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एक ऐसा शिव मंदिर, जहां शिवलिंग पर चढ़ता है सिंदूर, महाशिवरात्रि पर लगता है मेला

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  • आदिवासी समुदाय करता है बड़ादेव की पूजा, मेले में मिलते हैं परंपरागत सामान

इटारसी। आमतौर पर सिंदूर का पूजा से संबंध हनुमानजी से है। भगवान बजरंगबली को सिंदूर का लेप करके चोला चढ़ाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मध्यप्रदेश के नर्मदापुरम जिले में एक ऐसा शिव मंदिर भी है, जहां शिवलिंग पर सिंदूर चढ़ाया जाता है? हम आपको बताते हैं, वह स्थान सतपुड़ा पर्वत श्रंखला की तिलक सिंदूर नामक पहाड़ी पर है, जहां आदिवासियों के बड़ादेव भगवान महादेव का गुफा मंदिर है। महाशिवरात्रि पर यहां तीन दिनी मेला आयोजित किया जाता है, जिसका संचालन जनपद पंचायत केसला द्वारा आदिवासियों की समिति के सहयोग से किया जाता है।

मेले की तैयारी देखी अधिकारियों ने

मध्यप्रदेश के प्रमुख रेल जंक्शन इटारसी से 18 किलोमीटर की दूरी पर तिलक सिंदूर मंदिर है, जहां गुफा मंदिर में स्थित शिवलिंग सतपुड़ा की पहाड़ी पर गुफा में विराजमान है। यह अब न सिर्फ धार्मिक बल्कि व्यवस्थाएं जुटा देने से पर्यटक स्थल भी बन रहा है। यहां दूर-दूर से श्रद्धालु और पर्यटक अभिषेक पूजा अर्चना करने और सैर-सपाटा के लिए भी पहुंचते हैं। इस वर्ष महाशिवरात्रि पर यहां 25 फरवरी से 27 फरवरी तक बड़ा मेला लगने वाला है। महाशिवरात्रि को लगने वाला मेले को लेकर एसडीएम आईएएस टी प्रतीक राय ने निरीक्षण किया और मेले के लिए विभागों को अपनी-अपनी जिम्मेदारी सौंपी गई है।

मंदिर की खास बातें

इटारसी तहसील में स्थित तिलक सिंदूर मंदिर में भगवान शिव को सिंदूर चढ़ाया जाता है। इस मंदिर को तिलक सिंदूर मंदिर इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां आदिवासी परंपरानुसार भगवान शिव का सिंदूर से अभिषेक किया जाता है, क्योंकि इस मंदिर का संबंध गौड़ जनजाति से है। यहां आदिवासी पूजा-अर्चना के दौरान सिंदूर का इस्तेमाल करते हैं। पहली पूजा का अधिकार आदिवासी समाज के प्रधान, जिन्हें भौमका कहा जाता है, उनके परिवार को ही है। माना जाता है कि यहां शिवजी को सिंदूर चढ़ाने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यहां से बहने वाली हंसगंगा नदी में भक्त नहाकर भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं।

आदिवासियों के बड़ादेव हैं शिव

तिलक सिंदूर मंदिर का संबंध गौड़ जनजाति से है और आदिवासी पूजा अर्चना के दौरान सिंदूर का उपयोग करते हैं। आज भी यहां पर प्रथम पूजा का अधिकारी आदिवासी समाज के प्रधान जिसे भौमका कहा जाता है उनके परिवार को है। आदिवासी समुदाय भगवान भोलेनाथ को बड़े देव के नाम से पूजता है। तिलक सिंदूर में भोलेनाथ जहां विराजमान हैं, वहां पर 15 आदिवासी गांवों का श्मशान भी है। पौराणिक मान्यता अनुसार जब भस्मासुर भगवान भोलेनाथ को भस्म करने उनका पीछा कर रहे थे, तो भगवान यहां की कंदराओं में छिपे थे और यहीं से ही पचमढ़ी के निकट जम्बूद्वीप गुफा पर निकले थे।

गौंड राजाओं ने की थी स्थापना

माना जाता है कि सतपुड़ा की पहाडिय़ों पर एक समय में पचमढ़ी से टिमरनी, हरदा के बीच गौंड राजाओं का राज्य हुआ करता था। इन राजाओं ने ही तिलक सिंदूर में शिवालय की स्थापना की थी। गौंड जनजाति बड़े देव को मानते हैं, इसलिए तिलक सिंदूर में भगवान शिव को बड़े देव भी कहा जाता है। बिहार में नेपाल की बार्डर पर रहने वाले कालिकानंद ब्रम्हाचारी जिन्हें यहां बम बम बाबा कहते थे, उन्होंने यहां पर साधना की थी। वे यहां तांत्रिक साधनाएं करते थे। उनका कहना था कि भवानी अष्टक में तिलक वन का जो जिक्र है वह तिलक सिंदूर ही है। बम-बम बाबा के देहावसान के बाद यहां उनकी समाधि बनी है।

ऐसे पहुंचे तिलक सिंदूर

इटारसी से 16 किमी पर तिलक सिंदूर धाम है। इटारसी से धरमकुंडी जाने वाले मार्ग पर 12 किलोमीटर पर जमानी गांव है। यहां से दक्षिण दिशा में 8 किलोमीटर सतपुड़ा पर्वत के घने जंगलों में तिलक सिंदूर धाम है। यहां पर हंसगंगा नदी बहती है। तिलक सिंदूर मंदिर में जनपद पंचायत केसला द्वारा महाशिवरात्रि पर मेला आयोजित किया जाता है। जमानी से तिलक सिंदूर तक पूरे मार्ग में इस दिन फलाहारी भोज्य का भंडारा किया जाता है। लाखों भक्त 3 दिन यहां भगवान का दर्शन, पूजन-अर्चन करते हैं। प्रशासन की बड़ी टीम यहां सुरक्षा और व्यवस्था देखती है, जिनका सहयोग आदिवासी युवाओं की टीम करती है।

Rohit Nage

Rohit Nage has 30 years' experience in the field of journalism. He has vast experience of writing articles, news story, sports news, political news.

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