व्यवहार से फूट पड़ी और अपनी पीड़ा की व्यथाकथा सुना फूट-फूट कर रोने लगी। वह बोली आप मेरे पिता जैसे हैं, मुझे इस नरक से निकालिए। संवेदनशील भाई साहब तुरंत उसे बहन माना और अपने साथ भोपाल ले आए। परिवार में वह बिल्कुल हमारी सगी बहन जैसी रही। भाई साहब ने अपने संपर्कों से उसका तबादला भोपाल करा दिया। उसकी मर्जी से उसका विवाह भी यहां सरकारी नौकरी में प्रतिष्ठित संस्कारवान सेवारत एक युवक से करा दिया और अपने घर से शादी कर विदा किया। आज वह अपने घर परिवार के साथ हंसी खुशी रह रही है। भाई साहब राखी बंधवाने उसे बुलाते थे या उसके घर जाते थे। इटारसी के सभी समाज और राजनीतिक पार्टी के लोगों सहित सामान्य जनों से भी पारिवारिक आत्मिक संबंध थे। आकाशवाणी में रहते, जब तब यहां के लोगों को भोपाल आकाशवाणी बुलाते थे। उस दौर में कालेज, स्कूल सार्वजनिक किसी कार्यक्रम में भी लोग सलाह लेकर भोपाल के उनके संपर्क से कोई मंत्री, अधिकारी बड़े साहित्यकार को मुख्य अथिति के रूप में बुलाने की जबावदारी देते थे। जब वे इन वीआईपी लोगों के साथ आते तो मैं दौड़-दौड़ अनेक चक्कर आयोजन स्थल के लगाता रहता था।
महाकाल और महाकाली जगदंबा के अनन्य उपासक थे। उनके आध्यात्मिक गुरु तपस्वी संत भोपाल के श्री शांडिल जी महाराज थे। मधुरजी देश के अनेक नगरों में आते-जाते रहते, लेकिन इटारसी और को कभी भूल नहीं पाते। आत्मीयजन भी उन्हें बुलाते रहते थे। मुझ से अक्सर सभी के हाल पूछा करते। 3-4 साल पहले डॉ ज्ञानेंद्र पांडे ने उन्हें अपने पूज्य पिता प्रमुख अधिवक्ता कीर्तिशेष छैल बिहारी जी पांडे की काव्य कृति के विमोचन में बुलाया। सबसे पहले वे डॉ. केएस उप्पल, साहित्यकार, विनोद कुशवाहा, पत्रकार शैलेंद्र जैन आदि के साथ गांधी वाचनालय पहुंच कर स्वर्गीय विपिन जोशी जी की प्रतिमा पुष्प अर्पित कर रोने लगे थे। कार्यक्रम स्थल पर उन्होंने दिनेश द्विवेदी अन्य लोगों से नत्थू सिंह चौहान, सुक्कू भैया, सावत्री शुक्ला भाभी, डॉ. सीतासरन शर्मा जी, पत्रकार प्रमोद पगारे, रोहित नागे आदि लोगों के बारे में पूछा था। शिखरचंद्र जैन जी, बाबू जी करनसिंह तोमर, केशरी भैया अन्य लोगों से आत्मीय चर्चा करते रहे, ठीक ऐसे जैसे कोई परिवार के बहुत दिनों के बाद मिले सदस्य से करता है। यही स्थिति नर्मदापुर आने पर भी होती। जब भी आते मां नर्मदा के चरणों में प्रणाम करने जरूर जाते। रोज एक कविता लिखना उनका रोज का काम था। यह क्रम अस्पताल में भर्ती होने तक जारी रहा। हम पांच भाइयों बड़े दादा एसपी पटेरिया, फिर केशव भाई साहब, उनसे छोटे मधुर जी फिर शरद भैया, फिर सबसे छोटा मैं था। आज उनके जाने से परिवार हिल गया है। बड़ा मुश्किल होता अपने किसी पर लिखना? अदृश्य से मिली शक्ति से लिख पाया। बहन पत्रकार सुश्री मंजूराज ठाकुर के आग्रह को पूरा कर सका। ईश्वर ने उन्हें अपने श्री चरणों में महती आवश्यकता समझ अपनी ईनिंग पूरी कर बुला लिया।

  • पंकज पटेरियाpankaj pateriya

Rohit Nage

Rohit Nage has 30 years' experience in the field of journalism. He has vast experience of writing articles, news story, sports news, political news.

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