- वैज्ञानिक प्रयोग से मिट्टी के गणेश की पर्यावरण मित्रता बताई राजेश पाराशर ने
- राष्ट्रपति सम्मान प्राप्त राजेश पाराशर ने प्रयोगों से बताई मिट्टी की वैज्ञानिक महिमा
- विज्ञान, पर्यावरण के साथ अर्थशास्त्र का भी रखें गणेशोत्सव में ध्यान : पाराशर
इटारसी। पीओपी (POP) से बनी कुछ गोलियों और मिट्टी से बनी गोलियों को एक घूमते पहिये में रखी बोतलों में डाला गया। इन बोतलों में कुछ में पानी तो कुछ में एसिड (Acid) और कास्टिक सोडा (Caustic Soda) का घोल रखा गया। पहिये को घुमाने के बाद जब रोका गया तो मिट्टी की गोली तो पानी में घुलकर उसे मटमैला बना चुकी थी लेकिन पीओपी की गोली तो पहले की ही तरह अपने पूरे आकार में थी। पानी का रंग भी नहीं बदला। इस प्रयोग के माध्यम से पीओपी मूर्तियों के जलाशय (Reservoir) और नदियों (Rivers) में विसर्जन के बाद कई सालों तक न घुलने को प्रायोगिक रूप से दिखाया गया।
मिट्टी की वैज्ञानिक महिमा बताने और राष्ट्रपति सम्मान प्राप्त राजेश पाराशर ( Rajesh Parashar) ने आमलोगों को विज्ञान प्रयोगों के माध्यम से प्लास्टर ऑफ पेरिस (Plaster of Paris) और जहरीले रसायनों से बने रंग से जलीय पर्यावरण पर होने वाले नुकसान को बताने एक प्रदर्शनी का आयोजन किया। राजेश पाराशर ने कहा कि आजकल प्रचलित वर्कशॉप (Workshop) में मिट्टी की मूर्ति तो बना रहे हैं लेकिन वे क्या इन्हीं मूर्तियों की पूजा पूरे 10 दिन करेंगे या फिर बाजार से भी मूर्ति ले आयेंगे इसका निर्णय किया जाना जरूरी है। प्राचीन बाजार परंपरा में हर व्यवसाय करने वाले वर्ग के हितों का ध्यान रखा गया था। इस व्यवसाय से जुड़े परिवारों के आर्थिक हित को भी बचाने उनसे मिट्टी से बनी मूर्ति खरीदना अच्छा हो सकता है।
राजेश पाराशर ने कहा कि मिट्टी की एक सेंटीमीटर परत बनने में लगभग 500 साल लगते हैं और यह चट्टानों के क्षय से बनती है । कृषि उपज के लिये अनिवार्य मिट्टी का संरक्षण भी चिंता का विषय है इसलिये मूर्ति का विसर्जन किसी खेत में बने कृत्रिम कुंड में करना हितकर हो सकता है। प्रयोग समन्वयक एमएस नरवरिया (MS Narwaria) के साथ कैलाश पटेल (Kailash Patel) ने प्रयोगों का संचालन कर आमलोगों के प्रश्नों के उत्तर दिये। राजेश पाराशर ने संदेश दिया कि जागरूकता करें सिर्फ मिट्टी से बनी मूर्तियों को लाकर पूजन कर खेत में ही विसर्जन करने की। क्योंकि मिट्टी है तो जीवन के जरूरी अन्य है, तो विज्ञान, कीमती पर्यावरण के साथ अर्थशास्त्र का भी रखें ध्यान।