जालौन, 6 अक्टूबर (हि.स.)। शारदीय नवरात्रि पर देवी माता के सभी प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ है। जनपद में देवी मां का ऐसा ही एक मंदिर हैं, जहां कभी डाकू भी आस्था से अपना सिर झुकाते थे। इस बीहड़ में कभी डांकुओं के गोलियों की तड़तड़ाहट गूंजती थीं, आज वहां मंदिर के घंटों की आवाज सुनाई देती है। यहां नवरात्रि में दर्शनों की भारी भीड़ उमड़ती है। जिले के बीहड़ों में स्थित ‘जालौन वाली माता’ के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. इसका मुख्य कारण है बीहड़ का दस्यु मुक्त होना।
पिछले कई दशकों तक जालौन सहित आस-पास के जनपद इटावा, औरैया आदि में दस्युओं ने काफी हड़कंप मचा रखा था। इसके चलते लोगों में डकैतों को लेकर मन में खौफ हो गया था। इसलिए लोग जालौन वाली माता के दर्शनों के लिए कम ही आते थे। हालांकि, पुलिस और एसटीएफ की सक्रियता के चलते अब अधिकांश डकैत मुठभेड़ के दौरान मारे जा चुके हैं। वहीं, कुछ ने मारे जाने के डर से आत्म समर्पण कर दिया है। इसके चलते जालौन जनपद के बीहड़ अब डकैतों से मुक्त हो चुके हैं।
यह मंदिर यमुना और चंबल नदी के पास है, जहां अधिकतर डाकू अपना अड्डा बनाते थे। दाे-तीन दशकों से डांकुओं का साम्राज्य खत्म होने से अब लोग भय मुक्त होकर दर्शन करने आ रहे हैं। नवरात्रि के समय यहां भक्तों की संख्या में अच्छी खासी बढ़ोतरी होती है। मंदिर से जुड़े किस्से और डाकुओं की कहानी लोगों के लिए आस्था और आकर्षण का केंद्र बन गया है। जानकार बताते है कि बीहड़ के जंगलों में जितने भी डकैताें ने राज किया, वे सब जालौन वाली माता के मंदिर में दर्शन के साथ घंटे भी चढ़ाए। डकैत मलखान सिंह, पहलवान सिंह, निर्भय सिंह गुर्जर, फक्कड़ बाबा, फूलन देवी, लवली पाण्डेय, अरविन्द गुर्जर समेत कई डकैत थे, जो समय-समय पर इस मंदिर में गुपचुप तरीके से माता के दर पर माथा टेकने आते थे।
मान्यता है कि यह मंदिर द्वापर युग में पांडवों ने स्थापित किया था, तभी से इसका एक प्रमुख स्थान रहा है। स्थानीय निवासियों के मुताबिक, यह मंदिर एक हजार साल पुराना है, यहां पांडवों ने तपस्या की थी। महर्षि वेदव्यास द्वारा मंदिर की स्थापना की गयी थी। हालांकि कई किवदंतियां भी इस मंदिर से जुड़ी हैं। बताया जाता है कि एक बार एक भक्त अपने मरे हुए बेटे को मंदिर में लाया था, जो माता के आशीर्वाद से जिंदा हो गया था। मान्यता है कि मां भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। भक्त यहां आकर समपन्न हो जाते हैं। यह मंदिर चंदेल राजाओं के समय भी खूब प्रसिद्ध हुआ, लेकिन डकैतों के कारण आजादी के बाद ये स्थान चंबल का इलाका कहलाने लगा।