नर्मदापुरम। श्री विद्या ललिताम्बा समिति के तत्वावधान में आयोजित श्री सवा करोड़ शिवलिंग निर्माण एवं संगीतमय रुद्राभिषेक में आज आचार्य सोमेश परसाई ने शिव भक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि दान में गुप्त दान का सर्वाधिक महत्व है। यह सीधे परमात्मा को प्राप्त होता है। पुराने समय मे कहते थे कि जब एक हाथ से दान करें तो दूसरे हाथ को पता नहीं चलना चाहिए। आचार्य श्री ने बताया कि कुल 84 लाख योनियां होती हैं, इसमें सर्वाधिक महत्व मनुष्य योनी का है।
मनुष्य देह सर्वाधिक दुर्लभ है इसमें भी यदि जन्म भारत वर्ष में हुआ है तो आप सर्वाधिक भाग्यशाली हैं। इसका उपयोग यदि भजन में नहीं हुआ तो फिर जीवन व्यर्थ है। मनुष्य देह को प्राप्त कर के यदि मुक्त होने का प्रयास नहीं किया तो मनुष्य देह व्यर्थ है। मुक्ति कैसे प्राप्त होगी, इस पर प्रकाश डालते हुए आचार्य श्री ने बताया कि श्री गुरु चरण रज के प्रभाव से भजन पूजन से ही मुक्ति संभव है। आचार्य श्री ने बताया काम करना, खाना फिर सो जाना, यह तो जानवर भी कर लेते हैं। हम बड़े भाग्यशाली हैं जो मनुष्य देह मिली है, इसमें भगवान की कृपा प्राप्त नहीं की तो फिर 84 लाख योनियों में भटकना पड़ेगा।
पार्थिवेश्वर शिवलिंग का महत्व
आचार्य श्री ने मिट्टी के शिवलिंग का महत्व बताते हुए कहा कि पार्थिवेश्वर शिवलिंग का सर्वाधिक महत्व है। हमारा शरीर पंचतत्वों से बना है जो कि अंत समय मे पंच तत्वों में ही मिल जाएगी। पार्थिवेश्वर शिवलिंग का पूजन लौकिक सुख तो देता ही है, साथ ही साथ बंधनों से मुक्त कर मोक्ष की प्राप्ति कराता है। आचार्य श्री ने कहा कि यदि हम नित्य गौ ग्रास नहीं देते, आये हुए अतिथि को भोजन नहीं कराते, जरूरतमंद की मदद नहीं करते तो ये जीवन व्यर्थ है। कर के देखिए आपके जीवन में संतोष बढ़ जाएगा। आचार्य श्री ने भगवन्नाम की महिमा बताते हुए कहा कि नाम की महिमा अपरंपार है।
भगवान शिव भी सदैव राम नाम के आनंद में रहते हैं वही राम शिव को हृदय में धारण करते हैं। राम चरित्र मानस के अंतर्गत सेतु बंधन का उदाहरण देते हुए आचार्य श्री ने कहा कि जिसको भगवान का सहारा होता है वह पत्थर भी भवसागर को तैर जाता है। शिव पुराण का उल्लेख करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि भगवान शिव की कृपा से ही भगवान विष्णु जगत मे पूज्य हुए और असत्य भाषण के कारण ब्रह्मा जी का पूजन नहीं होता।भगवान को सत्य का पालन करने वाले भक्त अत्यंत प्रिय होते है, जो भी व्यक्ति सत्य को धारण करता है अंत में विजय उसी की होती है।