---Advertisement---

समीक्षा- गुलमोहर: ‘एक अव्यक्त लगाव’ स्वर्णलता छेनिया

By
Last updated:
Follow Us

विनोद कुशवाहा

पिछले दिनों नर्मदांचल की प्रतिभाशाली युवा कवयित्री स्वर्णलता छेनिया का कविता संग्रह ‘ गुलमोहर ‘ आंखों के सामने से गुजरा। नई कविताओं का ये संग्रह उनके अव्यक्त लगाव की बेहद ईमानदारी से घोषणा करता है। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपने को सुलझाने की निरन्तर कोशिश की है।

वे यदि ईश्वर पर लिख रही हैं तो उसे अपने तक पहुंचने का रास्ता भी बता रही हैं। स्वर्णलता छेनिया मन से पूरी तरह आस्थावान हैं। … लेकिन किसी भी तरह के ढोंग पर उनका जरा भी विश्वास नहीं है। कभी – कभी गहरी निराशा के बीच उनकी आशा की ज्योति भी टिमटिमाती दिखाई देती है।

गुलमोहर तो उनके अंतः स्थल में बसा हुआ प्रतीत होता है। वे अपनी कविताओं में बार – बार उसका जिक्र करना नहीं भूलतीं।

एक तरफ उनका खोया हुआ प्रेम है तो दूसरी तरफ आधी उम्र के प्रेम को वे अधूरा ही साबित करती दिखाई देती हैं।

घर से उनका लगाव उनकी कविताओं की विशेषता है। घर के आंगन से लेकर उसके कौने-कौने तक में उनकी सृजनात्मकता अपनी पहुंच रखती है। घर तो घर खंडहर भी स्वर्णलता की कविता की विषय वस्तु बने हैं। यहां तक की पत्थर हो चुकी संवेदनाओं के प्रति भी वे फिक्रमंद हैं।

बावजूद इसके कुछ ऐसा तो है जो उनसे छूट गया है। जो अबोला रह गया है। उसका उन्हें गहरा दुख है जो उनकी कविताओं से जाहिर होता है।

स्वर्णलता छेनिया ने अपनी काव्य बगिया का प्रथम पुष्प उनके अपने माता – पिता और उनकी कर्मभूमि “प्रज्ञान” को समर्पित किया है। ‘अपनी बात’ में वे स्पष्ट लिखती हैं कि उनकी कवितायें न केवल किसी के सान्निध्य में उपजे प्रेम की स्वीकारोक्ति हैं बल्कि मिलने – बिछड़ने की काल्पनिकता मात्र हैं। स्वर्णलता की कविताएं कहीं – कहीं तो मौत से संवाद करती भी नजर आती हैं। यही वजह है कि वे अपनी कविताओं पर इस हद तक विश्वास करती हैं कि उनको लगता है कि उनकी कवितायें हृदय से हृदय तक जरूर पहुंचेंगीं। उनका मानना है कि अत्यंत सरल शब्दों में गढ़ी हुई उनकी कविताएं हृदय के गूढ़ रहस्यों को पाठकों तक पहुंचाने का एक छोटा सा प्रयास है।

स्वर्णलता जहां एक ओर अपनी सृजनात्मकता का श्रेय अपने पति स्वप्निल कुमार छेनिया को देती हैं तो वहीं दूसरी ओर इस बात से भी इंकार नहीं करतीं कि उन्हें प्रज्ञान स्कूल में कार्य करते हुए ही लिखने की प्रेरणा मिली।

सहृदय , सहज , सरल और एक संवेदनशील व्यक्तित्व की धनी स्वर्णलता छेनिया नई कविताओं का सृजन करते हुए कहानियां भी लिखती रही हैं। उनकी कविताओं व कहानियों का प्रकाशन देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में तो हुआ ही है। साथ ही उनकी रचनायें आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से भी प्रसारित होती रही हैं।

इस संग्रह के पूर्व उनका एक बहुचर्चित साझा संकलन ‘धूप की दस्तक’ भी निकला है।

अनेक सम्मानों एवं पुरस्कारों से विभूषित स्वर्णलता छेनिया का प्रस्तुत काव्य संग्रह ‘गुलमोहर’ सन्मति पब्लिशर्स, हापुड़ ( उ.प्र ) से प्रकाशित हुआ है।

vinod kushwah

विनोद कुशवाहा (Vinod Kushwaha)

 

For Feedback - info[@]narmadanchal.com
Join Our WhatsApp Channel
Advertisement
Noble Computer Services, Computer Courses
Royal Trinity

Leave a Comment

error: Content is protected !!
Narmadanchal News
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.