- श्री द्वारिकाधीश मंदिर में दो दिवसीय रासलीला उत्सव प्रारंभ
इटारसी। श्री द्वारिकाधीश मंदिर में आज से दो दिवसीय रासलीला उत्सव प्रारंभ हुआ। मुख्य नगर पालिका अधिकारी श्रीमती ऋतु मेहरा, समाजसेवी उमेश अग्रवाल, श्री द्वारिकाधीश मंदिर समिति के प्रबंधक श्री सैनी ने राधा-कृष्ण की आरती करके रासलीला कार्यक्रम का शुभारंभ कराया। नगर पालिका परिषद द्वारा श्री बालकृष्ण लीला संस्थान वृंदावन के कलाकारों द्वारा स्वामी श्यामसुंदर शर्मा के निर्देशन में यह आयोजन चल रहा है।
आज पहले दिन माखनचोरी और ऊखल बंधन की लीला तथा मयूर नृत्व का आयोजन किया। उपस्थित श्रद्धालुओं ने श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की सराहना की और उनसे माखन-मिश्री का प्रसाद ग्रहण किया। ऊखन बंधन की कथा में बताया कि जब यशोदा मईया ने उन्हें एक ओखल से बांध दिया था।
उखल बंधन लीला कथा
कहानी इस प्रकार है की एक दिन यशोदा मईया कान्हा के रोज रोज बढ़ती माखन चोरी और मिट्टी खाने की आदतों से बहुत तंग आ जाती हैं। क्रोध में आ कर यशोदा मईया कान्हा को एक उखल से बांध देती हैं, जिससे की कृष्ण कहीं जा न सकें। श्री कृष्ण को उखल से बांध कर यशोदा मईया चली जाती हैं, किंतु स्वयं नारायण के अवतार को एक छोटी सी उखल भला कैसे रोक पाती। उखल से बंधे कृष्ण इधर उधर देखते हैं कि कोई आकर उनकी रस्सी खोल दे। पर उधर कोई न था, तब श्री कृष्ण की नजर दो अर्जुन के पेड़ों पर पढ़ती है। दरअसल ये दोनों पेड़ नल कुबेर और मणि ग्रीव जो कि अपने पूर्व जन्म में देवता कुबेर जी पुत्र थे, दोनों ही नारद जी के एक श्राप के कारण पेड़ बन गये थ, क्षमा मांगने पर दोनों को ही नारद जी ने कहा था कि द्वापरयुग में जब भगवान अपने बालपन में लीलाएं कर रहे होंगे तब वे स्वयं आ कर आप दोनों को मुक्त करेंगे। श्री कृष्ण उखल से बंधे हुए धरती पर रेंगते-रेंगते आंगन में टहलने लगे। तभी श्री कृष्ण दोनों अर्जुन के पेड़ों के बीच से गुजरते समय, उनकी उखल पदों के बीच फंस जाती है। श्री कृष्ण जोर से आगे की ओर धक्का लगाते हैं ताकि वे फंसी उखल को निकाल सकें। तब श्री कृष्ण इतने बलपूर्व खींचते हैं कि दोनों पेड़ों के तने उखड़ जाते हैं। ऐसा करके श्री कृष्ण नल कुबेर और मणि ग्रीव नारद जी के श्राप से मुक्त हो जाते हैं और इस तरह श्री कृष्ण यमलार्जुन का उद्धार करते हैं।
मयूर नृत्य ने किया मोहित
वृंदावन से आए कलाकारों ने मयूर नृत्य से सबको मोहित कर लिया। इसको देखकर हर कोई कृष्ण की भकक्त में झूमता नजर आया। ब्रज के इस मशहूर मयूर नृत्य ने सभी का मन मोह लिया। आंखों को चौंधियाती रंग-बिरंगी और चमकीली पोशाकें, कमर से बंधी मयूर पंखूडिय़ां देखकर ऐसा लगा, मानों सैकड़ों मोर एक साथ नाच उठे हों।
दरअसल, मयूर नृत्य राधा और कृष्ण को समर्पित एक लोक नृत्य है। इसमें कलाकार मोर रूप धारण करके नाचते हैं, जिनमें राधा-कृष्ण और गोपियों का रूप झलकता है। श्रृंगार और प्रेम रस में डूबा हुआ यह नृत्य अपनी चमक और मनमोहिनी छटा के लिए प्रसिद्ध है। इसमें कलाकार नर्तक मोर के पंख से बने विशेष वस्त्र धारण करते हैं।