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मुन्नाभाई M.B.B.S. – जब एक गुंडा बना डॉक्टर और सबका दिल जीत लिया

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भारतीय सिनेमा ने दशकों में कई ऐसी फिल्में दी हैं जो न केवल मनोरंजन करती हैं बल्कि दिल को छू जाती हैं। इन्हीं फिल्मों में एक है “मुन्नाभाई M.B.B.S.” – एक ऐसी कहानी जो हंसी, इमोशन और इंसानियत का बेहतरीन संगम है। 2003 में रिलीज़ हुई इस फिल्म ने बॉलीवुड की परंपरागत सोच को चुनौती दी और दर्शकों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ी।

फिल्म की कहानी – मज़ाक में शुरू हुआ एक संजीदा सफर

मुन्नाभाई M.B.B.S. की कहानी है एक लोकल गुंडे मुन्ना (संजय दत्त) की, जो अपने माता-पिता को खुश करने के लिए खुद को डॉक्टर बताता है। लेकिन जब उसका झूठ सामने आता है, तो वह अपनी गलती सुधारने के लिए मेडिकल कॉलेज में दाख़िला लेता है — असली डॉक्टर बनने के लिए। यहीं से शुरू होता है एक ऐसा सफर, जो न केवल मुन्ना की ज़िंदगी बदलता है, बल्कि उसके आसपास के हर इंसान की सोच और दिल को भी छू जाता है।

राजकुमार हिरानी का निर्देशन – दिल से दिल तक

इस फिल्म का निर्देशन किया था राजकुमार हिरानी ने, जिनके लिए यह डेब्यू फिल्म थी। लेकिन पहली ही फिल्म में उन्होंने जो कमाल किया, वह किसी अनुभवी निर्देशक से कम नहीं था। उनकी स्टोरीटेलिंग में कॉमेडी और इमोशन का ऐसा संतुलन था, जिसे देखना एक अनुभव बन गया। फिल्म की स्क्रिप्ट, डायलॉग्स और निर्देशन इतने शानदार थे कि दर्शक हर सीन से जुड़ गए। “जादू की झप्पी” जैसे छोटे से इशारे ने दर्शकों के दिलों में घर बना लिया।

संजय दत्त की भूमिका – जीवन का नया मोड़

संजय दत्त की ज़िंदगी में यह फिल्म एक टर्निंग पॉइंट की तरह आई। एक समय था जब वे विवादों और कोर्ट केस में फंसे थे, लेकिन इस फिल्म ने उन्हें न केवल एक सुपरहिट एक्टर के रूप में दोबारा स्थापित किया, बल्कि उनके प्रति लोगों की धारणा भी बदली। उनके किरदार मुन्ना ने यह दिखा दिया कि एक गुंडा भी अगर दिल से सुधरना चाहे तो डॉक्टर जैसा जिम्मेदार पेशा भी अपनाया जा सकता है।

सर्किट – दोस्ती का असली मतलब

अगर मुन्ना इस फिल्म की जान है, तो सर्किट इसकी आत्मा। अरशद वारसी ने सर्किट के किरदार को जिस अंदाज में निभाया, वह आज भी दर्शकों के चेहरों पर मुस्कान लाता है।
उनकी और मुन्ना की केमिस्ट्री फिल्म की सबसे बड़ी ताकत थी। सच्ची दोस्ती का ये उदाहरण इतना लोकप्रिय हुआ कि “मुन्ना-सर्किट” जोड़ी को पॉप कल्चर का हिस्सा बना दिया गया।

डायलॉग्स – जो दिल में उतर जाएं

फिल्म के डायलॉग्स इतने दमदार और दिलचस्प थे कि वे आज भी सोशल मीडिया पर शेयर किए जाते हैं:

तुम क्या समझते हो, डॉक्टर भगवान होते हैं?”

“जादू की झप्पी ले लो…”

“बोले तो अपुन की लाइफ सेट हो गई रे!”

इन डायलॉग्स ने फिल्म को आइकॉनिक बना दिया।

संगीत – दिल को छू जाने वाले नग़मे

फिल्म का संगीत भी शानदार था। अनु मलिक द्वारा रचित गाने जैसे:
“चंदा मामा दूर के”

“देख ले”

“मुन्नाभाई MBBS”

इन गानों ने फिल्म को एक अलग ऊंचाई दी। हर गाना कहानी को आगे बढ़ाता है और भावनाओं को गहराई देता है।

सामाजिक संदेश – इंसानियत सबसे ऊपर

फिल्म का सबसे बड़ा योगदान था उसका सामाजिक संदेश। मुन्ना के किरदार ने यह दिखाया कि डॉक्टर होने का मतलब सिर्फ किताबों की नॉलेज नहीं, बल्कि मरीजों से प्यार और सहानुभूति रखना भी है।
फिल्म ने “मेडिकल सिस्टम में मानवीय पहलू” को उजागर किया और यह संदेश दिया कि एक सच्चा डॉक्टर वही होता है जो दिल से इलाज करे।

फिल्म की सफलता – दर्शकों का भरपूर प्यार

  • फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त कमाई की और ब्लॉकबस्टर साबित हुई।
  • इसे बेस्ट पॉपुलर फिल्मबेस्ट डायलॉग और बेस्ट स्क्रीनप्ले जैसे कई अवॉर्ड मिले।
  • इसने राजकुमार हिरानी को स्टार निर्देशक बना दिया और संजय दत्त की छवि को फिर से संवारा।

फिल्म के बाद का असर – एक नई सोच की शुरुआत

“मुन्नाभाई M.B.B.S.” के बाद लोगों की डॉक्टरों के प्रति सोच में बदलाव आया। मेडिकल कॉलेजों में छात्रों ने “जादू की झप्पी” को अपनाना शुरू किया। इतना ही नहीं, फिल्म की सफलता ने 2006 में इसका सीक्वल “लगे रहो मुन्नाभाई” को जन्म दिया, जिसमें गांधीगिरी की विचारधारा को पेश किया गया — जो फिर से उतनी ही सफल और प्रेरणादायक रही।

निष्कर्ष – क्यों आज भी है ये फिल्म खास?

“मुन्नाभाई M.B.B.S.” सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक भावना है। यह दिखाती है कि बदलाव कभी भी संभव है, चाहे इंसान की पिछली ज़िंदगी कैसी भी रही हो। मुन्ना और सर्किट की दोस्ती, फिल्म का हास्य और उसका मानवीय संदेश – ये सब मिलकर इसे भारतीय सिनेमा की सबसे प्रेरणादायक फिल्मों में से एक बनाते हैं। अगर आपने यह फिल्म नहीं देखी है, तो जरूर देखें। और अगर देखी है, तो फिर से देखिए — क्योंकि ऐसी फिल्में बार-बार नहीं बनतीं।

क्या आप भी मुन्ना और सर्किट के फैन हैं?

कमेंट में ज़रूर बताएं कि फिल्म का कौन सा सीन या डायलॉग आपको सबसे ज्यादा पसंद आया।
अखिलेश शुक्ला
सेवा निवृत्त प्राचार्य, लेखक, ब्लॉगर

अखिलेश शुक्ल
इ-समीक्षक, लेखक व साहित्यकार

Rohit Nage

Rohit Nage has 30 years' experience in the field of journalism. He has vast experience of writing articles, news story, sports news, political news.

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