दिल से समझा दिल को बच्चों ने, पहले थामा कलेजा फिर कहा अब नहीं रहा जीवविज्ञान से डर

Post by: Rohit Nage

  • फेफड़े को फुलाकर समझा क्या नाता है दिल का फेफड़े से
  • राजेश पाराशर ने किया जीवविज्ञान को समझाने अनूठा कार्यक्रम

इटारसी। दिल का मामला है, कलेजा थामना, दिमाग देखना जैसी बातें मुहावरे के रूप में हिन्दी बोलचाल या कक्षा में हिन्दी अध्यापन का भाग हो सकती हैं लेकिन ये सब कुछ हो रहा था विज्ञान की खुली कक्षा में। विज्ञान शिक्षक राजेश पाराशर (Science Teacher Rajesh Parashar) द्वारा आयोजित खुला विज्ञान कार्यक्रम में सभी बच्चे और शिक्षक हाथों में ग्लब्ज़ (Globes) पहने हार्ट (Heart), ब्रेन (Brain), लिवर (Liver) के अलावा आई (Eye), किडनी (Kidney), छोटी आंत (Small Intestine), बड़ी आंत (Large Intestine) को स्वयं वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे थे बल्कि इनकी शरीर में कार्यप्रणाली को समझ रहे थे। पाईप (Pipe) की मदद से फेफड़े (Lung) को फुलाकर गुब्बारे की तरह बड़ा होता हुआ देखना किसी आश्चर्य से कम नहीं था।

आमतौर पर केवल किताबों में छपे चित्र से ही बच्चे इन अंगों को पढ़ पाते हैं। कुछ नवाचारी शिक्षक मॉडल (Model) एवं चार्ट (Chart) की मदद से समझाते हैं लेकिन वास्तविक पशु अंगों को हाथ में लेकर और उसको समझना सभी के लिये पहला अनुभव था । इस कार्यक्रम में मस्तिष्क की कोमल संरचना को छूकर परिवहन के दौरान हेलमेट का महत्व बताया गया तो फेफड़े का अध्ययन कर धूम्रपान के नुकसान को बच्चों ने समझा । जन जातीय कार्यविभाग (Tribal Affairs Department) के कन्या शिक्षा परिसर (Girls Education Complex) तथा हायरसेकंडरी जुझारपुर (Higher Secondary Jujharpur) में आयोजित कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) से आमंत्रित रिसोर्स साइंटिस्ट लखन साहू (Resource Scientist Lakhan Sahu) एवं बी मरकाम (B Markam) ने मृत पशु के अंगों से जीव विज्ञान को सरल एवं सीखने योग्य तरीके से समझाने ये प्रयोग करवाये।

इसके पहले ये स्त्रोत विद्वान साठ हजार से ज्यादा बच्चों के लिये इस तरीके से महाराष्ट्र (Maharashtra) एवं छत्तीसगढ़ में ये कार्यशाला कर चुके हैं। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में राजेश पाराशर की पहल पर प्रथम बार बच्चों के लिये वैज्ञानिक जानकारी देने यह कार्यक्रम किया गया। कन्या शिक्षा परिसर के प्राचार्य यूएस राठौर ने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम से बच्चों में मेडिकल साइंस (Medical Science) की ओर झुकाव बिना किसी दबाब के करने में मदद मिलती है। हायर सैकंड्री स्कूल जुझारपुर के प्राचार्य श्री प्रभाकर राय ने कहा कि करके सीखने में विज्ञान की समझ बढ़ती है। प्रयोग प्रक्रिया में एमएस नरवरिया ने सहयोग किया। हरीश चौधरी ने प्रयोगों की प्रारंभिक तैयारी में मदद की। कार्यक्रम में विद्यालय के विज्ञान शिक्षकों के साथ ही अन्य विषय के शिक्षकों ने भी इन प्रयोगों को स्वयं करके देखा तथा बच्चों की मदद भी की।

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