इटारसी। कोरोना काल में मददगारों की कमी नहीं है। शहर के युवाओं के साथ वरिष्ठों की टीम भी है, जो लगातार किसी न किसी रूप में ईश्वर के दूत की भूमिका में है। इसी ईश्वरीय दूत टीम का हिस्सा हैं, तीसरी लाइन निवासी, युवा, मिलनसार, हंसमुख और बेफिक्री से जीने वाले हिमांशु अग्रवाल और सबके चहेते नाम से पुकारें तो बाबू अग्रवाल।
वरिष्ठ और सर्वप्रिय नेता स्व. सुरेश अग्रवाल की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के अलावा समाजसेवा में सबसे अधिक दिलचस्पी दिखाकर लोगों के मन में अपने लिए एक अलग ही छवि बना रहे बाबू अग्रवाल इन दिनों कोरोना के मरीजों के लिए सबसे अधिक सहयोगी बने हैं। अपने मित्र कन्हैया गुरयानी की जमीनी मदद की श्रंखला में आगे का जिम्मा यानी अस्पतालों में पलंग की व्यवस्था, कहां, कैसे मदद होगी, इसे आगे बढ़ा रहे हैं। बेहतर से बेहतर उपचार दिलाने में इनकी भूमिका अग्रणी चल रही है।
हिमांशु बाबू अग्रवाल को कोरोना पीडि़त वह परिवार जो हर जगह से थक चुका है, केवल मरीज का नाम, नंबर और उसकी स्थिति भेजनी होती है। बाबू की ड्यूटी शुरु हो जाती है। जी हां, वे इसे अपनी ड्यूटी ही मानकर काम करते हैं। भोपाल के अस्पतालों में मरीज को भेजकर भर्ती कराने के बाद उनकी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। हर रोज, उन अस्पतालों के डाक्टर्स से बात करके मरीज की स्थिति लेकर उसकी जानकारी मरीज के परिजनों को देने तक का काम बाबू करते हैं, क्योंकि कोरोना जैसी बीमारी में मरीज के पास तक कोई नहीं पहुंच सकता है, ऐसे में परिजनों को जानकारी नहीं मिल पाती है तो वे सेतु की भूमिका में होते हैं, इससे मरीज के परिजनों को काफी राहत मिलती है।
न श्रेय की चाहत है, ना फेमस होने की इच्छा, ईश्वर के दूत की इतनी मदद से परिजनों को मिल जाता है सुकून। मानवता की मिसाल बने युवा बाबू अग्रवाल मानो जेठ की तपती धूप में बरगद की सुकून भरी छांव का अहसास दिला रहे हैं। बिना चेहरे पर सिकन लाए, रात को कितना भी वक्त हुआ हो, किसी मरीज के लिए फोन आते ही उनका काम शुरु हो जाता है। हर रोज चार से पांच सौ कॉल अटेंड करना, सभी के लिए कुछ न कुछ व्यवस्थाएं करना, लगातार मोबाइल से मरीज के परिजनों, अस्पताल के डाक्टर्स, अपने सेवाभावी मित्रों से संपर्क में रहना कोई मानव के वश की तो बात नहीं, ये काम तो सिर्फ कोई ईश्वर का धरती पर भेजा बंदा ही कर सकता है।