झरोखा: पंकज पटेरिया/ पुण्य सलिला नर्मदा जी हमारी जीवन रेखा है। अन्नदा, जलदा, प्राणदा नर्मदा मईया से अलग हमारा कोई वजूद ही नहीं। हमारे सारे कारज संस्कारो की वे साक्षी रहती है। माँ रेवा का जयंती महोत्सव माघ शुक्ल सप्तमी मकर के सूर्य में मध्यान विभिन्न मंदिरों में श्रद्धा भक्ति के साथ मनाया जाता है।
नर्मदा मन्दिर के मुख्य अर्चक डॉ. गोपाल प्रसाद खद्दर, आचार्य पंडित नरेश परसाई और पंडित सोमेश परसाई बताते है कि 1978 से सबसे पहले सिद्ध संत ब्रम्हलीन राधे महाराज सहयोगी स्व. ज्ञान चंद मस्टे ने चल समारोह शुरू किया था। मोरछली चौक नर्मदा जी की शोभा यात्रा निकली गई थी। 1982 में जन सहभागी से आयोजन का स्वरूप बड़ा, नावो के मंच बनाकर मातारानी की पूजन अभिषेक की परम्परा शुरू हुई। सहत्रो प्रज्वलित दीप नर्मदा जी छोड़े जाने से की परंपरा शुरू हुई। जल विग्रह में प्रवाहित ये सैकड़ों दीप एक अलौकिक आल्हादकारी परिदृश्य उपस्थित कर देते है। दैनिक भास्कर में संवाददाता रहते हुए याद है जब भारत में दूरदर्शन नहीं आया था, पश्चिम जर्मनी की टीवी टीम नर्मदा जयंती महोत्सव कवर करने होशंगाबाद आई थी। मै अपना सौभाग्य मानता हूं जो मुझे टीम को ब्रीफ देने का अवसर नर्मदा माँ ने दिया था। धीरे
धीरे नर्मदा जयंती उत्सव विराट रूप लेता गयामें ओर इसमें संत महात्माओं के साथ राजनेता शामिल होने लगे। इससे विकास आदि के कामों की भी घोषणा हुई, प्रगति हुई। प्रदूषण मुक्ति घाटो की मरम्मत आदि की दिशा में कुछ महत्व पूर्ण काम हुए। बहुत से होने भी है। बहरहाल माँ नर्मदा की महिमा अपरंपार है। इनके दर्शन मात्र से सारे पाप क्षय हो जाते है। शिव के दिव्यरूप से प्रगट होने से महेश्वरी गंगा, दक्षिणभाग में स्थित होने से दक्षिण गंगा, सरस्वती गंगा, ब्रामही गंगा जी रूप में वंदनीय है। मत्स्य पुराण में वर्णित है कि नर्मदा पितरों की पुत्री है, लिहाजा पावन नर्मदा तट पर किया गया श्राद्ध अक्षय होता है। माँ सिद्धेश्वरी है, मोक्ष दाई है। यहां जल राशि में मिलने वाले साधारण कंकड़ को जय शिव शंकर मानकर पूजन की जाती है, उनकी प्राणप्रतिष्ठा विराजते ही हो जाती। इन्हीं कंकड़ों से आंध्र प्रदेश में नर्मदेश्वर का भव्य मंदिर बना है। उसके लिए करीब सवा लाख पत्थर नर्मदा जी से एकत्र किए गए थे।
अनेक संत महात्माओं दरवेशो ने नर्मदा के चरणों में तपस्या की विद्यमान समाधि या स्मारक छतरियां इस बात के जीवंत प्रमाण है। प्रख्यात मानसविद प्रभु दयाल रामायनी बताते है भगवान श्री राम के चारु चरणों के पावन स्पर्श से वन गमन के समय पुण्य सलिला नर्मदा क्षेत्र धन्य हुआ। वहीं यक्ष राज कुबेर लंकेश रावण ने भी मेकल सुता तट पर तपस्या की। शोध से यह भी प्रमाणित हो गया है। नर्मदा जल में अनेक औषधि तत्व है, सेवन, स्नान से अनेक बीमारियां ठीक होती है। बाबई ब्लाक के सूर्य कुंड नामक स्थान पर नर्मदा जी में स्नान करने से विभिन्न चर्म रोग अच्छे हो जाते है। यह भी मान्यता है काल सर्प रोग से मुक्ति मिलती है। विष्णु पुराण में एक मंत्र भी है।
मंत्र:ॐ नर्मदा नम प्रात,नर्मदा नमो निधि। नमोस्तुते
नर्मदे तुभ्यम, त्राहि माँ विष सर्पत। कहते इस मंत्र
को अभिमंत्रित कर घर की देहरी पर बाँधने से, नर्मदा जी में सूर्योदय के समय स्नान करने से काल सर्प योग की निवृति हो जाती है।
बहरहाल इस साल भी 19 फ़रवरी को नर्मदा जयंती महोत्सव धूम धाम से मनाए जाने की भव्य तैयारी चल रही है। मंदिरों घाटों पर मनोहारी सजावट की जा रही। माना जा रहा है विभिन्न संत महात्माओं के साथ नर्मदा की गोद में पले बडे वरद नर्मदा पुत्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी नर्मदा मैया के आल्हादकारी महोत्सव मे शामिल होंगे। इस पावन उत्सव की भक्ति पूर्ण अगवानी अपने घर आंगन में दीप जलाकर हमे भी कर पुण्य अर्जन करना चाहिए। तेरे पद पंकज में रेवे सदा वंदना मेरी माँ। नर्मदे हर।
पंकज पटेरिया (Pankaj Pateria), संपादक शब्द ध्वज
वरिष्ठ, पत्रकार कवि, ज्योतिष सलाहकार होशंगाबाद।
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