– पंकज पटेरिया :
मध्यप्रदेश शासन के राजपत्रित अधिकारी रहे, विनोद कुशवाह को नियति ने इतना तपाया कि 100 टंच सोना हो गए। वे सिने जगत के अभिनेता नहीं है, कि त्रासदी के पात्रों का अभिनय करते हुए उन्हें ट्रेजरी किंग कहा जाए जैसा प्रचार तंत्र अभिनेता को नवाजता रहता है। बल्कि खुरदरा यथार्थ यह है विनोद भाई एक जिंदादिल शहाना शख्सियत है जिन्होंने भीषण त्रासदी के सायनाइड पिए और तनकर विपिन जोशी जी की तर्ज़ और तरन्नुम में पुरजोशी से बाहें फैलाकर कहां आओ स्वागत है, मैं हर आने वाले की आहट सुन आनंदित हूं।
शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित उनका उपन्यास एक टुकड़ा उपन्यास टुकड़ा नहीं मुकम्मल आसमान है। अपने पूरे विस्तार में कई कई रंगों मे पूरे तारामंडल के साथ। विनोद भाई पूरी यात्रा में बहुत ही ईमानदार हैं, उनका शिल्प लाजवाब है खूब तराशा हुआ और खूबसूरत। कथाकार हैं, जागरूक स्तंभ लेखक हैं अत्यंत संवेदनशील प्रखर कवि भी हैं। पूरे कथानक में जितने भी किरदार आए हैं उन्हें कुशवाहा जी ने प्राण प्रतिष्ठा दे दी। महान कवि मलिक मोहम्मद जायसी का एक दोहा है, रीत प्रीत की अटपटी, जाने परे न, छाती पर पर्वत फिरे, नैनन फिरे न फूल। विनोद भाई जिंदगी का यही फलसफा है।
एक श्रेष्ठ उपन्यास पढ़ते हुए तबीयत की नशादी में, ठीक दवा की मानिंद, मुझे बहुत राहत और सुकून मिला। विनोद जी के मिजाज में कबीराना फक्कड़पन है। बकौल बशीर बद्र साहब के हमने दरिया से सीखी है पर्देदारी, ऊपर ऊपर हंसते रहना भीतर भीतर रो लेना।
बहुत पहले लिखे अपने गीत की शीर्ष पंक्ति…
उद्बत्ती से जलते रहे हम, देते रहे फिर भी सुगंध हम।।
जिंदगी बनी वेदी प्राण बने होम , आहो के मंत्र है ओम ओम ओम।।
ऐसे ही यज्ञ रखें जब जब ले जन्म, उद्बत्ती से जलते रहे हम।।
विनोद जी को समर्पित करते हुए मुझे बहुत सुखद लग रहा है। ईश्वर उन्हें सदा स्वस्थ सानंद सुखी रहे खूब लिखें और खूब पढ़े। यह सब उनकी अरदास है इबादत है मेरी शुभकामनाएं।
पंकज पटेरिया (Pankaj Pateriya)
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार
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