इस्लाम के मुताबिक क्यों आम दिनों से अलग और खास हैं रमज़ान
इटारसी। वैसे तो अल्लाह से अपनी जरूरतों के लिये जीवन में किसी भी समय मांग जा सकता है। लेकिन, रमज़ान को अल्लाह की इबादत के लिये एक विशेष महीना बताया गया है। जिस तरह कोई भी महीना साल में एक बार ही आता है, उसी तरह रमजान भी अरबिक हिसाब से एक महीना है, जो साल में एक बार आता है। रमजान के महीने को इबादत का महीना कहा जाता है। इस दौरान बंदगी करने वाले हर शख्स की ख्वाहिश अल्लाह पूरी करता है। इसमें सभी मुस्लिम समुदाय के लोग एक महीना रोजा रखते हैं। रमजान माह की शुरूआत 14 अप्रैल यानि कल से हो रही है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग इबादत करेंगे। आइए जानते है सुन्नी ईदगाह, जामा मस्जिद लक्कड़गंज, इटारसी के अनुसार किस समय रखा जाएगा रोजा। कब होगी सहरी और इफ्तारी। पहले रोजे की शुरूआत सहरी के साथ सुबह 4 बजकर 38 मिनीट पर होगी। वहीं 6 बजकर 52 मिनीट पर इफ्तार होगा।
रमज़ान क्यों है खास?
रोज़ा हमारे ऊपर इसलिए भी फ़र्ज़ है कि, हम इस पूरे माह के दिनों में बुराइयों से बचकर अच्छे कामों पर किस तरह चल सकें और इसी नियम को साल के अन्य 11 महीनों में अपने ऊपर लागी रखें। हर मुसलमान को इस महीने अपने रब की खूब-खूब इबादत करता है, उससे अपने अंदर की बुराइयों से माफी देने की मांग करता है, ताकि अपने रब को राजी कर सके। बता दें कि, कुरआन (आसमानी किताब) के मुताबिक, इस महीने की खास बात ये है कि, इस महीने में सच्चे दिल से माफी मांगने वाले बंदे की दुआ को कबूल करते हुए अल्लाह उसकी माफी को कबूल करता है।
रमजान के तीस दिनों को दस दस दिनों के अशरा (10 दिनों के समूह) में बांटा गया है। रमजान के इन तीनों अशरों का अलग अलग महत्व होता है। हर दस दिन को 1 आशरा कहते है पहला आशरा रहमत का अशरा होता है। दूसरा आशरा मगफिरत के दस दिन कहलाते हैं और तीसरा आशरा यानी जहन्नम से छुटकारे के लिये खास माने जाते हैं। यानी अगर कोई बंदा अपने रव से सच्चे दिल से इस अशरे में किये गए पापों का प्राश्चित करे, तो उसे अल्लाह जरू माफ कर देता है।
तराबीह क्या है?
दिन के समय रोजा रखने वाले रोजदार रात में एक विशेष नमाज (तराबीह) पढ़ते हैं। ये विशेष नमाज रात की आखिरी फर्ज नमाज़ ईशां के बाद अदा की जाती है। इस विशेष नमाज में नमाजी को 2-2 करके 20 रकात पढ़नी होती हैं।
रोजा क्या है?
रोज़ा का मतलब होता है, खुद को मनचाही से रोककर रब चाही की ओर लाना। अच्छे काम करना और खुद को बुराइयों से रोका रखना, रोज़े और रमज़ान के आदर्शों को अपने जीवन में लागू करना है।
कौनसा रोजा अल्लाह कबूल करता है?
रोजा हर एक सेहतमंद मुसलमान पर फर्ज है। ऐसे में लगभग सभी लोग रोजा रखते हैं। लेकिन, रोज़े को अल्लाह के यहां कबूल होने के लिए जरूरी है कि, हम झूठ, धोखाधड़ी, चुगलखोरी और गीबत (लोगों के राज दूसरों को बताना) से बचना होगा। रमज़ान हमे जितना ज्यादा हो सके गरीबों की मदद करें। रमज़ान का संदेश है कि, वो हमें एक दूसरे से प्रेम करना सिखाता है, बड़ों की इज्जत और छोटों से स्नेह सिखाता है।