: पंकज पटेरिया –
प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।
भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।
और आज आठ दशक बाद भी महाकवि। कीर्ति शेष डॉक्टर डॉ हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला का मधुघट लबालब भरा है, कण भर भी खाली नहीं हुआ जब कि लाखों में मधु के दीवाने भर भर प्याले यह मदमस्त करने वाली मधु मदिरा पी चुके हैं। देश समाज के प्रसंग में वह कल भी प्रासंगिक थी और आज भी धर्म, राजनीति, आपसी भाईचारा, प्रेम सद्भाव आदि संदर्भ में उतनी ही प्रासंगिक है।
सुप्रसिद्ध इलाहाबाद आज प्रयागराज विश्वविद्यालय के अंग्रेजी के व्याख्याता बच्चन जी का जन्म एक सामान्य आर्य समाज श्रीवास्तव परिवार में 27 नवंबर 19०७ में हुआ था। जात-पात की सकरी गली से कोसों दूर, बचपन में घर परिवार के लोग निकनेम बच्चन से पुकारते थे। लिहाजा श्रीवास्तव की जगह उन्होंने अपना सरनेम बच्चन ही रख लिया था। और वही सरनेम उनके बच्चों ने भी रखा। पिता के चार बच्चे अल्पायु में दिवंगत हो गए थे। तब उनके पिताजी को किसी ज्योतिष विद ने परामर्श दिया था कि जब भी पत्नी गर्भवती हो तो वह हरिवंश पुराण सुने।
लिहाजा संघर्षों का घोर हलाहल पीते मेधावी बच्चन जी आगे बढ़ते गए। विश्व प्रसिद्ध हुए। सुप्रसिद्ध अंग्रेजी कवि डबलूबी इट्स की कविताओं पर उन्होंने अपनी पीएचडी की थी। सुखद प्रसंग यह है कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में वह व्याख्याता, नियुक्त होने के पहले यही एक विद्यार्थी भी रहे हैं।
100 से अधिक पुस्तकों की रचना के बाद चार खंडों में बच्चन जी ने अपनी आत्मकथा लिखी। यहां यह जिक्र कारण मौजू होगा कि राष्ट्रपिता गांधी जी के बाद अपना मन खोलकर सारी बातें लिखने वाले बच्चन की ही एक मुक्त मन साहित्यकार रहे हैं। बहु प्रश्नित मधुशाला बहु विवादित भी हुई, यह दुष्प्रचार हुआ कि यह शराब की वकालत करती है। गांधी जी ने भी शुरू-शुरू में यह माना था लेकिन इसकी दार्शनिक पृष्ठभूमि को गहरे तक समझ उन्होंने इसकी सराहना की थी।
बच्चन जी ने करीब 10 वर्ष विदेश मंत्रालय में भी नौकरी की। वह छोटे बड़े का सम्मान करते थे। यह अदना कवि लेखक पत्रकार जब राजधानी भोपाल में पढ़ता था, एकाएक मोतीझरा का शिकार हो गया था।
कविता का शौक घर के वातावरण के कारण बचपन से लग गया था। तब मैंने बच्चन जी को दिल्ली के पते पर एक पोस्ट कार्ड लिखा था। जिसमें अपनी अस्वस्थता का हवाला देते हुए, अपने कवि होने का जिक्र कर मार्गदर्शन चाहा था। बच्चन जी ने प्रियवर संबोधन से मुझे उत्तर देते हुए लिखा था बंधु मार्ग तो खुद तलाश ना होता है सहायक प्रभु होता है। आप अपने दीपक आप हैं। जल्दी स्वस्थ हो पढ़िए लिखिए यह कामना करता हूं। शुभाकाछी जैसे अंग्रेजी में गुड लिखते हैं, वैसे बच्चन के हस्ताक्षर के साथ महाकवि बच्चन का पत्र उत्तर पाकर मैं इतना खुश हुआ की जल्दी ही स्वस्थ हो गया।
शताब्दी शिखर की ओर अग्रसर 95 वर्ष के कवि मनीषी मेरे अग्रज डॉक्टर परशुराम शुक्ल विरही जी ने मुझे बताया था कि ललितपुर उत्तर प्रदेश में एक कवि सम्मेलन में विरही जी उन्हें आमंत्रित किया था। दादा उन्हें टांगे से लेकर कवि सम्मेलन स्थल पर ले जा रहे थे। तब उन्होंने कहा था यहां जेल कहां है रास्ते में हो तो मुझे ले चलिए। विरही जी उन्हें जेल के दरवाजे के पास ले गए। बच्चन जी टांगे से उतरे और तुरंत उन्होंने झुक कर वहां की मिट्टी को हाथ से उठाया और माथे पर लगाया। दादा के पूछने पर बताया कि मेरे पितामाह यहां जेलर थे। उन्होंने यह भी बताया उनका परिवार भीषण आर्थिक संकट से ग्रस्त रहता था। तब एक बार गंगा तट से वे परिवार सहित गुजर रहे थे। 1 जून के भोजन का प्रबंध मुश्किल होता था। तभी उन्हें गंगा तट पर परिक्रमा करते हुए कोई एक संत मिले थे तो उन्होंने उन्हें एक पीतल की थाली कटोरी भोजन सहित दी थी। और कहा था कि यह थाली जब तक तुम्हारे पास रहेगी, तब तक किसी तरह का संकट नहीं रहेगा। धन धान्य की संपन्नता रहेगी।
बच्चन जी के पुत्र महानायक अमिताभ बच्चन का हाथ देखकर बच्चन जी के अग्रज मित्र कीर्ति शेष सुमित्रा नंद पंत नेभविष्यवाणी की थी कि यह बहुत ख्याति नाम होगा। उनका नाम अमिताभ भी पंत जी ने रखा था। खैर यह बात अलग है किन दोनों महान साहित्यकारों में किसी मामले को लेकर हुआ विवाद न्यायालय तक भी पहुंचा था। अस्तु उनसे जुड़े अनेक संस्मरण आकाशवाणी में सेवारत रहे मेरे एक और स्व भाई मनोहर पटेरिया मधुर ने भी सुनाए।
मैं बचपन से उनका मुरीद हो गया था। विदेश में जहाज से लौटते हुए उन्होंने एक कविता लिखी थी रात आदि खींचकर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने। आयरलैंड कविता संग्रह में उनकी यह कविता है। जो मुझे आज भी प्रिय लगती है।
मन्ना डे और जयदेव जी ने मधुशाला को स्वर संगीत देकर इसे अमर कर दिया है। उनकी स्मृति को प्रणाम करते हुए एक यह शेर का उल्लेख उपयुक्त लगता है।
हमें भी तुमसा इनाम मिले दुनिया में, की जमीन के सारे आंसू तुम्हें सलाम करते हैं।
नर्मदे हर
पंकज पटेरिया (Pankaj Pateriya)
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार
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