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व्यंग्य: अब वो दिन कहां रहे जब लोग शुभकामनाएं की बजाय भूत बना देते थे

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अखिलेश शुक्ल: मित्रों आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं। लेकिन अब वह दिन कहां रहे जब लोग शुभकामनाएं देने के बजाय भूत बना देते थे। तब भी यही इटारसी थी जहां होली के दिन भर निकलना मुश्किल हो जाता था। बाकी विवरण किसी और लेख में। अभी तो केवल होली।
आज का यह परिवर्तन मुआ किसी मरखनी गाय के समान सरपट भागता हुआ चला आया है। उस गाय के नुकीले सींग से बचने के प्रयास में कई एक औधे मुंह गिरे हैं। ऐसा कौन होगा जो ऐसे गिरे पड़ों की शुभकामना ले रहा होगा? लेकिन हम तो ले रहे हैं। छोड़ो यार कहां की बात ले बैठे। बात शुभकामना की हो रही हैै। फिर भी उस समय के उन मरदूदों की शुभकामनाएं भी याद होगीं? जो किसी तरह गिरते पड़ते घर पहंुचते थे। खुद के बजाय किसी और के घर में घुसकर पिटने से बचते थे। तब वे कहां कुछ बोलते थे। उनके श्रीमुख से भांग अंटे की भाषा निकलती थी। सोचें क्या वह शुभकामना रही होंगी?

वह भी क्या समय था जब गब्बरसिंह शोलें फिल्म में होली त्यौहार के बारे में बार बार पूछता था। क्या शुभकामनाएं देने के लिये, शायद नहीं? अमिताभ बच्चन जी ने कई बार रंग बरसाया लेकिन उसमें रंग तो नहीं बरसा। रंग में भंग जरूर हो गया। प्रसिद्ध नायक राजकुमार तो हमेशा कहते थे कि वह होली भी हमारी होगी, रंग भी हमारा होगा, बस कपड़े यदि पहनें हो तो तुम्हारे होगेें? अब उन कपड़ों पर क्या शुभकामनाओं का रंग चढ़ जाता? उस समय की प्रसिद्ध नायिका राखी ने कहा था, ठाकुर मेरे करण अर्जुन आयेगे, जरूर आयेगे। तमाम लेकिन परंतु के बाद आये की नहीं? उन्होंने ठाकुर के साथ होली खेली, माला भी पहना दी। पर क्या शुभकामनाएं दी?

इधर एक हम हैं कि शुभकामनाएं देने के लिये मरे जा रहे हैं। फिर भले ही लेने वाला उसे सोशल मीडिया पर किसी और को भेजकर मजें लूटे, गुजिया पपडी खायें।
अब तो शुभकामनाएं बिना मांगे मिल रही है। जिन्हें चाहियें उन्हें मोबाईल पर भर भर स्क्रीन। जनाब नहीं चाहते हों तो भी लेना पड़ेगा।
आज प्रातः मेरे एक मित्र ने कहा, अबे शुक्ला होली की हार्दिक शुभकामनाएं। मैं बहुत खुश हुआ की उसने सम्मान में मेरा बहुत ख्याल रखा। उसने अपने व्याव्हार में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया। चलो अच्छा हुआ अपनी औकात तो पता चली। और किस किस को पता चली है? लेख में कमेंट कर बता दें। अन्यथा होली की शुभकामनाओ के बजाय मैंने आप सभी की पोल खोलने का मन बनाया हुआ है।

कुछ शुभकामनाएं बहुत विस्तार से दी जाती है। कहीं शास्त्रों का उल्लेख तो कहीं जीवन की सार्थकता का बखान। कुछ लोग दूसरों को शुभकामनाएं इस तरह से देते है जैसे बरसों का उधार चुका रहे हो। देने वाला खुश। लेकिन शुभकामना लेने वाला मातम मना रहा है। कमीने ने उधार का ब्याज तो दिया नहीं। शुभकामनाओं के बहाने चुकारे के लिये कुछ दिन की मोहलत मांग रहा है। मिल जाये बैंक एटीएम के सामने फिर देखते हैं। खैर, यह तो मजाक था पर हर बार मजाक होता है क्या? क्यों होली पर झूठ कहलवाते हो मेरे यार।
आज प्रातः एक बड़ी मस्त शुभकामना मिली। उसमें लिखा था हमारी ओर से आप, आपके परिवार एवं आपकी उन को होली की शुभकामनाएं। शुभकामना देने वाले ने स्पष्ट कर दिया कि यह शुभकामना श्रीमान आपके लिये नहीं है। यह तो आपकी उन के लिये हैं। शुभकामना देने वाले ने भी अपनी तरफ से आपकी उनको शुभकामना दी। मतलब साफ है, आप समझ गये होगें? लेन देन बरोबर बस। शुभकामना चली गई वहां, जिसे देना था उसके पास।
अतः इस होली पर एक होली पवित्र निवेदन, शुभकामनाएं दिल से दीजिये। बिना किसी अगर मगर के। किसी उस या उन को नहीं। केवल अपनों को। पुनः एक बार होली की बिलकुल सच्ची, खरी, ईमानदार शुभकामनाएं।

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अखिलेश शुक्ल
लेखक, समीक्षक, ब्लागर एवं संपादक

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