राजनीति में कुछ निश्चित नहीं होता है। दो वर्ष पूर्व ही एकदूसरे के खिलाफ राजनीतिक अखाड़े में खम ठोंक रहे राजनीति के दो दिग्गज अब एक ही अखाड़े में आ गये हैं। राजनीति के गुरु माने जाने वाले वयोवृद्ध नेता बाबू सरताज सिंह (Sartaj Singh) अपने चेले विधायक डॉ.सीतासरन शर्मा (MLA Dr. Sitasaran Sharma) के सामने विधानसभा चुनाव में मैदान में थे। चुनाव में एकदूसरे के खिलाफ सीधे तौर पर तो कुछ कहने से बचे रहे और जीत के बाद डॉ.शर्मा को सरताज सिंह ने बधाई भी दी और चले गये। यह गुरु-शिष्य की मर्यादा मानी गयी तो सरताज सिंह बहुत बीमार हो गये तो डॉ.सीतासरन शर्मा उनको देखने और मिलने भी पहुंचे। दो बड़े नेताओं ने छोटों को संदेश दिया कि राजनीति में चुनाव तक मर्यादा के भीतर सबकुछ जायज है, लेकिन कभी मन में द्वेष नहीं रखना चाहिए।
राजनीति में इस तरह के उदाहरण आजकल विरले ही देखने को मिलते हैं। आज की युवा पीढ़ी दुश्मनी की हद तक विरोध पालती है, उसे पोषित करती है और मौका आने पर हिंसा का रूप तक दे देती है। यह राजनीति तो कतई नहीं मानी जा सकती है। बहरहाल, बात दो राजनीतिक दिग्गज की। क्या वे आपस में इसी सौहार्द्र और सद्भाव से रह पाएंगे। भविष्य की राजनीति क्या होगी? क्या हमेशा की तरह वे अपने इर्दगिर्द के लोगों की बातों में आकर उनकी बात मानकर दूरियां बना लेंगे या फिर स्वयं के विचारों और सोच को प्राथमिकता देकर एका बनाये रखेंगे और पार्टी की मजबूती को ही तबज्जो देंगे, यह भविष्य के पेट में है।
माना तो यह जा रहा है कि बाबू सरताज सिंह, इस आयु में भी सक्रिय हैं। शुक्रवार को तो वे जिला मुख्यालय होशंगाबाद में आयोजित किसान सम्मेलन (Kisan Sammelan) में अपनी सक्रिय भागीदारी भी निभा चुके हैं। इस दौरान दोनों नेताओं का आमना-सामना हुआ और दोनों ने अपनी मर्यादित शैली में एकदूसरे का अभिवादन भी किया। लेकिन, क्या यह सुचिता बरकरार रह पाएगी? यह सवाल अब राजनीतिक गलियारों की सुर्खियां बनने की दिशा में बढ़ रहा है। दरअसल, आगामी माह में नगरीय निकाय के चुनावों की रणभेदी बजने वाली है। जाहिर है, ऐसे में सरताज सिंह के निकट रहे कार्यकर्ता फिर से नयी उमंग से चुनावों में अपने होने की अपेक्षा पाल बैठे हैं। वे फिर प्रयास करेंगे कि सरताज बाबू उनकी सिफारिश करें और वार्ड में वे अपनी टिकट पक्की कर पाएं। हो सकता है, नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए भी कुछ नेता जो उनके करीबी रहे हैं, उम्मीद लगाकर रखे होंगे। ऐसे में क्या अपनों को टिकट दिलाने की इस मुहिम में टकराव हो सकता है? यदि नेता एकजुट रहना चाहें तो क्या उनके समर्थक, उनको एकजुट एकराय होने देंगे?
सवाल तो हैं, जिनके जवाब भी तलाशने होंगे। इतिहास गवाह है, इटारसी में जब भी इन दोनों नेताओं ने नगरीय निकाय चुनावों में अपनो को टिकट दिलाने और चुनाव के दौरान एकदूसरे के समर्थकों द्वारा निबटाने का खेल खेला है, कभी भारतीय जनता पार्टी की परिषद नहीं रही है। सवाल यह है, कि क्या नगर पालिका चुनाव के लिए बाबू सरताज सिंह बिना कोई हस्तक्षेप किये तटस्थ रह पाएंगे? यदि रह पाये तो भी पार्टी को फायदा हो सकता है और यदि नहीं तो फिर दोनों मिलकर नगर पालिका चुनाव जिताने की जिम्मेदारी ले लें और चुनाव पूर्व तय कर लें कि किन वार्डों में उनके समर्थक मजबूत स्थिति में हैं, वे केवल वहीं ध्यान दें और दूसरे के वार्ड में दखल न दें तो भी कुछ सुविधाजनक हालात बन सकते हैं। यह केवल चर्चाओं में सवाल है, आगे आने वाले दिनों में दोनों नेताओं के मध्य कितना तालमेल होता है, वे कैसे आगे बढ़ते हैं, वक्त बताएगा। वक्ती तौर पर तो हम यही कह सकते हैं कि किसान सम्मेलन में दोनों की मुलाकात प्रेरणा देने वाली है। दोनों के मध्य ऐसे ही संबंध रहें तो पार्टी की मजबूती दोगुना हो जाएगी।
सियासतनामा : क्या फिर होगा, गुरु-शिष्य का आमना सामना?

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