सदियों पुरानी परंपरा निभाई, ग्वाल बाबा मंदिर पर लगा पशुधन मेला

Post by: Rohit Nage

Livestock fair held at Gwal Baba temple following centuries old tradition

इटारसी। दीपावली के दूसरे दिन पशुओं का सजाकर उनके सामने पटाखे फोड़कर उनको निडर बनाना, ग्वालबाबा से उनको सालभर निरोगी रहने का आशीर्वाद प्राप्त करने जैसी पुरातन परंपरा आज भी निभाई जा रही है। पहले यह अनेक स्थानों पर होती थी, लेकिन सीमित स्थानों पर अब भी इसका निर्वाह किया जा रहा है। नाला मोहल्ला के मुहाने पर मेहरागांव नदी किनारे बने ग्वालबाबा मंदिर में यह परंपरा मेहरागांव के ग्रामीण अब भी निभा रहे हैं।

इस वर्ष भी ग्वाल बाबा मंदिर में पशुधन मेला आयोजित हुआ। यहां सुबह 8 बजे से ही सैकड़ों पशुपालक ग्वाल बाबा की पूजा अर्चना करने के लिए एकत्र हो गए थे। धीरे-धीरे यह संख्या हजारों में पहुंच गई। करीब सुबह 9.30 बजे गाडरी पाल समाज के पशुपालक यहां तड़का व धर्म ध्वज लेकर पहुंचे। इन्हीं में से एक दीपक पाल पिता मुन्ना पाल नामक युवक जिनके शरीर में आज ग्वाल बाबा का वास होता है, वह यहां पहुंचे। अपने ग्वाल बाबा को सशरीर मंदिर प्रांगण में पहुंचने पर मेहरागांव, न्यूयॉर्ड एवं नाला मोहल्ला के श्रद्धालुओं ने उनकी अगवानी की।

इसके पश्चात मंदिर में उनका प्रवेश हुआ। वहां से कुछ समय बाद पशु रक्षा की सामग्री लेकर ग्वाल बाबा बाहर आए और सब पशुपालकों पर अमृत रूपी जल छिड़काव कर सबके सुख समृद्धि की कामना की। इसके पश्चात मंदिर की परिक्रमा कर ग्वाल बाबा कुछ समय मंदिर के द्वार पर ही दर्शन के लिए ठहर गए, यहां समस्त जनमानसों ने उनका आशीर्वाद लिया। तत्पश्चात मंदिर के अंदर भी ग्वाल बाबा ने सबको भभूत दाने प्रदान कर आशीर्वाद दिया।

उल्लेखनीय है कि ग्वाल बाबा मंदिर में बीते 100 वर्षों से इस प्रकार पशुधन मेला लगता है, पहले यहां सैंकड़ों की संख्या में पशु आते थे। हालांकि अब गौवंश पशु यहां पर नहीं आते हैं, लेकिन उनके पालक यहां आकर अपने पशुओं एवं अपनेे परिवार के सुख समृद्धि की कामना करते हैं एवं आतिशबाजी कर खुशियां मनाते हैं। ऐसा ही एक मेला वर्षों पूर्व तक पुरानी गल्ला मंडी पत्ती बाजार में लगा करता था, जो कई बरस पूर्व यहां आबादी बसने के बाद बंद हो गया।

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