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महिलाएं पुरुषों से ज्यादा कमा कर बनीं स्वावलंबी

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इटारसी। होशंगाबाद जिले की इटारसी तहसील का एक छोटा सा गांव मेहरागांव आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। मेहरागांव को प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर पर अपनी बांस शिल्पकला के लिये अलग ही पहचान मिली है और मेहरागांव को यह पहचान वहां की स्वावलंबी महिलाओं ने अपने बांस शिल्प के अनूठे प्रदर्शन से दिलाई है।
मेहरागांव की ये महिलाएं आशा खेर, अर्चना, शकुन बाई, ममता रोहरे, आशाबाई, मनुबाई, विनीता भदरेले, रंजीता बघेल, ऊषा मोरे, सरोज बाई, कुसुम मोरे आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है। एक समय ऐसा था जब दो वक्त की रोटी जुटाना इन महिलाओं के लिये काफी कठिनाई भरा कार्य था। हालांकि ये सभी महिलाएं जन्मजात शिल्पी है। बांस से बनी हुई तरह तरह की वस्तुएं बनाना इन्होंने अपने माता-पिता से ही सीखा था। किन्तु मार्केट एवं प्रोत्साहन तथा आर्थिक सहायता न मिलने से इनकी कला लगभग दम तोड चुकी थी। ऐसे समय में ग्रामोद्योग एवं हथकरघा विभाग के सहायक संचालक अरुण पाराशर ने इन महिलाओं को प्रोत्साहित किया और मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना तथा मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना से सभी महिलाओं को 35-35 हजार रुपये का बैंक ऋण दिलाया और इन महिलाओं के पर्याप्त प्रशिक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित की। आर्थिक सहायता एवं प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद इन महिलाओं ने फिर दुगुने उत्साह से कार्य करते हुए और अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए बांस की तरह तरह की टोकरियां, टेबल, कुर्सियां, रैक, सूपा, गुलदस्ता स्टैण्ड, बांस के आकर्षक फोटो फ्रेम, मग एवं अन्य सुंदर सुंदर कलाकृतियां बनाई और मार्केट में सेल किया। इसके उत्साहजनक नतीजे सामने आए। आज इन महिलाओं के द्वारा बनाई गई बांस शिल्प की वस्तुओं एवं कलाकृतियों की दूर दूर तक मांग है। इनके द्वारा बनाए गए सामानों की प्रदर्शनी पचमढी उत्सव, ग्वालियर मेला एवं प्रदेश में अन्य स्थानों पर आयोजित होने वाले बडे बडे आयोजनों में लगाई जाती है।

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