इटारसी। ‘मंच संचालन एक कला’ एक ऐसी पुस्तक है, जो युवाओं और मंच संचालन करने वालों के लिए काफी उपयोगी साबित होगी। इस पुस्तक के लेखक सुनील बाजपेयी (Sunil Bajpayee) ने इसमें अपने जीवन का निचोड़ और वर्षों के मंच संचालन के अनुभव का समावेश किया है।सूत्रधार, उद्घोषक, अंग्रेजी में कहें तो एंकर या अनाउंसर। यह वास्तव में एक कला है, जो वक्त के साथ मिलने वाले अनुभवों से और भी परिष्कृत होती जाती है। इस पुस्तक में वह सब मिलेगा जो मंच संचालन के लिए आवश्यक ही नहीं अनिवार्य होता है। युवा पीढ़ी के जो लोग मंच संचालन में रुचि रखते हैं, उनके लिए ये पुस्तक न केवल उपयोगी साबित होगी बल्कि हर कदम मार्गदर्शन करेगी।
विगत तीन दशक से भी अधिक समय से संचालन का अनुभव समेटे सुनील बाजपेयी की यह पुस्तक आपको एक कुशल संचालक बनने में मददगार साबित होगी। संचालन किसी भी कार्यक्रम का सबसे अहम हिस्सा होता है। ठीक उसी तरह से, जैसे किसी कुशल चालक के हाथ में गाड़ी का स्टीयरिंग (Steering) होता है और वह मुसाफिर को कुशलता से उसकी मंजिल तक पहुंचाता है। यह पुस्तक संचालन में इतनी मददगार है कि कार्यक्रम को सफलता की मंजिल तक पहुंचाने में कारगर साबित होगी।
सुनील बाजपेयी को संचालन के लिए मार्गदर्शन नहीं मिला, हालांकि प्रेरणा मिलती रही और वे आगे बढ़ते गये। उन्होंने बताया कि मेरे कुछ अभिन्न मित्र जो मेरे कार्यक्रम में शामिल होते रहते हैं, उन्होंने मुझे प्रेरित किया कि भविष्य में आने वाली पीढिय़ां जो इस विधा को सीखने की इच्छुक है, उनके लिए कुछ लिखा जाये। ज्ञान प्राप्त करने की कोई सीमा नहीं होती। कोई भी व्यक्ति कभी परिपूर्ण नहीं होता। वे खुद भी अभी स्वयं को संचालन की पाठशाला का विद्यार्थी मानते हैं। वे सीनियर विद्यार्थी हैं जो अपने जूनियरों के लिए कुछ लिखना चाहते थे, तभी इस किताब की रचना हुई। वे कहते हैं कि मुझे आज भी लगता है कि मैं इस ज्ञान में परिपूर्ण नहीं हूं। लेकिन सोचता हूं कि मेरे पास जो भी है उसे ही प्रस्तुत कर दूं। इसी पर विचार करते हुए मैंने यह संग्रह तैयार किया है। जिसमें शब्दों की श्रृंखला के साथ विभिन्न कवियों व शायरों की संकलित पंक्तियां जिनकी प्रस्तुति कार्यक्रम की रौनक बढ़ा देती है, उनके प्रति कृतज्ञता एवं आभार सहित शामिल किया है ताकि रोचकता बनी रहे। जिसमें यदि आप संचालक, उद्घोषक, एंकर बनने की इच्छा रखते हैं तो शायद आपको कुछ मार्गदर्शित करे।
यह है किताब में…
कार्यक्रम का संचालन, आयोजन की महत्ता, उसकी खूबसूरती और यादगार बनाने में अत्यन्त सहायक होता है। उसे हम ऐसा समझें कि हमारे घर में जब कोई भोजन पर आये तो हम उनके सामने व्यंजन, बेतरतीब ढंग से परोस दें, तो आपका अतिथि ग्रहण तो करेगा लेकिन वापसी में उसके मन में वैसी भावना आपके प्रति नहीं रहेगी जिसे वह सोचकर आया था। इसी कार्य को यदि आपके परिवार के सदस्य व्यवस्थित ढंग से, स्वच्छता और सुन्दर तरीके से सजाकर प्रस्तुत करेंगे तो वह प्रफुल्लित मन से उसे गृहण करेगा तथा समाज में वह आपकी छवि की प्रशंसा करेगा। ऐसा ही कार्यक्रम में होता है ।
कई संस्थाएं कार्यक्रम तो आयोजित करती हैं लेकिन सुन्दर, आकर्षक, अनूठी प्रस्तुति नहीं होने से, आयोजन फीका हो जाता है। क्योंकि आपके आयोजन में उनके विषयवस्तु तो अच्छी थी लेकिन उसका प्रस्तुतिकरण करने वाले ने उसे सुन्दर ढंग से प्रस्तुत नहीं किया। वे आज जीवन के 62 वसंत देख चुके हैं। सन् 1972 से संचालन प्रारंभ करने के बाद यह कार्य अनवरत है।
वे बताते हैं कि इस मुकाम तक पहुंचाने में मप्र विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा (Dr. Sitasaran Sharma), पूर्व विधायक अंबिका प्रसाद शुक्ल (Ambika Prasad Shukla), गिरजाशंकर शर्मा (Girjashankar Sharma), वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद पगारे (Pramod Pagare) एवं जम्मूसिंग उप्पल (Jammusing Uppal) का मार्गदर्शन और सुधीर गोठी (Sudhir Gothi), हेमन्त शुक्ला (Hemant Shukla), अभिषेक तिवारी (Abhishek Tiwari), जितेन्द्र ओझा (Jitendra Ojha), नवनीत कोहली (Navneet Kohli), पीयूष शर्मा (Piyush Sharma), अशोक जमनानी (Ashok Jamnani), पंकज पटेरिया ( Pankaj Pateria) एवं आशीष चटर्जी (Ashish Chatterjee) एवं संगीत नाटक अकादमी के प्रवीण दुरेजा (Praveen Dureja), मनीष ममगई (Manish Mamgai) से प्रोत्साहन, मार्गदर्शन एवं सहयोग मुझे सदैव मिलता रहा है। गुरुदेव स्व. सुरेन्द्र मेहता (Surendra Mehta) ने सर्वप्रथम पुलिस परेड ग्राउंड (Police Parade Ground) में आयोजित जिला स्तरीय राष्ट्रीय समारोह, नर्मदा जयंती से संचालन प्रारंभ कराया। तब से लगातार वर्ष 1996 से 2022 तक इस भव्य आयोजन के संचालन के दायित्व का निर्वहन कर रहे है। कल इस किताब का विमोचन हो रहा है, जो युवा पीढी के लिये मील का पत्थर साबित होगी।