कल देवउठनी प्रबोधिनी एकादशी व्रत
गन्ने का मंडप सजाकर होगी पूजा पाठ, तुलसी विवाह होगा
इटारसी। मां चामुण्डा दरबार भोपाल के पुजारी गुरु पं. रामजीवन दुबे ने बताया कि आज कार्तिक शुक्लपक्ष देव उठनी प्रबोधिनी एकादशी (Dev Uthani Prabodhini Ekadashi) सोमवार 15 नवंबर को व्रत पूजा-पाठ के साथ तुलसी विवाह होगा। गन्ने का मंडप घर-घर में सजाया जायगा। देवशयनी एकादशी 20 जुलाई को भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम रत हुए। आज देवउठनी एकादशी 15 नवम्बर को इस दिन भगवान विष्णु जागेगे। चार माह से बन्द शादियों का होगा शुभारंभ। सोमवार को भगवान शिव अपना कार्यभार 119 दिन बाद भगवान विष्णु को समर्पित करेंगे।
देवउठनी एकादशी पूजा विधि
देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) पर भगवान विष्णु को धूप, दीप, पुष्प, फल, अघ्र्य और चंदन आदि अर्पित करें। भगवान की पूजा करके नीचे दिए मंत्रों का जाप करें।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदि ।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे। हिरण्याक्षप्राघातिन् त्रैलोक्यो मंगल कुरु।।
तुलसी विवाह कथा
जलंधर नाम का एक पराक्रमी असुर था, जिसका विवाह वृंदा नाम की कन्या से हुआ। वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी और पतिव्रता थी। इसी कारण जलंधर अजेय हो गया। अपने अजेय होने पर जलंधर को अभिमान हो गया और वह स्वर्ग की कन्याओं को परेशान करने लगा। दु:खी होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गए और जलंधर के आतंक को समाप्त करने की प्रार्थना करने लगे। भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर लिया और छल से वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। इससे जलंधर की शक्ति क्षीण हो गई और वह युद्ध मेंं मारा गया। जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का शाप दे दिया। देवताओं की प्रार्थना पर वृंदा ने अपना शाप वापस ले लिया। लेकिन भगवान विष्णु वृंदा के साथ हुए छल के कारण लज्जित थे, अत: वृंदा के शाप को जीवित रखने के लिए उन्होंने अपना एक रूप पत्थर रूप में प्रकट किया जो शालिग्राम कहलाया। भगवान विष्णु को दिया शाप वापस लेने के बाद वृंदा जलंधर के साथ सती हो गई. वृंदा के राख से तुलसी का पौधा निकला। वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया। इसी घटना को याद रखने के लिए प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देव प्रबोधनी एकादशी के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कराया जाता है। शालिग्राम पत्थर गंडकी नदी से प्राप्त होता है। भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा कि तुम अगले जन्म में तुलसी के रूप में प्रकट होगी और लक्ष्मी से भी अधिक मेरी प्रिय रहोगी. तु हारा स्थान मेरे शीश पर होगा। मैं तु हारे बिना भोजन ग्रहण नहीं करूंगा। यही कारण है कि भगवान विष्णु के प्रसाद में तुलसी अवश्य रखा जाता है। बिना तुलसी के अर्पित किया गया प्रसाद भगवान विष्णु स्वीकार नहीं करते हैं। पाप नाशक देवउठनी प्रबोधिनी एकादशी का व्रत माना गया है। सुख समृद्धि लाभ स मान शांती प्रदान करता है।
– नव वर्ष में 86 दिन शादियों के शुभ महुर्त –
2021 नवंबर- 19, 20, 21, 26,27, 28, 29, 30- 8 दिन शादी
दिसंबर- 1, 2, 5, 7, 11, 12, 13- 7 दिन
नव वर्ष 2022 में 86 दिन गूंजेगी शहनाई
जनवरी- 15, 20, 21, 22, 23, 24, 25, 27, 28, 29, 30- 11 दिन शादी
फरवरी- 4, 5, 6, 9, 10, 11, 16, 17, 18, 19, 20, 21- 12 दिन शादी
बसंत पंचमी 5 फरवरी शादी का अबूझ मुहूर्त
मार्च- गुरू अस्त, खरमास के कारण शादी बंद रहेगी।
अप्रैल- 15, 17, 19, 20, 21, 22, 23, 27, 28- 9 दिन शादी
मई- 2, 3, 4, 9, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18, 19, 20, 24, 25, 26, 31- 19 दिन शादी
3 मई अक्षय तृतीया अबूझ मुहूर्त सर्वाधिक शादियां हैं।
जून- 1, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 21, 22, 23, 26- 18 दिन शादी
जुलाई- 2, 3, 5, 6, 8- 5 दिन शादी
भड़ली नवमी अबूझ मुहूर्त 8 जुलाई
देवशयनी एकादशी 10 जुलाई से
देवउठनी एकादशी 4 नवंबर तक
चतुर्मास चार माह शादियां बंद रहेगी।
नवंबर- 26, 27, 28- 3 दिन शादी।
दिसंबर- 2, 3, 4, 7, 8, 9, 13, 14, 15-9 दिन शादी।