आज बहुरंग में विनोद कुशवाहा के संग
संजय लीला भंसाली फ़िल्म इंडस्ट्री की पहली ऐसी शख़्सियत हैं जिन्होंने अपने साथ अपनी माँ का नाम हमेशा के लिए जोड़ लिया है ताकि माँ कभी उनसे अलग न हो पायें। उनकी स्मृतियों में हमेशा बसी रहें लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वे पिता के करीब नहीं हैं। संजय के पिता फिल्म प्रोड्यूसर रहे हैं मगर उनके जाने के बाद माँ ने हर माँ की तरह उनको बड़ी मुश्किलों से पाला। साथ ही उनकी बहन बेला की भी परवरिश में माँ ने कोई कसर नहीं छोड़ी। संजय भंसाली ने पुणे फिल्म इंस्टिट्यूट से फिल्म संपादन का कोर्स किया तो बेला ने आगे चलकर न केवल फिल्मों का संपादन किया बल्कि निर्देशन भी किया। फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट, पूना तथा नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, दिल्ली में मुझे भी प्रवेश मिल गया था परंतु आर्थिक तंगी के कारण मैं वहां तक नहीं पहुंच पाया। उन दिनों टाइम्स ऑफ इंडिया प्रकाशन से एक फिल्मी पत्रिका *माधुरी* मुंबई से निकलती थी जिसके संपादक अरविंद तिवारी हुआ करते थे। उन्होंने अपनी पत्रिका में एक स्तम्भ शुरू किया *साहित्य मंथन* जिसका उद्देश्य था फिल्मों को अच्छी कहानियां मिले। इस स्तम्भ में पहली कहानी अमृतलाल नागर की बेटी डॉ अचला नागर की प्रकाशित हुई।*तलाक…तलाक…तलाक* जिस पर फिल्म बनी *निकाह*। दूसरी कहानी प्रकाशित हुई डॉ नरेन्द्र मौर्य की *साथ साथ*। इस कहानी पर उसी शीर्षक से फिल्म बनी *साथ साथ*। तीसरी कहानी मेरी प्रकाशित हुई। *मज़ाक*। किस्मत का मज़ाक देखिए कि इस पर कोई फिल्म तो बनी नहींअपितु पत्रिका भी बंद हो गई। हां इसी कहानी पर थोड़े-बहुत हेर-फेर के साथ मेरी बिना अनुमति के गोविंदा नीलम अभिनीत एक फिल्म जरूर बनी। मेरे पास इतने पैसे भी नहीं होते थे कि मैं निर्माता पर केस करता। उन्हीं दिनों मेरी एक कहानी *यादें* पर फिल्म बनाने के लिए *बीना फिल्म्स इंटरनेशनल* ने भी मुझसे संपर्क किया पर बात कुछ बनी नहीं। … लेकिन यहां अभी हम बात करेंगे सिर्फ और सिर्फ संजय की। संजय लीला भंसाली बहिर्मुखी प्रतिभा के धनी हैं। वे फिल्म निर्माता ( राउडी राठौर , मैरी कॉम , गब्बर इज बैक , शीरी फरहाद की तो निकल पड़ी ) , निर्देशक ( खामोशी ) , पटकथा लेखक ( खामोशी ) , संगीत निर्देशक ( गुज़ारिश) आदि रहे हैं । राजकपूर , सुभाष घई की तरह संजय को संगीत की जबरदस्त समझ है। यही वजह है कि उन्होंने अपनी कुछ फिल्मों में संगीत भी दिया है। जबकि राज साहब और सुभाष घई ने अपनी किसी भी फिल्म में संगीत देनी की जुर्रत नहीं की । खैर । यहां मैंने निर्माता के अलावा शेष सभी के लिए संजय की पहली फिल्मों का ही ज़िक्र किया है। वैसे उन्होंने संपादन का कोर्स करने के बावजूद विधु विनोद चौपड़ा के सहायक निर्देशक के रूप में फिल्म *परिंदा* से अपने कैरियर का आगाज़ किया था। बाद में संजय भंसाली ने विधु विनोद चौपड़ा के साथ *1942 अ लव स्टोरी* का निर्देशन भी किया परन्तु कतिपय विवादों के कारण संजय विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म *करीब* से अलग हो गए। दरअसल संजय को गुस्सा बहुत जल्दी आता है। *खामोशी*, *हम दिल दे चुके सनम*, *सांवरिया* साथ करने के बाद भी सलमान से उनकी रंजिश है। अन्यथा सम्भव था कि *देवदास* में शाहरुख