- महाशिवरात्रि के अवसर पर तिलक सिंदूर में लगेगा मेला
- मेला में दुकानें लगना शुरु, बच्चों के झूले भी लगाए जाएंगे
इटारसी। कल शिवभक्त महाशिवरात्रि पर्व मनायेंगे। महाशिवरात्रि के अवसर पर सतपुड़ा पर्वतमाला में बसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थल तिलक सिंदूर में तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जा रहा है। आज से यह मेला प्रारंभ है, कल 18 फरवरी को मुख्य मेला रहेगा तथा 19 फरवरी को समापन होगा।
नर्मदापुरम जिले के इटारसी स्थित प्रसिद्ध तीर्थ स्थल तिलक सिंदूर मेले में बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। कलेक्टर ने मेला समिति के सदस्यों और अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि श्रद्धालुओं को सुगमता से दर्शन हो सकें इसकी सभी व्यवस्थाएं की जाएं। साथ ही महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों का विशेष ध्यान रखा जाए। उन्हें जोखिम भरे स्थानों पर जाने नहीं दिया जाए। कलेक्टर ने बड़ी संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं को देखते हुए व्यवस्थित ढंग से भीड़ प्रबंधन करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि मेला स्थल पर पेयजल, चिकित्सा आदि की भी समुचित व्यवस्था की जाए।
तिलक सिंदूर मेला समिति के अध्यक्ष और एसडीएम इटारसी मदन सिंह रघुवंशी ने बताया कि तिलक सिंदूर मेले की सभी तैयारियां पूर्ण कर ली गई हैं। मेला स्थल पर 230 से अधिक दुकानों का संचालन किया जाएगा। कल अलसुबह गुफा मंदिर में स्थित शिवलिंग पर अभिषेक किया जाएगा।
यहां शिव का सिंदूर से होता है तिलक
मध्य प्रदेश के इटारसी शहर से 17 किमी दूर भगवान शिव का एक धार्मिक स्थल है। मंदिर से गौंड जनजाति का जुड़ाव है। यहां शिवजी की प्रतिमा का सिंदूर से स्नान कराकर श्रंगार किया जाता है। इसलिए यहां के महादेव को तिलक सिंदूर कहा जाता है और प्रसाद के रूप में सिंदूर ही चढ़ाया जाता है। शहर से 16 किलोमीटर की दूरी पर सतपुड़ा की सुरम्य वादियों में भोलेनाथ का प्रसिद्घ धाम तिलक सिंदूर है। पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक यहां शिवलिंग पर सिंदूर चढ़ाया जाता है, तभी भगवान भोलेनाथ भक्त पर प्रसन्न होते हैं। पूजा पद्घति के कारण ये विश्व का इकलौता शिवलिंग है जहां पर भगवान का पूजन अभिषेक सिंदूर से होता है। दरअसल, इस मंदिर का संबंध गौड़ जनजाति से है और आदिवासी पूजा अर्चना के दौरान सिंदूर का उपयोग करते हैं। आज भी यहां पर प्रथम पूजा का अधिकारी आदिवासी समाज के प्रधान जिसे भूमका कहा जाता है, उनके परिवार को है। आदिवासी समुदाय भगवान भोलेनाथ को बड़े देव के नाम से पूजता है।
एक दर्जन गांवों का श्मशान
तिलक सिंदूर में भगवान शिव जहां विराजे हैं, वहां पर 15 आदिवासी गांवों का श्मशान भी है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक जब भस्मासुर भगवान भोलेनाथ को भस्म करने के लिए उनका पीछा कर रहे थे तो भगवान यहां की कंदराओं में छिपे थे और यहां से ही पचमढ़ी के निकट जम्बूद्वीप गुफा पर निकले थे।
यह है किवदंती
माना जाता है कि भस्मासुर से पीछा छुड़ाने के लिए शिवजी यहीं के पहाड़ों और गुफाओं में छुपे थे। इसी स्थान से पचमढ़ी जाने के लिए भी सुरंग तैयार की थी। माना जाता है कि यह सुरंग आज भी मौजूद है, जो पचमढ़ी में खुलती है। शिवजी इसी रास्ते से पचमढ़ी गए थे। जहां वे जटाशंकर में छुपकर रहे थे। महाशिवरात्रि को यहां बड़ा मेला लगता है।
इसलिए कहते हैं बड़े देव
सतपुड़ा की पहाडिय़ों पर एक समय में पचमढ़ी से टिमरनी, हरदा के बीच गौंड राजाओं का राज्य हुआ करता था। इन राजाओं ने ही तिलक सिंदूर में शिवालय की स्थापना की थी। गौंड जनजाति बड़े देव को मानते हैं इसलिए तिलक सिंदूर में भगवान शिव को बड़े देव भी कहा जाता है।
भवानी अष्टक में है वर्णन
बिहार में नेपाल की बार्डर पर रहने वाले कालिकानंद ब्रम्हाचारी जिन्हें यहां बम बम बाबा कहते हैं, उन्होंने यहां पर साधना की थी। वे यहां तांत्रिक साधनाएं करते थे। उनका कहना था कि भवानी अष्टक में तिलक वन का जो जिक्र है वह तिलक सिंदूर ही है। अब बम-बम बाबा की समाधि भी यहीं है।
ऐसे पहुंचे तिलक सिंदूर
इटारसी से 16 किमी पर तिलक सिंदूर धाम है। इटारसी से धरमकुंडी जाने वाले मार्ग पर 12 किलोमीटर पर जमानी गांव है। यहां से दक्षिण दिशा में 8 किलोमीटर सतपुड़ा पर्वत के घने जंगलों में तिलक सिंदूर धाम है। यहां पर हंसगंगा नदी बहती है।