कार्यशाला में तथाकथित चमत्कारों का विज्ञान समझा
इटारसी। सैकड़ों नुकीली कीलों की शैया पर बिना किसी आवरण के प्रतिभागी हरीश चौधरी को लिटाकर उनकी छाती पर पटिया रखकर करीब डेढ़ दर्जन ईंटरखकर एक बड़े हथोड़े से फोड़ी गईं। न तो हरीश चौधरी को कीलें चुभीं और ना ही हथोड़े के प्रहार का कोई असर हुआ।
स्त्रोत वैज्ञानिक डॉ एमएस मारवाह ने एक हथौड़ा चलाया और ईंट चकनाचूर हो गई। कुछ ही पल में हरीश चौधरी मुस्कुराते हुए उठ खड़े हुये। इसके बाद डॉ मारवाह ने इस तथाकथित चमत्कार का वैज्ञानिक स्पष्टीकरण देते हुए हवा से भरे गुब्बारे को कांटे की शैया पर दबाया। अनेक प्रतिभागियों ने कोशिश की लेकिन गुब्बारा सही सलामत रहा। लेकिन जैसे ही एक आलपिन उसमें चुभोई, गुब्बारा फूट गया। डॉ मारवाह ने बताया कि क्षेत्रफल बढऩे पर दाब कम हो जाता है, नतीजा चुभन महसूस नहीं होती लेकिन यह कम होने पर चुभन का प्रभाव बढ़ जाता है। अधिक क्षेत्रफल में नुकीली कीलें उतनी चुभन नहीं पैदा करती जिससे ईंट फूट जाने पर भी उसके उपर लेटे व्यक्ति को कुछ नुकसान नहीं होता है।
ऐसे ही व्यक्तियों के शरीर के नजदीक टेसला क्वाईल चलाई दो लाख वोल्ट के करंट की मदद से स्पार्किंग निकलने का दृश्य दिखा। चुम्बक जब एल्यूमिनियम के एक मीटर के पाइप में से होकर गुजारा गया तो नीचे आने मेंं 20 सेकंड लगे। ऐसे अनेक प्रयोग राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद् नई दिल्ली के सहयोग से इटारसी के ईश्वर सभागृह में विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला में शिक्षकों के समक्ष प्रदर्शित कर उनका विज्ञान समझाया गया।
कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में नर्मदापुरम संभाग के शिक्षा विभाग के संयुक्त संचालक एसके त्रिपाठी उपस्थित हुए। उन्होंने कहा कि शिक्षक का अध्यापन कौशल इस प्रकार का हो कि विद्यार्थी का कक्षा से उठने का मन न हो। इसके लिये इस प्रकार के प्रयोग विज्ञान को रूचिकर बनाने में मददगार हो सकते हैं। पथरौटा स्कूल के प्राचार्य व्हीके लवानिया ने प्रशिक्षण की विस्तृत जानकारी दी। प्रशिक्षण के आयोजक राजेश पाराशर ने बताया कि प्रशिक्षण से प्राप्त फीडबैक के आधार पर बच्चों के लिये भी डॉ मारवाह के मार्गदर्शन में विशाल विज्ञान प्रदर्शनी का आयोजन किया जायेगा।
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