की जगह सलमान ही होते क्योंकि * देवदास* संजय की महत्वाकांक्षी फिल्म थी। सलमान खान, अजय देवांगन *देवदास* के लिए संजय भंसाली की पहली पसंद थे। मगर संजय ने अक्खड़ सलमान को दरकिनार कर अनुशासित शाहरुख को अपनी फिल्म में लिया। अजय देवांगन की अपेक्षा उन्होंने शाहरुख को तरजीह देना ठीक समझा। संजय शाहरुख की आंखों में अपना ‘ देवदास ‘ देख रहे थे। इसकी चर्चा फिर कभी। इधर अभी जैसे-तैसे सलमान संजय लीला भंसाली की आने वाली फिल्म *इंशाअल्लाह* में काम करने को तैयार हो गए थे। उनकी नायिका के लिए आलिया भट्ट को भी कास्ट कर लिया गया था। … लेकिन फिल्म टल गई ।या यूं कहा जाए डब्बा बन्द हो गई। जब दो शख़्सियतों के अहं टकराते हैं तो उसकी यही परिणिति होती है। ऐसे ही कोरिग्राफर वैभवी मर्चेंट से भी उनका ब्रेक अप हो गया। जबकि बात शादी तक पहुंच गई थी। बहरहाल संजय लीला ने अब तक शादी नहीं की है। उनकी बहन बेला भी अविवाहित हैं। बतौर अभिनेता संजय दिलीप साहब के फैन रहे हैं। ऐसे ही अपनी नायिकाओं में वे प्रियंका चौपड़ा को कुछ ज्यादा ही तवज्जो देते हैं।
आगे चलकर संजय को रणवीर-दीपिका की जोड़ी कुछ इस कदर पसन्द आई कि उन्होंने दोनों को एक के बाद एक तीन फिल्मों में रिपीट किया। संयोग देखिये कि तीनों फिल्में *गोलियों की रासलीला रामलीला* , *बाजीराव मस्तानी* , *पद्मावती* सुपर हिट साबित हुईं। हालांकि इनमें से *पद्मावती* को छोड़कर दो फिल्मों में उन्होंने प्रियंका के लिए जगह बना ही दी थी।
संजय को उन्हें *ब्लैक कलर* उसी तरह पसन्द है जैसे करण जौहर को *लाल रंग* पसन्द है। करण की फिल्मों में उनकी नायिका लाल रंग की ड्रेस जरूर पहनती है। संजय की रणवीर कपूर अभिनीत फिल्म *सांवरिया* तो रात के काले अंधेरे में ही खत्म हो गई थी। ये फिल्म एक रशियन कहानी पर आधारित थी। शायद आपको जानकारी न हो 80 के दशक में मेरी कवितायें *रूस* से प्रकाशित हुई थीं। तब मुझे ई गोलुबेब ने रशिया आमंत्रित भी किया था। मगर सोवियत रूस के अंतिम राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव के समय रशिया के विघटन के चलते मेरा वहां जाना संभव नहीं हो पाया। खैर ये बीते वक़्त की बात हो गई । ज़िंदगी में बहुत कुछ पीछे छूट गया। जीवन कहीं भी ठहरता नहीं है। *खामोशी* और *ब्लैक* की तरह संजय की *सांवरिया* फिल्म भी बुरी तरह फ्लॉप हो गई। आगे चलकर इसमें एक फिल्म का नाम और जुड़ गया। *गुजारिश*। संजय की सभी फिल्में मैंने देखी हैं। *गुजारिश* का ये गीत ” मिल गई आज आसमान से ” मुझे बेहद पसंद है। इसमें ऐश्वर्या ने लाजवाब अभिनय किया है । फिर भी इस फिल्म की गिनती तो उनकी फ्लॉप फिल्मों में ही होती है। … लेकिन फिल्म फ्लॉप होने के बाद भी संजय लीला भंसाली की फिल्मों को अवार्ड तो मिल ही जाते हैं। जैसे उन्हें *ब्लैक* फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। उनकी फिल्म *मैरी कोम* (निर्माता) को भी राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया था। हिन्दी फिल्म सिनेमा में योगदान के लिए संजय लीला भंसाली को पदमश्री पुरस्कार से भी सम्मानित् किया जा चुका है। वैसे तो अवार्ड और पुरस्कारों की ये सूची काफी लंबी है।
