महेश्वर, यानी भगवान शिव का घर। देवी अहिल्याबाई ने महिष्मति को भगवान शिव के नाम पर महेश्वर नाम दिया। पावन नर्मदा का घाट। एकदम शांत। दिनभर श्रद्धालुओं की रोनक के बाद जब सूर्यास्त होता है तो यहां एकदम शांत वातावरण होता है।
महेश्वर घाट, नर्मदा की गहराई की तरह दिल की गहराई में उतरने जैसा आभास कराता है। यदि महेश्वर नहीं गये तो एक बार महेश्वर जाना चाहिए, क्योंकि महेश्वर घाट, रानी अहिल्याबाई का किला और उनका निवास स्थान, शब्दों की सीमा से कहीं परे है।
- रोहित नागे :
महेश्वर मध्यप्रदेश का एक मुख्य पर्यटन स्थल है। नर्मदा के किनारे देवी अहिल्याबाई का महल तत्कालीन महेश्वर राज्य की कहानी कहता है। यहां पर होल्कर राजवंश की वंशावली की जानकारी के साथ ही उस वक्त की तलवारें, तोप, तोप के गोले, भगवान की पालकी और रानी की पालकी भी सहेजकर रखी गयी हैं।
महेश्वर नर्मदा नदी के किनारे बसा है। यहां देखने के लिए नर्मदा नदी का घाट, महेश्वर मंदिर, और रानी अहिल्या बाई का किला प्रसिद्ध है।
हम पांच मित्र 10 नवंबर की रात को महेश्वर पहुंचे थे। महेश्वर में हम लोगों ने होटल बुक किया था। डिनर के बाद मां नर्मदा तट तक जाने का मन हुआ। भोजन के बाद वैसे भी कुछ पैदल चलने का ख्याल हमें होटल से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर नर्मदा घाट ले आया।
दो दिन के बस के सफर की थकान घाट पर पहुंचते ही गायब हो गयी। सीढिय़ों तक बड़ी-बड़ी और छोटी-छोटी मछलियां थीं, मानो खाने के लिए कुछ मांग रहीं हों। कुछ लोग उनको घर से साथ लाये आटे की गोलियां भी खिला रहे थे।
घाट पर नर्मदा का निर्मल जल देखते और गर्दन घुमाकर देवी अहिल्याबाई का किला देखते एक घंटे का वक्त कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला। रात करीब 10:30 बजे वापस होटल पहुंचे। जल्दी सोना था, क्योंकि दिन में देवी अहिल्या का किला, शिव मंदिर और नर्मदा घाट पर वापस आना था।
हम लोग सुबह होटल से तैयार होकर निकले, नाश्ता किया और सीधे देवी अहिल्याबाई का किला देखने निकल पड़े। किले के भीतर जाकर सबसे पहले देवी अहिल्याबाई का विशाल प्रतिमा देखी। प्रतिमा को देखकर ही देवी अहिल्याबाई के भीतर का उस वक्त का आत्मविश्वास का अनुमान हो गया।
भीतर ही दूसरा बरामदा पार करके देवी अहिल्याबाई का निवास और वह स्थान देखा जहां से उन्होंने राजपाट संभाला था। ऊपर पहली मंजिल पर उनका निवास था और भूतल पर तीन तरफ बड़े-बड़े बरामदे। शायद यहीं से सारे राजपाट का संचालन होता होगा और राज्य के कर्मचारी यहीं बैठकर राजकाज किया करते होंगे।
अब इन बरामदों में होल्कर राजवंश के महाराजों की तस्वीरें लगी हैं। साथ ही देवी अहिल्याबाई की मूर्ति भी स्थापित है। इस स्थल की नक्काशी देखते ही बनती है। इसी के दूसरी तरफ वाले बरामदे में उस वक्त के युद्ध में उपयोग की जाने वाली तलवारें, तोप के लोहे के गोले और पालकी रखी गई हैं।
यहां भी घूमते-घूमते वक्त कब तेजी से गुजरा, पता ही नहीं चला। किले से लगा हुआ शिव मंदिर है, जहां अत्यंत सुकून है। एक बार मंदिर परिसर में बैठे तो उठने का मन नहीं करता। मंदिर के साइड से झरोखे हैं, जहां से पावन नर्मदा के दर्शन होते हैं। मंदिर से बाहर आकर एक दालान पार करके गेट है, जहां से सीढिय़ों के जरिए नर्मदा तट पर पहुंचा जा सकता है।
किलो घूमने के बाद हम महेश्वर घाट घूमने के लिए गए। महेश्वर का घाट बहुत खूबसूरत है। सुबह का वक्त था, तो यहां प्रसाद की दुकानों के साथ-साथ आटे की गोलियां भी दोने में रखकर बेची जा रही थीं, और श्रद्धालु उन्हें खरीदकर मछलियों को खिलाकर खुश हो रहे थे। यहां दो-तीन इंच की छोटी मछलियों से लेकर तीन फुट तक की मछलियां है, जो बेखौफ सीढिय़ों तक आती और लोग उन्हें आटे की गोलियां खिलाते हैं।
महेश्वर घाट बहुत बड़े क्षेत्र में नर्मदा नदी के किनारे फैला हुआ है। एक बात अच्छी लगी कि यह घाट बहुत सुंदर और साफ था। यहां पर भी बहुत सारे मंदिर है। यहां आकर बहुत अच्छा लगा, बहुत शांति मिलती है। सुबह के समय यहां का अलग ही माहौल रहता है।
नर्मदा नदी के किनारे महेश्वर घाट में बोटिंग की सुविधा भी उपलब्ध है। आप चाहें तो नर्मदा नदी में बोटिंग का मजा ले सकते हैं। हालांकि हम लोगों ने बोटिंग नहीं की। महेश्वर में मन को जो शांति मिलती है, उसको शब्दों में बयां करना संभव नहीं है। यदि इसका अहसास करना है तो आपको महेश्वर जाना ही पड़ेगा।