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हरिओम संस्था : अब तक 950 लोगों का अंतिम संस्कार करा चुकी है

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इटारसी। जिंदगी के दौरान आपको हो सकता है, कि मददगार मिलते रहें। लेकिन, मौत के बाद भी आपके जीवन के संस्कारों में से एक अंतिम संस्कार में कोई आगे आए, यह सबके नसीब में नहीं होता है। हां, यदि किसी की मौत इटारसी शहर में होती है, और आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं तो चिंता करने की जरूरत नहीं है। यहां एक संस्था है, जो पिछले तेरह वर्ष से इस नेक काम में लगी है, नाम है हरिओम। हां, यदि कोई इस शहर के निवासी नहीं हैं, लेकिन प्राण इस शहर में छूटे और यहीं अंतिम संस्कार करना है, या अपने शहर जाने के लिए आर्थिक मदद चाहिए तो भी यह संस्था आगे बढ़कर आपकी पार्थिव देह को आपके घर पहुंचाने में मदद करेगी।
दरअसल, जीआरपी थाने में पदस्थ एक सिपाही के मन में आये विचार के बाद शहर के कुछ युवाओं ने संस्था बनाकर इस काम की शुरुआत की। यह सिपाही जीआरपी थाने में मर्ग का काम करता था। लावारिश लाशों की हालत और गरीब परिस्थिति के लोगों को परेशान होता देख सिपाही श्याम चंदेले के मन में विचार आया था कि क्यों न इसके लिए कुछ लोगों से बात की जाये। यहीं से इस सेवा की शुरुआत हरिओम संस्था ने की। 1 मई, को मजदूर दिवस से इस संस्था ने यह काम शुरु किया और इन तेरह वर्षों में 950 तक शवों का अंतिम संस्कार करा चुके हैं। हालांकि जिस वक्त इस संस्था की शुरुआत की थी तो लगभग आधा दर्जन लोग जुड़े थे। आज केवल दो सदस्यीय संस्था ही यह काम करती है। हालांकि कुछ लोगों से आर्थिक मदद मिल जाती है।

ऐसे हुई थी शुरुआत
प्रारंभ में मजदूर दिवस पर 1 मई 2007 में इस संस्था से जुड़े पंकज राठौर, संदेश पुरोहित, मनोज सारन, दीपक उज्जैनिया, राजेश तिवारी, सूर्यकांत त्रिवेदी सहित अन्य कुछ युवा जुड़े थे। लेकिन, अब केवल मनोज सारन और गोपाल सिद्धवानी ही इस जिम्मेदारी को निभा रहे हैं। इनको समय-समय पर नर्मदा अस्पताल के संचालक डॉ. राजेश शर्मा, डॉ. धीरज पाठक, संजय गोठी, अधिवक्ता आरके बंग भी मदद करते रहते हैं। एक बुजुर्ग महिला हैं, जिन्होंने कभी अपना नाम नहीं बताया, वे भी दो बार पांच से दस हजार तक मदद कर चुकी हैं। संस्था के पास जीआरपी से जो नाम आते हैं, कि इनको मदद करनी है, उसको ये संस्था मदद करती रही है। अब शहर के भी लोग गरीबों के अंतिम संस्कार के लिए इनसे मदद लेते रहते हैं। अब तक लगभग 950 अंतिम संस्कार वे लोग कर चुके हैं।
ये भी किया है संस्था ने
एक बार एक आर्मी अधिकारी की संपर्क क्रांति से गिरकर मौत हो गयी थी। अगले दिन चेन्नई के आगे रामेश्वरम के लिए कोई ट्रेन नहीं थी। तत्कालीन स्टेशन अधीक्षक डीके रिछारिया ने शव के लिए कोफीन बनाने वाले मनोज राज के सहयोग से शव को भेजने के लिए तैयार किया और संपर्क क्रांति को इटारसी स्टेशन पर रोककर उसमें शव रखकर रवाना किया। यदि यह ट्रेन नहीं रोकते तो शव को यहां दो दिन और रखना पड़ता।
हैद्राबाद में हुए बम विस्फोटो में जान गंवाने वाले दो अधिकारियों के शव यहां सुबह 8 बजे आये। इसके बाद उन्हें विशेष एसएलआर से जबलपुर की ओर ताप्तीगंगा एक्सप्रेस से रवाना किया गया। लोको इंस्पेक्टर एमके जैन व इब्राहिम खान किसी काम से हैद्राबाद गये थे। हैद्राबाद बम विस्फोट में दोनों की मौत हो गयी। स्टेशन प्रबंधक डीके रिछारिया सहित अन्य अधिकारियों ने हरिओम की मदद से शवों को उनके घर भिजवाया।
हैद्राबाद में मजदूरी करने वाला युवक शिवसागर ट्रेन से घर लौट रहा था। पत्नी कौशल्या की तबीयत खराब होने पर यहीं उतर गया। एसएस डीके रिछारिया की मदद से उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती किया। उपचार के दौरान कौशल्या ने दम तोड़ दिया। उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि पत्नी की इच्छा के अनुरूप सुहागनों की तरह अंतिम संस्कार कर सके। हरिओम ने सहारा देकर कौशल्या का अंतिम संस्कार कराया।

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