ये हमारे हीरो…अंतिम विदाई सम्मान से कराने के लिए छोड़ दी अपनी फिक्र

Post by: Poonam Soni

प्रमोद पगारे के नेतृत्व में मानवता की सेवा में लगी है शांतिधाम समिति की टीम

इटारसी। जीवन कैसे भी जिया। कभी सम्मान मिला तो कभी कड़वे घूंट भी पीना पड़ा। लेकिन, अंतिम समय सम्मान से विदाई न हो तो जीवन का अर्थ नहीं। इसी सोच को लेकर हर दिन एक दर्जन से लेकर बीस अंत्येष्टि तक अपनी मौजूदगी में सम्मान से कराने वाले प्रमोद पगारे भले स्वयं को समाज की आवश्यक बुराई मानते हैं, लेकिन उनके अच्छे कार्यों को हमेशा याद किया जाएगा। जीवन के 63 वसंत देख चुके पगारे की इस कोरोनाकाल में कठिन दिनचर्या है।
वे हर दिन सुबह दस से साढ़े दस बजे तक श्मशानघाट शांतिधाम पहुंच जाते हैं। दोपहर में भोजन के लिए भी घर जाना नहीं हो पा रहा है। एक दिन में दस से बीस तक अंतिम संस्कार में रात 9 बजते हैं तो मंगलवार को रात को 2 बज गये। दरअसल, दो भोपाल से पार्थिव शरीर इटारसी आये और उनके अंतिम संस्कार के बाद ही वे घर जा सके। उनके साथ श्मशानघाट की पूरी टीम, सफाई कामगार, सहयोगी, प्रबंधक सभी पूरी ईमानदारी से लगे रहते हैं। कोरोनाकाल में तो हालात यह हो गये हैं कि कुछ अंतिम संस्कार खुले आसमान के नीचे कराने पड़े, क्योंकि शेड में जगह नहीं बची थी।
दोपहर में भी जब खाना खाने जाने का वक्त नहीं मिलता तो वे केवल तरल पदार्थ दही, लस्सी आदि जो ठंडी न हो, वह लेकर दिन गुजार देते हैं। खाना रात को भी देर हो जाने से ठीक से नहीं हो पाता है। उनका मानना है कि यही वक्त है, जब आपको मानवता के प्रति अपना धर्म दिखाना है। कठिन वक्त है, प्रकृति नाराज है। लेकिन यह वक्त भी गुजर जाएगा। हमें धैर्य नहीं खोना है।
जिला पत्रकार संघ के अध्यक्ष और शांतिधाम जनभागीदारी समिति के कार्यकारी सदस्य प्रमोद पगारे ने पिछले वर्ष भी कोरोना काल में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। वे श्री दुर्गा नवग्रह मंदिर समिति के अध्यक्ष भी हैं। मंदिर समिति ने हजारों जरूरतमंदों को राशन प्रदान किया था। जहां से जैसी मदद मिली वह भी करायी और मंदिर समिति की ओर से भी लोगों की मदद की। लेकिन, इसका कभी प्रचार नहीं किया। आज भी उन्होंने कहा कि जो हमारी टीम काम कर रही है, उसके बिना वे कुछ नहीं। लेकिन, हमारा मानना है कि नेतृत्व यदि बेहतर हो तो काम भी बेहतर होते हैं। ऐसे काम वाकई न सिर्फ तारीफ के काबिल होते हैं, बल्कि समाज के लिए प्रेरणा भी बनते हैं।

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