बहुरंग: वे सिर्फ ‘घनश्याम’ नहीं…!

Post by: Poonam Soni

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  • विनोद कुशवाहा :

इटारसी के आर एम.एस ऑफिस से लगी हुई दुकानों में से एक दुकान घनश्याम सेठ की भी है। कहलाते वे ‘सेठ’ जरूर हैं लेकिन कभी-कभी कोई दिन ऐसा भी आता है जब उनकी बोनी तक नहीं होती। जबकि दो होटलों के बीच में उनकी दुकान है और वे इटारसी के सबसे व्यस्ततम महात्मा गांघी मार्ग पर बैठे हैं। बावजूद इसके घनश्याम सेठ हमेशा आपको पैर पर पैर रखे आराम की मुद्रा में नज़र आयेंगे। बीच-बीच में कभी-कभी वे सर पर भी हाथ फेर लेते हैं। हालांकि उनके सर पर बाल कम बचे हैं। कैसे बचते, उनका काम पुरानी पुस्तकें आधे दाम में बेचना है। उनमें ज्यादातर साहित्यिक पुस्तकें होती हैं जो या तो लोग उन्हें ऐसे ही दे जाते हैं। या उन्हें अपने हिसाब से इन पुस्तकों को खरीदना पड़ता है। यही उनका व्यवसाय है। स्टेशन पर सर्वोदय साहित्य भंडार को छोड़कर लगभग सभी बुक स्टॉल बन्द हो चुके हैं। इनमें एच व्हीलर के बुक स्टॉल भी शामिल हैं। उनके बुक स्टालों पर तो अब पुस्तकों की जगह नमकीन बिस्किट आदि ने ले ली है। ये स्थिति हो गई है हमारे लिखने-पढ़ने की। ऐसे में रेल्वे स्टेशन के सामने स्थित ‘दुबे बुक स्टॉल’ और घनश्याम सेठ ने अपना अस्तित्व बचाकर रखा है तो ये अपने आप में बहुत बड़ी बात है। एक बुक स्टॉल स्थानीय बस स्टैंड पर वीरेन्द्र मालवीय का भी है। ‘दुबे बुक स्टॉल’ और वीरेन्द्र मालवीय के बुक स्टॉल को तो फिर भी अखबारों का सहारा है। घनश्याम सेठ के पास सिवा कटी-फटी पुस्तकों के अलावा कुछ नहीं है।

घनश्याम सेठ भारत विभाजन के समय अपने अन्य सिंधी भाईयों की तरह पाकिस्तान से आये थे। वैसे उनका जन्म 9 दिसम्बर ,1938 को पाकिस्तान में ही हुआ था। इस तरह उनकी उम्र 81 वर्ष हो चुकी है। 1964 में उन्होंने ये व्यवसाय चुना जिसे आज तक घनश्याम सेठ नहीं छोड़ पाए क्योंकि उनको पुस्तकों से प्रेम है। पुस्तकों की खुशबू में ही उनका जीवन है । यही वजह है कि परिवार के लाख मना करने के बाद भी वे आज तक पुस्तकों से अपना नाता निभा रहे हैं।

भले ही घनश्याम सेठ के ग्राहक कम हों पर उनके चाहने वाले कम नहीं हैं। घनश्याम सेठ के पिछले जन्मदिन पर जिला पत्रकार संघ के अध्यक्ष प्रमोद पगारे और उनके कुछ युवा साथियों ने घनश्याम सेठ की दुकान पर जाकर ही उनका सम्मान किया था। अगले ही दिन इस आशय का समाचार भी अखबारों में घनश्याम सेठ की फोटो के साथ प्रकाशित हुआ था। लाख मतभेदों के बावजूद प्रमोद की इसी विशेषता के कारण मैं उनके सामने नतमस्तक हो जाता हूं क्योंकि जहां किसी का ध्यान नहीं जाता प्रमोद वहीं अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं। इसमें उनका कोई सानी नहीं। कोई मुकाबला नहीं। खैर । उनकी चर्चा फिर कभी। बिना किसी भय। बिना किसी संकोच के। फिलहाल बात सिर्फ और सिर्फ घनश्याम सेठ की।

आते-जाते जब भी समय मिलता है तो मैं घनश्याम सेठ की खबर-बतर जरूर लेता हूं। बातों ही बातों में वे अक्सर ये कह ही देते हैं कि उन्हें इसका बेहद दुख है कि लोगों की पढ़ने में रुचि नहीं रही। उनकी इस सोच के पीछे व्यवसाय नहीं है बल्कि वे चाहते हैं कि लोग पढ़ें। लोगों की पढ़ने के प्रति रुचि बढ़े। एक हम हैं कि ‘सत्यकथा’ और ‘सरस सलिल’ से आगे ही नहीं बढ़ पा रहे हैं। ये पत्रिकायें हमारी युवा पीढ़ी के लिये “नीति शिक्षा” की तरह हो गई हैं । अभी पिछले दिनों सुनने में आया कि संभवतः ‘हंस’ व ‘कादम्बिनी’ जैसी साहित्यिक पत्रिकायें भी बंद हो रही हैं ।

नई पीढ़ी को टेलीविजन पर भी सनसनी, क्राइम रिपोर्टर, सावधान इंडिया देखने में ज्यादा दिलचस्पी है। फिर इसी टेलीविजन के न्यूज चैनलों पर हल्ला बोल ,दंगल जैसी घटिया डिबेट भी आयोजित की जाती हैं जिसमें सिवा शोर के कुछ नहीं होता और विषय रखा जाता है- अपराध क्यों बढ़ रहे हैं? अरे अपराधों के जनक तो तुम खुद हो। तुम्हीं ज्ञान दे रहे हो कि अपराध कैसे किये जाते हैं। बाद में प्रायोजित डिबेट भी तुम ही करते हो। सुशांत की मौत तक को तुमने मजाक बना कर रख दिया है। अभी तक, आज तक, कल तक जैसे नाम का कोई चैनल तो सुशांत के ही चरित्र हनन पर उतर आया है। क्या कोई चैनल इतना भी व्यवसायिक हो सकता है? इस चैनल की एक कछुए जैसे मुंह की एंकर तो इतना विकृत चेहरा बना कर सवाल पूछती है कि अन्ततः टी वी ही ऑफ करना पड़ता है ।

अच्छा है घनश्याम सेठ कि आप टेलीविजन नहीं देखते। सीरियल नहीं देखते। न्यूज नहीं देखते। अन्यथा तब आप को असीम दुख होता। ईश्वर से प्रार्थना है कि आप हमेशा स्वस्थ रहें और इसी तरह साहित्य की सेवा करते रहें ।

‘नर्मदांचल ‘ के पाठकों से मेरा अनुरोध है कि वे लिखनेपढ़ने में रुचि बनाए रखें। यदि आपके पास कोई अनुपयोगी साहित्यिक पुस्तक या पत्रिका है तो कृपया घनश्याम सेठ तक पहुंचा दें। हो सकता है कि आपको भी वहां आपके काम की कोई पत्रिका , पुस्तक अथवा साहित्य मिल जाये। तभी मेरे लिखने की सार्थकता होगी। यही घनश्याम सेठ को, उनके परिवार को सच्ची मदद भी होगी। शायद आप ऐसा करने से अपने हिस्से का पुण्य भी अर्जित कर सकें। आभारी रहूंगा।

vinod kushwah

  • विनोद कुशवाहा (VINOD KUSHWAHA)

9425043026

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