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अच्छा तो हम चलते हैं: गीत जो चलते चलते बन गया

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  • अखिलेश शुक्ला 
bollywood news

कभी कभी कोई गीतकार जब गीत लिखता है तो उस पर बहुत मेहनत करता है। आपने ऐसे अनेकों गीत सुनें होगें? जिनकी रचना करने में गीतकार के पसीने छूट गये। आज हम बात कर रहे हैं, एक ऐसे गीत की जिसकी रचना चलते चलते ही हो गई थी। वह गीत है — “अच्छा तो हम चलते हैं, फिर कब मिलोगे—”

यह गाना सुनते ही आप क्या सोचतें हैं? राजेश खन्ना और आशा पारेख पर फिल्माये गये इस गीत की रचना में गीतकार इंदीवर को अपने लेखन के समूचे अनुभव को इसमें उतारना पडा था।

गीत का फिल्मी परिचय

यह गीत 1970 में आई सुपरहिट फिल्म ‘आन मिलो सजना’ का है। फिल्म के निर्देशक मोहन कुमार थे फिल्म की फोटोग्राफी ने सभी का मन मोह लिया था। फिल्म तो हिट रही ही, लेकिन इस गाने ने करोड़ों दिलों में स्थायी जगह बना ली।

गीत के जन्म की कहानी

फिल्म के उस सीन में नायिका मजबूरी में नायक से विदा ले रही है। वह बार बार मिलने की तमन्ना लिये नायक की ओर देखती है। वह सोचती है कि शायद नायक उसे रोक लेगा? लेकिन ऐसा होता नहीं है। फिल्म के निर्देशक मोहन कुमार चाहते थे कि विदाई के समय नायिका के मुंह से ऐसा कुछ निकले, जो सीधे दर्शकों के दिल में उतर जाए। मोहन कुमार के लिये यह फिल्म उनके कैरियर का दोराहा था। जिस पर वे सोच समझ कर चलना चाहते थे। यदि निर्णय गलत होता तो उनका फिल्मी केरियर चौपट हो सकता था।

गीत की रचना के लिये गीतकार इंदीवर के साथ उस समय के प्रसिद्ध संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और मोहन कुमार बैठे हुए थे। दोपहर से इस गीत पर तीनों सिर जोडकर चर्चा कर रहे थे। इंदीवर गीत के लिये अनेक पंक्तियां लिख चुके थे। लेकिन किसी में भी वह ‘जादू’ नहीं था, जो लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को प्रभावित कर सकें। मोहन कुमार तो जैसे निराश से हो रहे थे। तीनों दोपहर से बैठे थे, रात के 11 बज रहे थे। रिकार्डिग 7 बजे तक होनी थी, लेकिन कुछ हाथ नहीं लग रहा था। इंदीवर को अब घर जाने की जल्दी पड़ रही थी। उनके घर से फोन आ गया था। अतः सबसे पहले वे उठे और बोलें,
              “अच्छा तो हम चलते हैं”
               मोहन कुमार बोले- फिर कब मिलोगें?
               लक्ष्मीकांत की ओर देखते हुये इंदीवर बोले, जब तुम कहोगे?
प्यारेलाल जी ने तुरंत इंदीवर को वहीं हाथ पकड़कर बैठा लिया, बोले लिख लो गीत बन गया है। अब घर फोन कर बता दो जल्दी ही आ रहा हूं। तुरंत इंदीवर ने पेन और कागज उठाया और गीत की रचना कर दी। मोहन कुमार की आंखें नम हो गई। उन्होंने गीत पढ़कर कहा बस, यही चाहिए था।
यह वहीे गीत था, फिल्म आन मिलो सजना का सुपर हिट गीत अच्छा तो हम चलते हैं —
गीत का मुखड़ा
चार शब्द कोई शिकायत नहीं, कोई इल्ज़ाम नहीं। सिर्फ एक विदाई, जिसमें सम्मान भी है, दर्द भी, और मौन स्वीकृति भी है। यही इंदिवर की कलम की ताकत थी, जो साधारण शब्दों में असाधारण भाव भर देते थे।

संगीतकारों का संघर्ष

आपसे एक बात और शेयर करना चाहूंगा, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने इस गाने के लिए तीन धुनें बनाई थीं। पहली धुन को निर्देशक मोहन कुमार ने हल्की कहा। दूसरी धुन बहुत करुणामयी थी। तीसरी धुन सुनते ही मोहन कुमार बोले, यह धुन नहीं दिल की सच्ची आवाज है, इसके लिये इंदीवर अपने हुनर का कैसा प्रयोग करते हैं? यह देखना होगा? गीत की रचना कर इंदीवर ने सिद्ध कर दिया की उनके अनुभव, परख तथा फिल्मी समझ की कोई सानी नहीं है।

लता मंगेशकर की आवाज़ का जादू

यह गीत किशोर कुमार कुमार एवं लता मंगेशकर ने गाया है। लता जी जब रिकॉर्डिंग के लिए स्टूडियो पहुंचीं तो उन्होंने धुन सुनने के बाद कहा “यह गाना जितना सरल सुनाई देता है, उतना ही भावनात्मक संतुलन इसमें जरूरी है।” मैं गीत में वह सब कुछ दूंगी जो इसे अमर गीत बना दें। 

रिकॉर्डिंग शुरू हुई। लता जी ने पहला अंतरा गाया। उनकी आवाज़ ने अपना जादू बिखेरा। मोहन कुमार सहित सभी लोगों ने लता जी की तारीफ की। किशोर कुमार सामान्यतः किसी की तारीफ कम ही करते हैं, लेकिन उस दिन उन्होंने भी लता जी की आवाज का लोहा माना। उन्होंने कहा, “लता दी, आपने गाने को अमर कर दिया।”

एक अनसुना अंतरा

अब एक अनसुने अंतरे की बात। बहुत कम लोग जानते हैं कि इंदिवर ने इस गीत के अंत में एक और अंतरा लिखा था
                “दिल में जो बातें हैं, वो लब पे लाकर क्या कहें,
                 आंसुओं में भीग जाएंगी, हंसते हंसते रातें काट लें।”

यह अंतरा रिकॉर्ड तो हुआ लेकिन फिल्म की लंबाई बढ़ने के कारण काट दिया गया।

राजेश खन्ना और आशा पारेख का अनुभव

फिल्म की शूटिंग के समय जब यह गाना प्लेबैक पर बजा, तो राजेश खन्ना और आशा पारेख दोनों बेहद भावुक हो गए। आशा पारेख ने अपनी आत्मकथा में लिखा, “यह गाना मेरे दिल के सबसे करीब है। शूटिंग के वक्त मुझे सचमुच लग रहा था कि मैं किसी अपने से विदा ले रही हूं।”

निष्कर्ष

मित्रों, आपको इस गीत की रचना प्रक्रिया ने प्रभावित किया होगा? वास्तव में गीत तब बनते है जब वे हमारे जीवन से पूरी तरह से जुड़ते हैं। परिश्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता, बस आपको लगातार परिश्रम करते रहना है।
हमने गीत का लिंक नीचे दिया हुआ है, एक बार अवश्य सुनें –

अखिलेश शुक्ला 
सेवा निवृत्त प्राचार्य, लेखक, ब्लॉगर

Rohit Nage

Rohit Nage has 30 years' experience in the field of journalism. He has vast experience of writing articles, news story, sports news, political news.

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