तुम्हारे इंतज़ार में
कभी काजल लगाते हैं
कभी आईने में
खुद को संवारते हैं
अब तुम आना तो
ठहर जाना शब तक
ये दिल जाने
कितनी ही बातें
करना चाहता है
कितने ही इश्किया से
राज़ बयां करना चाहता है
अब तुम आना तो
ठहर जाना सहर तक
दिल तो क्या
ये रूह भी नहीं चाहती
अब दूरियां
ख्वाहिश है कि
हो एक बंधन दर्मियां हमारे
अब तुम आना तो
ठहर जाना जीवन की सांझ तक ।
अदिति टंडन
आगरा