झरोखा: त्रिकालदर्शी, सिद्धसंत बर्फानी दादा महान संत योगीराज पूज्य गौरीशंकर बशंकर जी महाराज की जमात धूनी वाले दादाजी के साथ रहते हुए अनेक बार माँ नर्मदा की नगरी होशंगाबाद आते रहे। बर्फानी दादाजी का निधन हाल ही में 23 दिसंबर 2020 को गुजरात में हो गया।
बर्फानी दादाजी महाराज ने 40 बरस तक मानसरोवर में कठिन तपस्या की वहीं कुंडली जागरण हुआ, अनेक सिद्धि या प्राप्त हुई और एक दलाई लामाजी से दादाजी को कायाकल्प की विद्या मिली जिससे उन्होंने अपना कायाकल्प किया था। दादाजी 1962 चाइना युद्ध के शुरू होते ही हरिद्वार आ गये और फिर स्थाई रूप से माँ नर्मदा के चरणो में उदगम स्थान अमरकंटक में रहकर साधना करते रहे। दादाजी नर्मदा जी को अपनी बड़ी बहन मानते थे। पूजा अर्चना करते लेकिन नर्मदा में स्नान कभी नहीं करते थे। उनके अनुयाई देशभर से हित फ्रांस अमेरिका, जर्मनी, आस्ट्रेलिया आदि विदेश में है। होशंगाबाद में उनका विशाल शिष्य परिवार है।
वे मेरी जानकारी में दो बार होशंगाबाद आए थे। तब मै देनिक भास्कर का स्थानीय ब्यूरो प्रमुख था। मुझे उनके दिव्य दर्शन का आशीर्वाद का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। मृढ़ई, होशंगाबाद के नामी मानी जमीदार परिवार पंडित वंशधर तिवारी का भरापूरा परिवार दादा के शिष्य है। उनके पुत्रों, बहू, नतिनो आदि ने बर्फानी दादाजी से दीक्षा ली। होशंगाबाद में उनके बड़े पुत्र प्रख्यात मुद्रा शास्त्री प्रोफेसर कृष्ण वल्लभ तिवारी के आमंत्रण पर दादाजी महाराज होशंगाबाद 1991 ओर अप्रैल 97 में आए थे। इधर स्थित श्री हनुमान जी मन्दिर के जीर्णोधार ओर कलश आरोहण का कार्यक्रम उनकी दिव्य उपस्थिति में सम्पन्न हुआ था। तीन चार दिन प्रोफेसर तिवारी जी के मंगलवार राजा मोहल्ला स्थित निवास पर रुके थे। दादाजी महाराज अलौकिक शक्तियां से सम्पन्न थे। तिवारी के अनुज पंडित राधा वल्लभ तिवारी के मढई जो वनगांव है, में पानी का संकट सदा रहता था। पानी की तलाश में लोग वन ग्राम जंगल जंगल भटकते थे। उनकी बड़ी बेटी शिवानी अशोक शर्मा बताती है कि बर्फानी दादाजी को यह समस्या बताई तो बाडे में एक स्थान पर दादाजी ने दृष्टि डाली, कहा खोदो यहां, ओर वहां खोदते ही पानी का विशाल भंडार सामने था। जो आज भी है, ओर आसपास के पूरे गांव की बरसो से प्यास बुझा रहा है।
दादाजी जब होशंगाबाद आए थे, तब रोज कर्मकाण्ड प्रवचन होते थे। मुझे प्रो तिवारी ओर प्रो पी दीक्षित ने दादा जी महाराज से मिलवाया। कहा यह हमारे नगर के प्रिय पत्रकार है। मैने चरण छुए वे तुरंत बोले बेटा हम आपके दोनो परिवार को जानते है। यानी संकेत मेरे बहनोई टीपी मिश्र के निवास स्थित पूज्य दादा धूनीबाले के आश्रम का था। और मेरे परिवार के बारे उन्होंने अनेक बाते बताई थी। मै अचरज से भरा पुनः चरणों मे झुक गया था। दादा जी ने कहा बेटा क्या चाहते हो मेंने अपना पेन उनके चरणों में सादर रखकर आशीर्वाद की प्राथना की दादाजी ने एक बेसन के लड्डू के साथ मुझे मुस्कुराते पेन लोटा दिया। उनके आशीर्वाद से सब मिलता गया।
तिवारी जी की उज्जैन निवासरत छोटी बेटी प्राचार्य श्रीमती अपर्णा सुबोध द्विवेदी ने बताया कि उनका परिवार बड़ी बहन के विवाह के लिए चिंतित थे। उन दिनों दादा जी महाराज भोपाल आश्रम में थे। लिहाजा उनके पिता ओर चाचा अवधेश जी दादा से मिले और प्रार्थना की। दादाजी ने दोनो से सुंदरकांड पुस्तिका देकर वहीं पाठ करने को कहा। फिर एक पाठ श्री हनुमान चालीसा का करने का कहा, दोनो ने जब पाठ किया तो 11 अंगूर दिए कहा जाओ। दोनो भाई घर गए फिर ठीक ग्यारह दिन बात दीदी की शादी हो गई। आज वे अपने परिवार के साथ मेरे घर के पास रहती है।
सिद्ध संत जब यहां प्रवचन देते थे तो एक आसन खाली रख बाते थे। उस पर चुपचाप लाल मुंह का बंदर आकर बैठ जाता था। प्रवचन खतम होते ही चला जाता था। लोग उसे हनुमान जी की कृपा बताते थे। एक दिन बन्दर नहीं आया उसकी जगह एक वृद्ध स्री आकर बैठ प्रवचन सुनती रही ओर बाद में देखते देखते लोप हो गई। बाद में कहा गया वे मां नर्मदा मैया थी। एक ओर घटना होशंगाबाद में उसी वक्त की है। प्रसाद का दही कम पड़ गया बाजार में मिला नही, तब दादाजी ने कहा एक सफेद कपडा बर्तन पर ढांक दो, यह बटने के बाद भी कम नहीं होगा। मुझे अपने परिवार सहित उनके दर्शन का पुण्य लाभ मिला इसे में अपना परम सौभाग्य मानता हूं। उनकी पावन स्मृति को शत शत नमन।
पंकज पटेरिया(Pankaj Pateria), वरिष्ठ पत्रकार कवि
सम्पादक शब्द ध्वज: 9893903003, 9407505391