सारांश में कहा जाए तो संजय लीला भंसाली की *हम दिल दे चुके सनम* ( चार राष्ट्रीय पुरुस्कार / 9 फिल्म फेयर अवार्ड ), *देवदास* ( 5 राष्ट्रीय पुरुस्कार /10 फिल्म फेयर अवार्ड ), *बाजीराव मस्तानी* ( 1 राष्ट्रीय पुरुस्कार / 7 फिल्म फेयर अवार्ड ) अवार्ड विनिंग फिल्में रहीं । इसमें से चार राष्ट्रीय पुरुस्कार / 10 फिल्म फेयर अवार्ड तो संजय लीला भंसाली के खाते में गए। यहां ये उल्लेखनीय है कि उन्हें पहली बार *मैरी कॉम* जैसी फिल्म प्रोड्यूस करने के लिए नेशनल एवार्ड दिया गया था । इन फिल्मों ने व्यवसाय भी अच्छा किया । जिसमें *देवदास* तो अपने समय की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म साबित हुई। इस फिल्म ने 100 करोड़ से भी अधिक का बिजनेस किया जबकि *देवदास* की कुल लागत करीब 50 करोड़ थी। ये फिल्म एक ऐसी कहानी पर बनी थी जिस पर पहले ही भारतीय तथा अन्य भाषाओं में लगभग 20 फिल्में बन चुकी थीं। संजय की *गोलियों की रासलीला* ने भी 100 करोड़ से ऊपर का व्यवसाय किया। *बाजीराव मस्तानी* ने तो कमाई के कीर्तिमान स्थापित किये। इस फिल्म के निर्देशन के लिए भी उन्हें नेशनल एवार्ड दिया गया। *हम दिल दे चुके सनम* , *देवदास* , *ब्लैक* के लिए संजय भंसाली को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्म फेयर अवार्ड पहले ही मिल चुका था। आज उनकी संपत्ति अरबों में है। उनके सेट भी बहुत भव्य और महंगे रहते हैं । वे एक टी वी सीरियल *सरस्वती चन्द्र* प्रोड्यूस कर चुके हैं। साथ ही टी वी शो *झलक दिखला जा* / *एक्स फैक्टर इंडिया* में संजय जज की कुर्सी पर भी बैठे। इस सबसे हटकर संजय लीला भंसाली को कविता पढ़ने का / सुनने का बहुत शौक है। शायद इसीलिए वे साहिर पर फिल्म बनाने का विचार रखते हैं। उसमें साहिर के रोल के लिए उन्होंने अभिषेक बच्चन और अमृता प्रीतम की भूमिका के लिए तापसी का नाम सोच रखा है।
संजय लीला भंसाली पुरानी फिल्मों के संगीत में भी रुचि रखते हैं । संजय की हर फिल्म से दर्शकों को बहुत उम्मीदें रहती है। इस समय दर्शकों को उनकी ताजातरीन नायिका प्रधान फिल्म ‘*गंगूबाई* की बेसब्री से प्रतीक्षा है। देखना ये है कि *एस हुसैन जैदी* की किताब *माफिया क्वीनस ऑफ मुम्बई* पर आधारित आलिया भट्ट अभिनीत उनकी ये नई फिल्म कितने अवार्ड अपने नाम करती है और बॉक्स आफिस पर कितनी कमाई करती है। फिलहाल तो उसके भव्य सेट तोड़ दिये गए हैं क्योंकि संजय लीला भंसाली का सोचना ये है कि लॉक डाउन के कारण सेट वीरान पड़े हुए थे और मेंटनेंस पर इतना खर्च हो रहा था कि नए सेट उससे भी कम खर्च में बन जायेंगे । आखिर संजय तो संजय ही हैं । फिल्म इंडस्ट्री के नए *शो मेन*।
लेखक मूलतः कहानीकार है परन्तु विभिन्न विधाओं में भी दखल है। आपके ४ प्रकाशित काव्य संग्रह, अनेक साहित्यिक पत्रिकाओं और कविताओं का प्रकाशन, भोपाल और बिलासपुर विश्व विद्यालय द्वारा प्रकाशित अविभाजित मध्यप्रदेश के कथाकारों पर केन्द्रित वृहत कथाकोश, कई पत्रिकाओं में वैचारिक प्रतिक्रियाओं का प्रकाशन, सोवियत रूस से कविताओं का प्रकाशन, आकाशवाणी से रचनाओं का प्रसारण, कविताओं पर प्रदर्शनी हुई है। इसके अलावा आपने कृषि, पंचायत, समाज कल्याण, महिला बाल विकास, आरजीएम, शिक्षा विभाग में विभिन्न कार्यपालिका, प्रशासनिक, अकादमिक पदों पर सफलता पूर्वक कार्य किया है।
Contact : 96445 43026
लेखक श्री विनोद कुशवाहा जी को बधाई संजय लीला भंसाली पर बहुत सुंदर जानकारी रोचक शैली में दी गई है